Wednesday, December 31, 2008

प्रीत,प्यार,स्नेह और संबंधों की धरा पर

वृन्दावन,नंदगाँव,बरसाना ये वो जगह है जहाँ पर श्री कृष्ण- राधा के अलावा कुछ भी नहीं है। गत पांच दिनों में से चार दिन इन्ही के सानिध्य में गुजरे। राधा कभी थी या नहीं, लेकिन आज इन स्थानों के चप्पे चप्पे पर राधा ही राधा है। बहती हवा राधा राधा करके कान के पास से उसके होने का अहसास करवाती है। दीवारों पर राधा, श्री राधा लिखा हुआ है। एक रिक्शा वाला भी घंटी नहीं बजाता, राधे राधे बोलकर राहगीरों को रास्ता छोड़ने को कहता है। वृन्दावन में ५५०० मन्दिर हैं। सब के सब राधा कृष्ण के। बांके बिहारी का मन्दिर, कोई समय ऐसा नहीं जब भीड़ ना होती हो। मन्दिर में आते ही मन निर्मल हो जाता है। आंखों के सामने, मन में केवल होता है बांके बिहारी। रास बिहारी मन्दिर। मन्दिर में चार शतक पुरानी मूर्तियाँ हैं। मगर ऐसा लगता है जैसे आज ही उनको घडा गया हो। मन्दिर का रूप रंग देखते देखते मन नहीं भरता। श्री रंगराज का मन्दिर। मन्दिर में सोने की मूर्तियाँ, उनके सोने के वाहन,सोने के गरुड़ खंभ। क्या कहने! गोवर्धन की परिकर्मा। लोगों की आस्था को नमन करने के अलावा कुछ करने को जी नहीं हुआ। वहां के लोग कहते हैं। वृन्दावन,नंदगाँव,बरसाना दूध दही का खाना। इस क्षेत्र में ताली बजाकर हंसने का भी बहुत महत्व है। हर किसी से सुनने को मिल जाएगा-जो वृन्दावन में हँसे,उसका घर सुख से बसे। जो वृन्दावन में roye वो अपने नैना खोये।वहां मधुवन है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ श्री कृष्ण गोपियों के संग रास रचाया करते थे। अब भी ऐसा होता है। इसलिए मधुवन में रात को किसी को भी रुकने नही दिया जाता। बाकायदा ढूंढ़ ढूंढ़ कर सबको वन से बहार निकल दिया जाता है। वृन्दावन में बंदरों का बहुत बोलबाला है। लेकिन आप उनके सामने राधे राधे बोलोगे तो बन्दर चुपचाप आपके निकट से चला जाएगा। इन बंदरों को चश्मा और पर्स बहुत पसंद हैं। पलक झपकते ही आपका चश्मा उतार लेंगें। इसलिए जगह जगह लिखा हुआ है कि चश्मा और पर्स संभाल कर रखें। यहाँ एक मन्दिर है इस्कोन। मन्दिर में कैमरा मोबाइल फ़ोन तक नहीं ले जा सकते। मन्दिर के अन्दर आरती के समय जब "हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे" के स्वर गूंजते हैं तो हर कोई अपने आप ही झुमने को मजबूर हो जाता है। कृष्ण नाम की ऐसी मस्ती आती है की मन्दिर से जाने को जी नहीं करता। मथुरा तो है ही कृष्ण की जन्म स्थली। जन्म स्थली पर सी आर पी एफ की चौकसी है। सब कुछ देखने लायक। चार दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। अब उस व्यक्ति के बारे जिसकी भावना के चलते हम इन स्थानों के दर्शन कर सके। उनका नाम हैं श्री मारुती नंदन शास्त्री। कथा वाचक हैं, मुझ से स्नेह करतें हैं। उनका कोई आयोजन था। उन्होंने स्नेह से बुलाया और हम कच्चे धागे से बंधे चले गए। कहतें हैं कि वृन्दावन में किसी ना किसी बहाने से ही आना होता है। अगर आप सीधे वृन्दावन आने को प्रोग्राम बनाओगे तो आना सम्भव नही होता। इसलिए शास्त्री जी को धन्यवाद जिनके कारन हम प्रेम की नगरी में आ सके।

Tuesday, December 30, 2008

युद्ध? को भी बना देंगे बाज़ार

इतने दिन कहाँ रहा, ये चर्चा बाद में, पहले उस "युद्ध" की बात जिसका अभी कोई अता पता ही नही है। इन दिनों शायद ही कोई ऐसा मीडिया होगा जो "युद्ध" युद्ध" ना चिल्ला रहा हो। हर कोई "युद्ध" को अपने पाठकों को "बेच" रहा है जैसे कोई पांच पांच पैसे की गोली बेच रहा हो। इतने जिम्मेदार लोगों ने इसको बहुत ही हलके तरीके से ले रखा है। मेरा शहर बॉर्डर के निकट है। हमने १९७१ के युद्ध के समय भी बहुत कुछ झेला और देखा। इसके बाद वह समय भी देखा जब संसद पर हमले के बाद सीमा के निकट सेना को भेज दिया गया था। बॉर्डर के पास बारूदी सुरंगे बिछाई गई थी। तब पता नहीं कितने ही लोग इन सुरंगों की चपेट में आकर विकलांग हो गए। अब ऐसी कोई बात नहीं है। मैं ख़ुद बॉर्डर पर होकर आया हूँ। पुरा हाल देखा और जाना है। पाक में चाहे जो हो रहा हो, भारत में सेना अभी भी अपनी बैरकों में ही है। बॉर्डर की और जाने वाली किसी सड़क या गली पर सेना की आवाजाही नहीं है। मीडिया में पता नहीं क्या क्या दिखाया,बोला और लिखा जा रहा है। ठीक है वातावरण में तनाव है, दोनों पक्षों में वाक युद्ध हो रहा है, मगर इसको युद्ध की तरह परोसना, कमाल है या मज़बूरी?
अख़बारों में बॉर्डर के निकट रहने वाले लोगों के देश प्रेम से ओत प्रोत वक्तव्य छाप रहें हैं।अब कोई ये तो कहने से रहा कि हम कमजोर हैं या हम सेना को अपने खेत नहीं देंगें। मुफ्त में देता भी कौन है। जिस जिस खेत में सुरंगें बिछाई गई थीं उनके मालिकों को हर्जाना दिया गया था। हमारे इस बॉर्डर पर तो सीमा सुरक्षा बल अपनी ड्यूटी कर रहा है. सेना उनके आस पास नहीं है। हैरानी तो तब होती है जब दिल्ली ,जयपुर के बड़े बड़े पत्रकार ये कहतें हैं कि आपके इलाके में सेना की हलचल शुरू हो गई। अब उनको कौन बताये कि इस इलाके में कई सैनिक छावनियां हैं , ऐसे में यहाँ सेना की हलचल एक सामान्य बात है। आम जन सही कहता है कि युद्ध केवल मीडिया में हो रहा है।

Tuesday, December 23, 2008

करना नहीं माफ़

---चुटकी----

निश्चय कर लो
ये साफ़,
पाक को
करना नही माफ़,
अगर कर दिया
इस बार भी माफ़,
तो सर पर
नाचेगा ये
नापाक पाक।

----गोविन्द गोयल

Monday, December 22, 2008

मंदी की मार, पत्रकार बेकार

श्रीगंगानगर में पत्रकारों पर मंदी की मार का असर होने लगा है। हिंदुस्तान के सबसे बड़े प्रिंट मीडिया ग्रुप दैनिक भास्कर के श्रीगंगानगर संस्करण से दो पत्रकारों को नौकरी से अलग कर दिया गया है। इसके विरोध में आज राजस्थान पत्रकार संघ और श्रमजीवी पत्रकार संघ ने अखबार के स्थानीय ऑफिस के आगे धरना देकर एक ज्ञापन कार्यकारी सम्पादक को दिया। ज्ञापन ग्रुप के चेयरमेन के नाम था। धरना स्थल पर अखबार के प्रतियाँ जलाई गईं। यह पहला मौका था जब पत्रकारों के संगठनो ने पत्रकारों को निकाले जाने के विरोध में धरना दिया। श्रीगंगानगर में बड़ी संख्या में दैनिक अख़बार प्रकाशित होते हैं। यहाँ अक्सर कोई ना कोई अखबार के sanchalak किसी reporter को रखते या नौकरी से अलग करते रहें हैं।तीन माह पहले तो एक चलता दैनिक अख़बार समाचार भारती अचानक बंद कर दिया गया। वी ओ आई ने अपना श्रीगंगानगर ऑफिस बंद करके कई जनों को चलता कर दिया था। तब किसी ने इस प्रकार का विरोध नही किया। चलो, देर आयद दुरस्त आयद। उम्मीद है यह सिलसिला बरक़रार रहेगा।

Sunday, December 21, 2008

मन है पाकिस्तानी

---चुटकी----

हमारे नेताओं की
देखो कारस्तानी,
तन है हिंदुस्तान में
मन है पाकिस्तानी।

----गोविन्द गोयल

Saturday, December 20, 2008

उसका नाम है पाकिस्तान


--- चुटकी----

जिसका ना दीन
ना कोई ईमान,
उसका नाम है
पाकिस्तान।

Friday, December 19, 2008

कमाऊ पूत की उपेक्षा


अक्सर यह सुनने को मिल ही जाता है कि माँ भी उस संतान का थोड़ा पक्ष जरुर लेती है जो घर चलने में सबसे अधिक योगदान देता हो। किंतु राजनीति में ऐसा नही है। ऐसा होता तो राजस्थान के सी एम अशोक गहलोत अपने मंत्री मंडल गठन में श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ की उपेक्षा नही करते। दोनों जिले खासकर श्रीगंगानगर आर्थिक,सामाजिकऔर सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। किंतु श्री गहलोत ने अपने मंत्री मंडल में इस जिले के किसी विधायक को शामिल नही किया। यह जिला सरकार को सबसे अधिक राजस्व देता है,लेकिन इसकी कोई राजनीतिक पहुँच दिल्ली और जयपुर के राजनीतिक गलियारों में नही है। श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिले से कांग्रेस को ६ विधायक मिले। इसके अलावा २ निर्दलियों ने सरकार बनने हेतु अशोक गहलोत ने समर्थन दिया। समर्थन देने वाला एक निर्दलीय सिख समाज से है इसी ने सबसे पहले अशोक गहलोत को समर्थन दिया। यह पहले भी विधायक रह चुका है। सब लोग यहाँ तक की मीडिया भी सभी क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिलने के गीत गा रहा है। पता नहीं उनका ध्यान भारत-पाक सीमा से सटे श्रीगंगानगर जिले की ओर क्यूँ नही जाता। क्या इस इलाके के विधायक उस गोलमा देवी जितने भी लायक नहीं जिसको शपथ लेनी भी नही आई। इस से साफ साबित होता है कि जयपुर के राजनीतिक गलियारों में हमारे जिले की क्या अहमियत है।
किसी को यह सुनने में अटपटा लगेगा कि राजस्थान के इस लाडले जिले की कई मंडियों में रेल लाइन तक नहीं है जबकि वहां करोड़ों रुपयों का कारोबार हर साल होता है। छोटे से छोटा मुकदमा भी एस पी की इजाजत के बिना दर्ज नही होता। जिला कलेक्टर ओर एस पी नगर की गली ओर बाज़ार तक नहीं जानते। उनके पास नगर के ऐसे पॉँच आदमी भी नहीं जो नगर में कोई कांड होने पर उनकी मदद को आ सके, या उनके कहने से विवाद निपटाने आगे आयें। यहाँ उसी की सुनवाई होती है या तो जिसके पैर में जूता है या काम के पूरे दाम। इसके अलावा कुछ नहीं । हमारें नेताओं में इतनी हिम्मत ही नहीं जो अपना दबदबा जयपुर और दिल्ली के गलियारों में दिखा सकें।
"चिंताजनक हैं आज जो हालात मेरी जां,हैं सब ये सियासत के कमालात मेरी जां"
"खुदगर्जियों के जाल में उलझे हुये हैं सब,सुनकर समझिये सबके ख्यालात मेरी जां"
"अब अपराधियों से ख़ुद ही निपटो, फरियादी का तो रपट लिखवाना मना है"

Wednesday, December 17, 2008

जूते की हसरत दिल में रह गई


पैरों में रहना
मेरी नियति है,
फ़िर पैर मेरा हो
आपका उसका
या हो बुश का,
पहली बार किसी ने
मुझ पर दया दिखाई
किसी बड़े के मुंह
लगने की उम्मीद जगाई,
उसने पैरों में पड़े जूते को
हाथ में लिया और
फैंक दिया पूरी ताकत से
ताकि मैं ठीक से
बुश के मुंह जा लगूं
या उसके शीश पर
सवार हो ताज बनू ,
अफ़सोस बुश के
घुटनों ने वफ़ा निभाई
मुझे आता देख तुंरत
झुक गए मेरे भाई,
दोनों बार ऐसा ही हुआ
पर, मैं तो कहीं का ना रहा,
मुंह लगने की हसरत
तो पूरी क्या होनी थी
मैं तो पैरों से भी गया,
हाँ इस बात का
गर्व जरुर है कि
जो किसी के
बस में नहीं आता है
वह हमें आते देख
घुटनों के बल झुकने को
मजबूर हो जाता है।

Tuesday, December 16, 2008

लो मैं आ गया


सॉरी ! अचानक बिना बताये गायब रहना पड़ा। इस बीच बुश के साथ वो हो गया जो किसी ने कल्पना भी नही की होगी। कभी ज़िन्दगी में ऐसा होता है कि हम सोच भी नहीं पाते वह हो जाता है। अमेरिका के प्रेजिडेंट की ओर किसी की आँख उठाकर देखने भर की हिम्मत नहीं होती यहाँ जनाब ने दो जूते दे मारे, वो तो बुश चौकस थे वरना कहीं के ना रहते बेचारे। अमेरिकी धौंस एक क्षण में घुटनों के बल झुक गई। इसे कहते हैं वक्त ! वक्त से बड़ा ना कोई था और ना कोई होगा। यह वक्त ही है जिसे हिन्दूस्तान की लीडरशिप को इतना कमजोर बना दिया कि वह पाकिस्तान को धमकी देने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहा है। यह वही हिन्दूस्तान तो है जिसने आज के दिन [ १६/१२/१९७१] को पाकिस्तान का नक्श बदल दिया था। आज हमारी हालत ये कि जब जिसका जी चाहे हमें हमारे घर में आकर पीट जाता है। हमारी लीडरशिप के पैर इतने भारी हो गए कि वह पाकिस्तान के खिलाफ उठ ही नहीं पा रहे। हिन्दूस्तान की विडम्बना देखो कि उसके लिए क्रिकेट ही खुशी और गम प्रकट करने का जरिए हो गया। क्रिकेट में टीम जीती तो भारत जीता। कोई सोचे तो कि क्या क्रिकेट में जीत ही भारत की जीत है? इसका मतलब तो तो क्रिकेट टीम भारत हो गई, वह मुस्कुराये तो हिन्दूस्तान हँसे वह उदास हो तो हिन्दुस्तानी घरों में दरिया बिछा लें, ऐसा ही ना।
क्या हिन्दूस्तान की सरकार उस इराकी पत्रकार की हिम्मत से कुछ सबक नही ले सकती? उसका जूता मारना ग़लत है या सही यह बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन उसने अपनी भावनाएं तो प्रकट की। हिन्दुस्तानी अगर मिलकर अपने दोनों जूते पाकिस्तान को मारे तो वह कहीं दिखाई ना दे। सवा दो करोड़ जूते कोई काम नहीं होते। लेकिन हम तो गाँधी जी के पद चिन्हों पर चलने वाले जीव हैं इसलिए ऐसा कुछ भी नही करने वाले। चूँकि लोकसभा चुनाव आ रहे हैं इसलिए थोड़ा बहुत नाटक जरुर करेंगें।

Friday, December 12, 2008

मौन! सबसे बड़ा झूठ


मौन ! अर्थात
सबसे बड़ा झूठ
भला आज
मौन सम्भव है?
बाहर से मौन
अन्दर बात करेगा
अपने आप से
याद करेगा उन्हें
जिन्होंने उसे किसी भी
प्रकार से लाभ पहुँचाया
या मदद की,
कोसेगा उन जनों को
जिनके कारण उसको
उठानी पड़ी परेशानियाँ
झेलनी पड़ी मुसीबत,
मौन है , मगर
अपनी सफलताओं की
सोच मुस्कुराएगा
जब अन्दर ही अन्दर
कुछ ना कुछ
होता रहा हर पल
तो मौन कहाँ रहा?
मौन तो तब होता है
जब निष्प्राण हों
तब सब मुखर होते हैं
और वह होता है
एकदम मौन
जिसके बारे में
सब के सब
कुछ ना कुछ
बोल रहे होते हैं
यही तो मौन है
जब सब
जिसके बारे में बोले
वह कुछ ना बोले
पड़ा रहे निश्चिंत
अपने में मगन

Wednesday, December 10, 2008

तुम क्या हो!


मैं नहीं जानता
तुम क्या हो, और
क्या बनना चाहते हो
लेकिन तुम्हारा होने के नाते
तुमसे इतना तो कहूँगा
कि तुम जो हो वही रहो
वो बनने की कोशिश
ना करो जो
तुम नहीं हो
कही ऐसा ना हो
कि भविष्य का
कोई आता जाता झोंका
तुम्हारे वर्तमान
अस्तित्व को मिटा दे
और उसके बाद
तू अपने अतीत
को याद करके
अपनी करनी पर
पछताते रहो।

Tuesday, December 9, 2008

आपका कर्जदार हूँ--कुन्नर


आदर और मान के हकदार मेरे इलाके के नागरिकों आपने अपने इरादों से ना केवल लोकतंत्र का मतलब सार्थक किया है बल्कि यह संदेश भी घर घर पहुँचाया है कि लोकतंत्र में लोक ही सबसे शक्तिशाली और सर्वोपरि होता है। मैंने आप के बीच में पंच से विधायक तक का चुनाव लड़ा। मगर ये चुनाव इनमे सबसे अलग था। क्योंकि यह चुनाव जनता ने जनता के लिए लड़ा। आप सब जानते हैं कि मैं तो अपने कदम पीछे हटा चुका था लेकिन वह आपका संकल्प और पक्का इरादा ही था जो ताकत बनकर मेरे साथ आ खड़ा हुआ। आप सब मेरे सारथी बने और मुझे चुनाव मैदान में उतर दिया। मगर मैं एकला नहीं था आप सब थे मेरे साथ कदम कदम पर। लोकतंत्र का क्या अदभुत नजारा था जब जनता अपने आप के लिए घर घर वोट मांग रही थी। जीत आप सब की हुई,लोकतंत्र जीता, आपकी भावना को विजयी मिली मगर कर्जदार हुआ गुरमीत सिंह कुन्नर ,आपके प्यार और स्नेह का। चुनाव तो मैं इस से भी पहले जीता हूँ मगर असल जीत अब हुई जब जन जन मेरे लिए गुरमीत सिंह कुन्नर बनकर मैदान में आया। आप विश्वास रखें आपकी भावना को सम्मान मिलेगा,आपके इरादे और संकल्पों को मिलकर पुरा करेंगें। जिस लोकतंत्र के नाम को आपने सार्थक किया है मैं उसको कलंकित नहीं होने दूंगा। मन,कर्म और वचन से आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं जिस हाल में जैसे भी हूँ हमेशा आपका था आपका रहूँगा। मेरा हर कदम आम जन की भलाई और इलाके के विकास के लिए उठे ऐसा आशीर्वाद मैं आपसे चाहता हूँ।

---आपका - गुरमीत सिंह कुन्नर

Monday, December 8, 2008

जनता ने की नई पहल

श्रीगंगानगर जिले के श्रीकरणपुर विधानसभा क्षेत्र की जनता ने एक नया इतिहास रचा है। उन्होंने विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के मुकाबले अपना उम्मीदवार गुरमीत सिंह कुन्नर को मैदान में उतारा। उनके मुकाबले में थे राजस्थान सरकार के मंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी, कांग्रेस सरकार के पूर्व मंत्री जगतार सिंह कंग के अलावा १० और उम्मीदवार। आज घोषित चुनव परिणाम में जनता के उम्मीदवार गुरमीत सिंह कुन्नर विजयी हुए हुये हैं। गुरमीत सिंह कुन्नर चुनाव लड़ने के मूड में नहीं थे। मगर जनता ने जबरदस्ती उनसे पर्चा भरवाया। उसके बाद उन्होंने ख़ुद पचार की कमान संभाली और गुरमीत सिंह को विजयी बना दिया। श्रीगंगानगर -हनुमानगढ़ जिले की ११ विधानसभा सीट में से ६ कांग्रेस ने जीती जबकि २-२ बीजेपी और निर्दलीय ने। एक सीट माकपा के खाते में गई है। ११ में से ७ आदमी पहली बार विधायक बने हैं। श्रीगंगानगर से कांग्रेस से बीजेपी में आए राधेश्याम गंगानगर और सूरतगढ़ में बीजेपी से कांग्रेस में आए गंगाजल मील चुनाव जीत गए। गत चुनाव में बीजेपी ने दोनों जिलों में दस सीट हासिल की थी। [ विडियो में गुरमीत सिंह कुन्नर]

Sunday, December 7, 2008

पत्रकारों पर भी अंकुश


चुनाव आयोग का डंडा प्रशासन से लेकर उम्मीदवारों पर तो पड़ता ही रहा है अब उसने मीडिया के ओर भी अपना कदम बढ़ा दिया है। राजस्थान में विधानसभा के चुनाव की गिनती ८ दिसम्बर को होनी है। मतगणना स्थल पर जाने के लिए मीडिया को मुख्य निर्वाचन अधिकारी,राजस्थान जयपुर ने पास जारी किए। मगर इस बार गिनती के पत्रकारों को ही ये पास दिए गए। श्रीगंगानगर के पी आर ओ ने ९९ पत्रकारों के नाम मुख्य निर्वाचन अधिकारी को भेजे थे। लेकिन कुल २० पत्रकारों के ही पास जयपुर से बनकर आए। ऐसा ही कुछ हनुमानगढ़ में हुआ। वहां केवल ६ पत्रकारों को मतगणना स्थल पर जाने के लिए पास जारी किए गए। दोनों जिलो के पत्रकारों ने इस बाबत जिला कलेक्टर को अपनी अपनी भावनाओं से अवगत करवाया। किंतु हुआ कुछ नहीं। मीडिया के लिए सख्ती पहली बार हुई है।

Friday, December 5, 2008

फ़िर से बचपन लौट आए

शायद फ़िर से वो तकदीर मिल जाए
जीवन के सबसे हसीं वो पल मिल जाए
चल फ़िर से बनायें बारिस में कागज की नाव
शायद फ़िर से अपना बचपन मिल जाए।
---
खामोशी में जो सुनोगे वो आवाज मेरी होगी
जिंदगी भर साथ रहे वो वफ़ा मेरी होगी
दुनिया की हर खुशी एक दिन तुम्हारी होगी
क्योंकि इन सब के पीछे दुआ हमारी होगी।
---
कसमों से बंधी रस्में, रस्मों से बंधे रिश्ते,रिश्तों से बंधे अपने,अपनों से बंधे दिल,दिल से बंधी धड़कन, धड़कन से बंधी जान, जान से बंधे आप, आप से बंधे हम।
----
जिक्र हुआ जब खुदा की रहमतों का
हमने ख़ुद को सबसे खुशनसीब पाया,
तमन्ना थी एक प्यारे से दोस्त की
खुदा ख़ुद दोस्त बन के आया।
---
पल दो पल में ही मिलती हर खुशी
पल दो पल में ही मिलता हर गम
पर जो हर पल साथ निभाए
वो दोस्त मिलते हैं कम। जैसे आप सब...
----
दोस्ती शब्द नहीं जो मिट जाए
उम्र नहीं जो ढल जाए
सफर नहीं जो ख़त्म हो जाए
ये वो अहसास है
जिसके लिए जिया जाए
तो जिंदगी कम पड़ जाए।

---ये सब भाव दोस्तों ने एस एम एस के द्वारा प्रकट किए हैं।

Thursday, December 4, 2008

आपकी जां की कसम


खेलकर मेरी खुशियों से
तोड़कर मेरे दिल को
अपने झूठे वादों से फुसलाकर
चली गई तुम
शहनाई के साये में
मेरी छोटी सी दुनिया में
आग लगाकर,
दुनिया क्या जाने
आज की रात मुझ पर
कहर बरपाएगी
मगर तुम्हारे लिए यही रात
एक यादगार बन जायेगी,
क्योंकि तुम्हारे वो
तुम्हें अपने पास बिठायेंगें
अपने हाथों से तुम्हारा
घूँघट हटायेंगें
और तुम कुछ शरमाकर
कुछ घबराकर
मेरे साथ बिताये पलों को भुलाकर
अपने दिल से मेरी
तस्वीर मिटाकर
सीने में बसी यादों को हटाकर
अपने ओठों को
उसके ओठों से लगाकर
बड़ी अदा से यह कहोगी
आपकी जां की कसम
मेरी जां, मुझे आपसे
बेपनाह मोहब्बत है।

Wednesday, December 3, 2008

अकेला तो मेला,मेला तो अकेला


अकेला तो मेला
मेला तो अकेला
वो शख्स है
बड़ा अलबेला।
---
ना कोई गुरु
ना कोई चेला
हर कोई जेब में
हाथ नहीं धेला
मगर वो है
बहुत अलबेला।
---
भीड़ में मौन
एकांत में वार्ता
अपनी जिंदगी
ओरों पर वार्ता
पता नहीं उसने
क्या क्या है झेला।
वो शख्स है
बहुत अलबेला।
----
ऊपर पत्थर
अन्दर मोम
उसकी कहानी
सुनेगा कौन
पता नही क्या है
जां को झमेला
वो शख्स है
बड़ा अलबेला।

Tuesday, December 2, 2008

"बड़े" मरे तब बड़े जागे

---- चुटकी----
"बड़े" लोग मरे
तब "बड़े" जागे,
नजर भी ना आए
इस्तीफा दे भागे।
इस से पहले
जो भी थे मरे
वे सब के सब थे
बहुत अभागे।
अभी तो देखना
और
क्या क्या होता है आगे।

Monday, December 1, 2008

उफ़! बड़ा ही कन्फ्यूजन है जनाब

श्रीगंगानगर में एक दर्जन दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं। सब के सब जानदार शानदार। यहाँ विधानसभा के चुनाव ४ तारीख को होने हैं। लेकिन कोई भी माई का लाल, बड़े से बड़ा पाठक अखबारों में छपने वाली ख़बरों से यह अनुमान नहींलगा सकता कि कौनसा उम्मीदवार जीतेगा। कुछ हैडिंग यहाँ आपकी नजर है----
"मान के समर्थन में विशाल जनसभा, समर्थन में उमड़ा जनसैलाब","हजारों की भीड़ ने शहर की फिजां बदली, राधेश्याम की जीत के चर्चे"," गौड़ को समर्थन देने वालों की तादाद बढ़ी"" शिव गणेश पार्क के निकट गौड़ की सभा में उमड़ी भीड़"। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये तीनों[ मनिंदर सिंह मान, राधेश्याम,राजकुमार गौड़] श्रीगंगानगर से उम्मीदवार हैं। सभी अखबारों में सभी १३ उम्मीदवारों की बल्ले बल्ले होती है। खबरें अब विज्ञापन बन गईं हैं। कोई विज्ञापन लिख कर खबरें छाप रहा है, कोई इम्पेक्ट के साथ।
कोई अखबार ऐसा नहीं जो ये लिख सके कि फलां उम्मीदवार की हालत ख़राब, दूसरा जीतेगा। खबरों का नजरिया पुरी तरह बदल गया है। अब तो हालत ये कि जो ख़बर है वह अखबार और चैनल मालिक/संचालक की नजरों में ख़बर है ही नहीं। न्यूज़ चैनल के लिए तो जो महानगर में हुआ वही न्यूज़ है। छोटे नगर में कोई पहल हो तो कोई मतलब नहीं।
सब की अपनी अपनी मज़बूरी है। पाठक/दर्शक लाचार और बेबस। वह दाम खर्च कर वह सब देखता और पढता है जो उसे दिखाया और पढाया जाता है। खैर चूँकि मीडिया ताक़तवर है इसलिए ये जो कुछ कर रहें हैं सर माथे।

शर्म नैतिकता बाकी है!

---- चुटकी----

इस बात पर
हँसी आती है,
कि पाटिल में
शर्म और नैतिकता
अभी बाकी है।

घर में मारते हैं

---- चुटकी----

वो हमें जब चाहें
घर में
घुसकर मारतें हैं,
और फ़िर हम
लुटी पिटी हालत में
अपनी बहादुरी की
शेखी बघारतें है।

Sunday, November 30, 2008

शोक नहीं आक्रोश जताओ

---- चुटकी----

शोक नही
आक्रोश जताओ,
नेताओं को
ओकात बताओ,
घर में बैठे
कुछ ना होगा,
पाक में जा
कोहराम मचाओ,
बहुत सह लिया
अब ना सहेंगें
भारत माँ की
लाज बचाओ।

Saturday, November 29, 2008

बहादुरों को सलाम,शहीदों को नमन

देश भर में जब मुंबई काण्ड पर राजनेता राजनीति कर रहें हैं वहीँ भारत-पाक सीमा से सटे श्रीगंगानगर में जागरूक लोगों ने अपने अंदाज में सुरक्षा बलों के बहादुरों को सलाम कर शहीदों को नमन किया। बिना किसी तामझाम के नगर के गणमान्य नागरिकों ने मौन शान्ति मार्च निकाला। इन नागरिकों ने अपने गलों में आतंकवाद के खिलाफ और देश में अमन चैन बनाये रखने की अपील करते पोस्टर लटका रखे थे। महात्मा गाँधी चौक पर इन लोगों ने " भारत माता की जय" "आतंकवाद मुर्दाबाद " के नारे लगाये और मोमबत्ती जलाकर शहीदों को नमन किया। बेशक शान्ति मार्च में शामिल लोगों की संख्या कम थी मगर उनका मकसद बहुत बढ़ा था। इस मार्च में श्रीराम तलवार, विजय अरोडा,अशोक नागपाल,निर्मल जैन,तेजेंदर पाल तिम्मा,मुकेश कुमार, निर्मल जैन,नरेश शर्मा,दर्शन कसेरा आदि प्रमुख लोग थे।

अहिंसा परमो धर्म है


गाँधी जी के पदचिन्हों
पर चल प्यारे,
दूसरा गाल भी
पाक के आगे कर प्यारे।
---
अहिंसा परमो धर्म है
रटना तू प्यारे,
एक तमाचा और
जरदारी जब मारे।
----
ये बटेर हाथ में तेरे
फ़िर नहीं आनी है,
लगे हाथ तू
देश का सौदा कर प्यारे।

ज़िन्दगी मेरे नाम से घबराती क्यूँ है

ऐ ज़िन्दगी तू मेरे नाम से घबराती क्यूँ है
आके दरवाजे पे मेरे लौट जाती क्यूँ है
मैं भी एक इन्सान हूँ तुम्हारी इस दुनिया का
फ़िर तू मुझसे अपना दामन बचाती क्यूँ है।
ऐ ज़िन्दगी तू.........................
दो घड़ी पास बैठो पूछो हाल हमसे भी
ना जाने तू मेरी सूरत से डर जाती क्यूँ है
सताता है मुझे हर रोज हर इन्सान दुनिया का
तू भी इतनी बेरुखी से कहर ढाती क्यूँ है
ऐ ज़िन्दगी....................
जो दुश्मन हैं बाग़ की हर खिलती हुई कली के
वहां जाकर तू अपनी खुश्बू फैलाती क्यूँ है
हर वक्त सामने रहे तेरी सूरत मेरी आंखों के
उसके बीच में तू अपना दामन लाती क्यूँ है।
ऐ ज़िन्दगी तू .........................

Friday, November 28, 2008

आडवानी जी आए पर भाए नहीं

श्रीगंगानगर जिले के एक कस्बे में आज लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवानी ने एक सभा को संबोधित किया। बीजेपी उम्मीदवार वर्तमान सांसद निहाल चंद के पक्ष में हुई इस सभा में उन्होंने एन डी ऐ सरकार की खूब तारीफ की। विकास के नाम पर वोट मांगे। आतंकवाद पर भी बोले। लेकिन वैसा नही जैसा लोग सुनना चाहते हैं। लोग तो वह सुनना पसंद करते हैं जो नरेंद्र मोदी बोलते हैं। उनकी सभा से निहाल चंद को कितने वोट मिलेंगें यह ८ तारीख को पता लगेगा। श्री आडवानी की सभा के लिए सुरक्षा क्या थी उसकी एक बानगी बतातें हैं। उनकी सभा के लिए प्रेस के पास एक बीजेपी कार्यकर्त्ता की जेब में थे। वह भी खाली। ना तो उस पर यह लिखा था कि ये पास किसने किस हैसियत से जारी किए हैं। पास के पीछे काम के बोझ के मारे वहां के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने ऐसे किए जैसे स्कूल में मास्टर करते हैं। ना कोई मोहर ना नाम,ना कोई पोस्ट का जिक्र। पास पर ख़ुद नाम लिखो और साहब से हस्ताक्षर करवा लो। यह हाल तो तब है जब मुंबई में आतंकवादियों से सेना लोहा ले रही है। जब कोई घटना हो जाती है तो फ़िर बलि का बकरा तलाश किया जाता है। समझ नहीं आता कि पुलिस के अधिकारी यह सब जानते नहीं या वे जिम्मेदारी से काम नही करना चाहते। बॉर्डर के साथ लगते इस जिले का तो भगवान ही मालिक है। ये तो उसी की कृपा है की सब ठीक से निपट जाता है।

जरा बाहर तो आओ

एक आदमी अपनी पत्नी पर चिल्ला रहा था। बस, बहुत हो गया, अब मैं सहन करने वाला नहीं हूँ। तुमने समझ क्या रखा है अपने आप को। मैं अब तुम्हारी हर बात का सख्ती से जवाब दूंगा। मैं तो तुमको कमजोर समझ कर चुप था वरना अभी तक तो कभी का सीधा कर दिया होता। साहब काफी देर तक इसी प्रकार बोलते रहे, धमकाते रहे। फ़िर उनकी पत्नी की आवाज आई, अरे इतने बहादुर हो तो पहले डबल बेड के नीचे से तो निकालो वहां क्यों छिपे हो। पत्नी के हाथ में उसका हथियार था।
क्या हमको ऐसा नही लगता कि हमारी सरकार भी डबल बेड के नीचे से आतंकवादियों को धमका रही है। वे जब चाहें जहाँ कुछ भी कर देतें हैं और हमारे नेता सिवाए बयानों के कुछ नहीं करते।
---- चुटकी---

बिना आँख और
बिना कान
वाली सरकार,
तुझको हमारा
बार बार नमस्कार।

Thursday, November 27, 2008

कब तक सोये रहोगे, अब जाग जाओ

कभी अजमेर, कभी दिल्ली ,कभी जयपुर और अब मुंबई आतंक के साये में। घंटों चली मुठभेड़,प्रमुख अफसर मरे,विदेशी मरे, आम आदमी मरा। और हम हैं कि सो रहें हैं। देश में सांप्रदायिक सदभाव कम करने की कोशिश लगातार की जा रहीं हैं। आतंकवाद हमारी अर्थव्यवस्था को नेस्तनाबूद करने जा रहा है। हम घरों में बैठे अफ़सोस पर अफ़सोस जता रहें हैं। हमारी सरकार कुछ नहीं कर रही। नेता हिंदू मुस्लिम का नाम लेकर असली आतंकवाद को अनदेखा कर रहें हैं। इस देश में कोई ऐसा नहीं है जो उनसे इस बात का जवाब मांग सके कि यह सब क्यों और कब तक? पहली बार कोई यहाँ खेलनी आई विदेशी टीम दौरा अधुरा छोड़ कर वापिस जा रही है। शेयर बाज़ार बंद रखा गया। देश के कई महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव हो रहें हैं। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। राजनीतिक दल एक दुसरे पर प्रहार कर रहें हैं। आतंकवाद चुनावी मुद्दा है,जिसके सहारे सब अपना वोट बैंक बढ़ाने में लगें हैं। इस मुद्दे पर बोलते तो सभी हैं लेकिन कोई भी करता कुछ नहीं। अगर हम सब इसी प्रकार सोते रहें तो आतंकवादियों के हौंसले बुलंद ही बुलंद होते चले जायेंगें। इसलिए बहुत हो चुका, बहुत सह चुके इस आतंकवाद को,अब हमें एक जुट होकर लडाई लड़नी होगी। शब्दों से नहीं उन्ही की तरह हथियारों से।कब तक सोते रहोगे अब तो जाग जाओ।
----स्वाति अग्रवाल

सरकार हमारी गांधीवादी

--- चुटकी----

मानवता डर गई
नैतिकता मर गई
बहुत मुश्किल घड़ी है,
सरकार हमारी
पक्की गाँधीवादी
हाथ बांधे खड़ी है।

---- गोविन्द गोयल

मिली क्यों,मिली तो बिछड़ी क्यों

सुना है,पढ़ा है और किसी
सयाने ने बताया भी था कि
भाग्य में जो है वह मिलेगा
तुम मिलीं, मिलकर बिछड़ गईं
सवाल ये कि
तुम मेरे भाग्य में थीं
तो बिछड़ क्यों गईं
अगर भाग्य में नहीं थीं तो
तुम मिलीं कैसे
अगर दोनों बात भाग्य के साथ है
तो फ़िर ये बिल्कुल साफ है कि
भाग्य बदलता है
इसलिए तुम उदास मत होना
अपना मिलन फ़िर हो सकता है।

Wednesday, November 26, 2008

एक छोटी सी नाव

पानी का एक अनंत समंदर
उसमे उमड़ रहा भयंकर तूफान
आकाश से मिलने को आतुर
ऊपर ऊपर उठती लहरें
ऐसे मंजर को देख
बड़े बड़े जहाजों के कप्तान
हताश होकर एक बार तो
किनारे की आश छोड़ दें,
मगर एक छोटी सी नाव
इस भयंकर तूफान में
इधर उधर हिचकोले खाती हुई
किस्मत की लकीरों को मिटाती हुई
यह सोच रही है कि
कभी ना कभी तो
मुझे किनारा नसीब होगा
या बीच रस्ते में ही इस
समंदर की अथाह गहराइयों में
खो जाउंगी सदा के लिए।
नाव की कहानी मेरे जैसी है
वह समुंदरी तूफान में
किनारे की आस में है
चली जा रही हैं,
और मैं जिंदगी के तूफान में
जिंदगी की आस में
जिए जा रहा हूँ।

Monday, November 24, 2008

नेता और अभिनेता

---- चुटकी----

जो जितना
बड़ा नेता,
वह उतना
बड़ा अभिनेता।
----
जन जन के सामने
करता है विनय,
यही तो है उसका
सबसे बड़ा अभिनय।

---गोविन्द गोयल

सूरत तक भूल जायेंगें

---- चुटकी----

आज जो नेता आपको
अपना सबसे खास
आदमी बतायेंगें,
चुनाव जीतने के बाद
वही नेता जी आपकी
सूरत तक भूल जायेंगें।

--- गोविन्द गोयल

Sunday, November 23, 2008

चौंक चौंक उठता है आलम मेरी तन्हाई का
यूँ अचानक वो हर बात पे याद आतें हैं।
----
दास्ताने इश्क में कुछ भी हकीकत हो तो फ़िर
एक अफ़साने के बन जाते हैं अफ़साने बहुत।
----
आज दुनिया में वो ख़ुद अफसाना बन के रह गए
कल सुना करते थे जो दुनिया के अफ़साने बहुत।
---
पीते पीते जब भी आया तेरी आंखों का ख्याल
मैंने अपने हाथों से तोडे हैं पैमाने बहुत।
----
नहीं मालूम अब क्या चीज आंखों में रही बाकी
नजर तो उनके हुस्न पे जाकर जम गई अपनी।
----
उन आंखों में भी अश्क भर्रा गए हैं
हम जो bhule से उनको याद आ गए हैं
---
खिजां अब नहीं आ सकेगी चमन me
baharon से कह दो की हम आ गए हैं।

----सब कुछ संकलित है

मैं देरी से नहीं उठा

ना, मैं देरी से नहीं उठा
वक्त ने मुझे हमेशा की तरह
सूरज की पहली किरण से भी पहले
आकर जगा दिया था,
और मैं उठ भी गया था
मगर मैंने इंसानियत को
जब सोते हुए देखा,
पीड़ित,बेबस,लाचार,गरीब इंसानों को
अपने अपने दर्द से रोते बिलखते देखा,
नगर के इंसानों के परिवारों के
घरों को उजड़ते देखा
तो मैं जाग नहीं सका
मुझे गहरी नींद आ गई,
क्योंकि जब तक इंसानियत
नहीं जागती, मेरे जैसा अकेला
इंसान जग कर क्या करता
और इसलिए मैं सो गया
अपना मुहं ढांप कर
सदा के लिए, सदा के लिए।

Friday, November 21, 2008

श्रीगंगानगर--बीजेपी बचाव की मुद्रा में

श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ में विधानसभा की ११ सीट हैं। गत चुनाव में बीजेपी ने सात,कांग्रेस,लोकदल[चौटाला] ने एक एक सीट जीती। दो निर्दलीय भी विजयी हुए थे। इस बार देखते हैं कि कहाँ क्या हो सकता है।
श्रीगंगानगर- यहाँ से कांग्रेस के राज कुमारगौड़,बीजेपी के राधेश्याम गंगानगर मुख्य उम्मीदवार हैं। गजेंद्र सिंह भाटी बीजेपी का बागी है। बीएसपी का सत्यवान है। इनके अलावा 9 उम्मीदवार और हैं। जिनके नाम हैं-ईश्वर चंद अग्रवाल,केवल मदान,पूर्ण राम, भजन लाल, मनिन्द्र सिंह मान, राजेश भारत,संजय ,सत्य पाल और सुभाष चन्द्र। बीजेपी के राधेश्याम गंगानगर गत चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर ३६००० वोट सर हारे। उन्होंने कुछ दिन पहले ही बीजेपी का दामन थामा और बीजेपी ने टिकट उनको थमा दी। बस यह बात जन जन को हजम नहीं हो रही। जिसको जनता ने ३६०० मतों से हराया वह चौला बदल कर फ़िर सामने है। जिस कारण राजकुमार गौड़ भारी पड़ रहें हैं। बीजेपी के दिमाग में यह बात फिट करदी कि श्रीगंगानगर से केवल अरोडा बिरादरी का उम्मीदवार ही चुनाव जीत सकता है। राधेश्याम गंगानगर इसी बिरादरी से है। जैसे ही कांग्रेस ने इनको नकारा बीजेपी ने लपक लिया। मगर ये बात याद नही आई कि इसी अरोडा बिरादरी के राधेश्याम गंगानगर ने सात चुनाव में से केवल तीन चुनाव ही जीते। जो जीते वह कम अन्तर से जो हारे वह भारी अन्तर से। बीजेपी कार्यकर्त्ता क्या आम वोटर को राधेश्याम का चौला बदलना हजम नहीं हो रहा। राधेश्याम अभी तक बीजेपी के नेताओं को अपने पक्ष में नहीं कर पाए। एक को मना भी नहीं पाते कि दूसरा कोप भवन में चला जाता है। सब जानते हैं कि राधेश्याम गंगानगर ने कांग्रेस में किसी को आगे नहीं आने दिया, इसलिए अगर यह बीजेपी में जम गया तो उनका भविस्य बिगड़ जाएगा। लोग सट्टा बाजार और अखबारों में छपी ख़बरों की बात करतें हैं। लेकिन इनका भरोसा करना अपने आप को विचलित करना है। १९९३ में सट्टा बाजार और सभी अखबार श्रीगंगानगर से बीजेपी के दिग्गज नेता भैरों सिंह शेखावत की जीत डंके की चोट पर दिखा रहे थे। सब जानतें हैं कि तब श्री शेखावत तीसरे स्थान पर रहे थे।

Thursday, November 20, 2008

हाँ, वह तुम ही तो थी


हाँ वह तुम ही तो थी, उस रोज
मेरे साथ मेरे घर के आँगन में
तुम्ही ने तो मेरा हाथ पकड़ कर
इन तूफानों से निकल जाने की
क़समें खाई थी,
मगर ये क्या,आज तुम कह रही हो
अब और ना चल सकुंगी
मैं तुम्हारे साथ इन तूफानों में,
मगर क्यों,
क्या अब तुम्हे डर लगने लगा है
या किसी नाव के साथ मल्लाह मिल गया है
जो तुम्हे अपने सीने से लगा
बिना किसी डर के तुफानो से
सुरक्षित निकाल कर
किनारे पर पहुँचा देगा,
ठीक है, तुम जाओ
अपने उस मल्लाह के साथ
खुदा तुम्हारे तूफानों को भी
मेरे रास्ते में डाल दे
और तुम पहुँच जाओ
अपने साथी के साथ बे खौफ
अपनी मंजिल पर
और मैं अकेला देखता रहूँ
तुम्हे उस पार जाते हुए।

---गोविन्द गोयल

कांग्रेस ने थूका,बीजेपी ने चाटा

श्रीगंगानगर में कांग्रेस के दिग्गज नेता हुए राधेश्याम गंगानगर। उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा के सात चुनाव लड़े। तीन जीते, चार हारे। जो हारे शानदार तरीके से। नेता जी कांग्रेस को अपनी माँ कहते। इस बार कांग्रेस ने नेता जी को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। नेता जी उम्मीदवारी के बिना रहा नहीं सकते थे। सीधे गए बीजेपी की चौखट पर। आज वे श्रीगंगानगर से बीजेपी के उम्मीदवार हैं। बीजेपी जो अपने आप को बड़ी आदर्शवादी, अनुशासित,नीतियों वाली पार्टी बताती है। उसने एक ऐसे नेता को अपना उम्मीदवार बना दिया जो एक सप्ताह पहले तक उसको गाली निकलता था। इस नेता को भारत माता की प्रतिमा के हाथ में वन्देमातरम वाले भगवा झंडे से भी एतराज था। आज यह नेता ख़ुद भगवे में लिपटा हुआ है। मजेदार बात ये कि जो बीजेपी नेता गत चुनाव में इसके प्रति जहर उगला करते थे वे अब राधेश्याम जी के चरणों में लोट पोट होकर अपने आप को धन्य समझ रहें हैं। सिद्धान्त,नीतियां,आदर्श सब के सब हवा हो गए। जिस नेता को जनता ने गत चुनाव में ३६००० वोटों से नकार दिया था वह इस बार चोला बदल कर जनता के बीच आ गया। बीजेपी की टिकट के दावेदार मुहं ताकते रह गए। बीजेपी के नेताओं की तो मज़बूरी हो सकती है लेकिन कार्यकर्त्ता तो मजबूर नहीं। राधेश्याम गंगानगर ने यहाँ जातिवाद का जहर घोला। अब उसको ३६ बिरादरी याद आ रहीं हैं। पता नहीं इसशहर का क्या होगा।

Tuesday, November 18, 2008

वजूद ही ख़त्म हो जाए

मैं जानता था कि मेरे चारों ओर
स्वार्थी व मौका परस्त लोगों का जमघट है
मुझ ये भी मालूम था कि
ये सब अपने स्वार्थ के लिए
मेरे खून का कतरा कतरा
पीने से भी नहीं हिचकिचायेंगें
मगर मैंने ये नहीं सोचा था कि
यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा
मुझे बिस्तर पर पड़ा देख
ये लोग यह सोचते हुए
मुझसे दूर चले जायेंगें कि
इसमे अब खून रहा ही कहाँ है
जो हमें पीने को मिलेगा
और मैं अकेला बिस्तर पर पड़ा
अपनी टूटी फूटी छत को घूरने लगा
यह सोचते हुए कि कहीं
यह उन लोगो की तरह
साथ छोड़ने के स्थान पर मुझे
अपने आँचल में सदा के लिए
ना छिपा ले
जिससे कि मेरा रहा सहा
वजूद ही ख़त्म हो जाए।

---गोविन्द गोयल

कुर्सी ही है ईमान

---- चुटकी-----

कुर्सी पार्टी
कुर्सी निष्ठा
और कुर्सी
ही है ईमान,
अपने नेता का
सच यही है
तू मान
या ना मान।

----गोविन्द गोयल

Monday, November 17, 2008

जनता का उम्मीदवार कुन्नर

जब राजनीतिक दलों के नेता बिना समझे टिकट की बन्दर बाँट करतें हैं तो जनता को सामने आना पड़ता है। ऐसा ही कुछ हुआ श्रीगंगानगर जिले के श्री करनपुर में , यहाँ एक नेता हैं गुरमीत सिंह कुन्नर। इनको पार्टी ने टिकट नहीं दिया, नहीं दिया तो नहीं दिया। कुन्नर ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। बस उसके बाद इलाके की जनता कुन्नर के यहाँ पहुँच गई। कोई सौ दो सौ नहीं। कई हजार। श्री कुन्नर ने चुनाव ना लड़ने की बात कही। लेकिन जनता कुछ भी सुनाने को तैयार नहीं हुई। आख़िर श्री कुन्नर को यह कहना पड़ा, जो आपकी इच्छा हो, मैं आपके साथ हूँ। लो साहब, इलाके में जनता का उम्मीदवार बन गया कुन्नर। कांग्रेस और बीजेपी की टिकट पाने वाले जनता को तरस गए और श्री कुन्नर के यहाँ अपने आप कई हजार लोग आ पहुंचे। इस भीड़ ने कुन्नर का पर्चा दाखिल करवाया। भीड़ ने कुन्नर को भरोसा दिलाया है कि वे उनके लिए दिन रात एक कर देंगे। हिंदुस्तान में बहुत कम जगह ऐसा होता होगा जब जनता किसी को जबरदस्ती चुनाव लड़ने को मजबूर करती है। जब जन जन साथ हो तो फ़िर विजय कैसे दूर रह सकती है।

बे पैंदे के लौटे

---- चुटकी ----

नेता, छोटे
हो या मोटे,
सब के सब हैं
बे पैंदे के लौटे।
-----
नेता, छोटे
हो या बड़े,
सब होतें हैं
चिकने घड़े।

--- गोविन्द गोयल

Sunday, November 16, 2008

गिरगिट समाज के लिए संकट

श्रीगंगानगर की सड़कों पर बहुत ही अलग नजारा था। चारों तरफ़ जिधर देखो उधर गिरगिटों के झुंड के झुंड दिखाई दे रहे थे। गिरगिट के ये झुंड नारेलगा रहे थे " नेताओं को समझाओ, गिरगिट बचाओ", "गिरगिटों के दुश्मन नेता मुर्दाबाद", " रंग बदलने वाले नेता हाय हाय"," गिरगिट समाज का अपमान नही सहेगा हिंदुस्तान"। ये नजारा देख एक बार तो जो जहाँ था वही रुक गया। ट्रैफिक पुलिस को उनके कारन काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। गिरगिटों के ये सभी झुंड जा रहे थे राम लीला मैदान। वहां गिरगिट बचाओ मंच ने सभा का आयोजन किया था। रामलीला मैदान का नजारा, वह क्या कहने। लो जी सभा शुरू हो गई। जवान गिरगिट का नाम पुकारा गया। उसने कहा- यहाँ सभा करना कायरों का काम है। हमें तो उस नेता के घर के सामने प्रदर्शन करना चाहिए जिसने रंग बदल कर हमारी जात को गाली दी है। बस फ़िर क्या था सभा में सही है, सही है, के नारों के साथ जवान गिरगिट खड़े हो गए। एक बुजुर्ग गिरगिट ने उनको समझा कर शांत किया।
गिरगिट समाज के मुखिया ने कहा, इन नेताओं ने हमें बदनाम कर दिया। ये लोग इतनी जल्दी रंग बदलते हैं कि हम लोगों को शर्म आने लगती है। जब भी कोई नेता रंग बदलता है , ये कहा जाता है कि देखो गिरगिट कि तरह रंग बदल लिया। हम पूछतें हैं कि नेता के साथ हमारा नाम क्यों जोड़ा जाता है। नेता लोग तो इतनी जल्दी रंग बदलते हैं कि गिरगिट समाज अचरज में पड़ जाता है। मुखिया ने कहा, हम ये साफ कर देना चाहतें है कि नेता को रंग बदलना हमने नहीं सिखाया। उल्टा हमारे घर कि महिला अपने बच्चों को ये कहती है कि -मुर्ख देख फलां नेता ने गिरगिट ना होते हुए भी कितनी जल्दी रंग बदल लिया, और तूं गिरगिट होकर ऐसा नहीं कर सकता,लानत है तुझ पर ... इतना कहने के बाद तडाक और बच्चे के रोने की आवाज आती है।मुखिया ने कहा हमारे बच्चे हमें आँख दिखातें हैं कहतें हैं तुमको रंग बदलना आता कहाँ है जो हमको सिखाओगे, किसी नेता के फार्म हाउस या बगीचे में होते तो हम पता नहीं कहाँ के कहाँ पहुँच चुके होते। मुखिया ने कहा बस अब बहुत हो चुका, हमारी सहनशक्ति समाप्त होने को है। अगर ऐसे नेताओं को सबक नहीं सिखाया गया तो लोग "गिरगिट की तरह रंग बदलना" मुहावरे को भूल जायेंगे।
लम्बी बहस के बाद सभा में गिरगिटों ने प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में सभी दलों के संचालकों से कहा गया कि अगर उन्होंने रंग बदलने वाले नेता को महत्व दिया तो गिरगिट समाज के पाँच जीव हर रोज उनके घर के सामने नारे बाजी करेंगे। मुन्ना गिरी से उनको समझायेंगे। इन पर असर नही हुआ तो सरकार से "गिरगिट की तरह रंग बदलना" मुहावरे को किताबों से हटाने के लिए आन्दोलन चलाया जाएगा। ताकि ये लिखवाया जा सके "नेता की तरह रंग बदलना"। सभा के बाद सभी गिरगिट जोश खरोश के साथ वापिस लौट गए।

Saturday, November 15, 2008

बीजेपी के पास है क्या ? आयातित नेता

श्रीगंगानगर में बीजेपी ऐसा दल है जिसके पास ना तो कोई अनुशासन है और न नेता। जिसके जो जी में है आता है कर लेता है। ऐसा ही हाल जयपुर दिल्ली बैठे इनके बड़े बड़े नेताओं का है। श्रीगंगानगर से लेकर जयपुर दिल्ली तक में कोई ऐसा नहीं जो यह कह सके कि उसने श्रीगंगानगर में बीजेपी को नेता दिया है। यहाँ जो भी नेता चुनाव लड़ने के लिए आया वह या तो बीजेपी का नहीं था या शहर का नही था। १९९३ में बीजेपी के दिग्गज नेता भैरों सिंह शेखावत ने विधानसभा का चुनाव लड़ा। सब जानते हैं कि वे श्रीगंगानगर के वोटर तक नहीं है। १९९८ में महेश पेडिवाल मैदान में थे। वे जनता दल से आए। ऐसा ही २००३ में हुआ, जब जनता दल से बीजेपी में आए सुरेन्द्र राठौर ने बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। ऐसा ही हाल अब २००८ में होता दिख रहा है। सारी उमर बीजेपी को कोसने वाले काग्रेस की टिकट पर ७ बार चुनाव लड़नेवाले राधेश्याम गंगानगर को मैदान में उतारने की तैयारी है। मतलब कि असली बीजेपी नेता या कार्यकर्त्ता नहीं। जनसंघ या आर आर एस वाला तो कोई आज तक आया ही नही। थोड़ा और आगे चलें, यहाँ जो चाहे बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक बुला लेता है। कई दिन पहले नगर मंडल श्रीगंगानगर ने बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई। अब गजेन्द्र सिंह भाटी ऐसा कर रहें हैं। नगर मंडल के अध्यक्ष हनुमान गोयल का कहना है कि उन्होंने कोई बैठक नहीं बुलाई। है ना हैरानी की बात। वैसे गजेन्द्र सिंह भाटी बीजेपी महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष रितु गजेन्द्र भाटी के पति हैं। ख़ुद श्री भाटी के पास कोई पोस्ट नहीं है। उनका कहना है कि कोई भी कार्यकर्त्ता इस प्रकार की बैठक बुला सकता है। इसे कहते हैं अनुशासन।

चाँद पर पहुँच गया भारत

----चुटकी----

बीजेपी- कांग्रेस में
लग रहें हैं
टिकटों के दाम,
इसका मतलब
भारत सचमुच
चाँद पर
पहुँच गया श्रीमान।

---गोविन्द गोयल

Friday, November 14, 2008

कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है

ये ठीक है कि कुछ पाने के लिए
कुछ ना कुछ खोना पड़ता है,
लेकिन मैं इस बात से अंजान था कि
मैं कुछ पाने के लिए
इतना कुछ खोता चला जाउंगा
कि मेरे पास कुछ और
पाने के लिए
कुछ भी नहीं बचेगा,
और मैं और थोड़ा सा कुछ
पाने के लिए
अपना सब कुछ खोकर
उनके चेहरों को पढता हूँ ,
जो मेरे सामने
कुछ पाने की आस में आए ,
मैं उनको कुछ देने की बजाये
अपनी शर्मसार पलकों को झुका,
उनके सामने से एक ओर चला जाता हूँ
किसी ओर से कुछ पाने के लिए।

Thursday, November 13, 2008

कभी श्याम बन के कभी राम बन के

श्रीगंगानगर के दिग्गज कांग्रेसी नेता राधेश्याम पार्टी ले टिकट नही मिलने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए। यह सब लिखा है " तिरंगे नेता की दुरंगी चाल में" आज कई लोग मिले और कहा कि कुछ हो जाए, तो जनाब उनका सुझाव सर माथे।
नेता जी का नाम है राधेश्याम और ये बीजेपी में शामिल हुए हैं। तो कहना पड़ेगा---
कभी श्याम बन के
कभी "राम" बन के
चले आना, ओ राधे चले आना।
कभी तीन रंग में आना
कभी दुरंगी चाल सजाना
ओ राधे चले आना।
अब राधेश्याम का नाम बदल कर राधेराम कर दिया गया है। ताकि सनद रहे और वक्त जरुरत काम आए। श्रीगंगानगर इलाके में राधेश्याम के राधेराम में बदल जाने की बात लोगों को हजम नही हो रही। क्योंकि यह आदमी कांग्रेस को अपनी माँ कहता था।

नैनो का का सारा काजल

साजन जैसे हरजाई हैं
सावन के काले बादल
रो रो कर बिखर गया
नैनो का सारा काजल।
----
यादों की तरह छा जातें हैं
मानसून के मेघ
काँटों जैसी लगती है
हाय फूलों की सेज।
----
हिवडा मेरा झुलस रहा
ना जावे दिल से याद
सब कुछ मिटने वाला है
जो नहीं सुनी फरियाद।

Wednesday, November 12, 2008

तिरंगे नेता की दुरंगी चाल

लगभग चालीस साल पहले की बात है श्रीगंगानगर में राधेश्याम नाम का एक आदमी था। बिल्कुल एक आम आदमी जो पाकिस्तान से आया था। उसने मेहनत की, आगे बढ़ा,थोड़ा जयादा आगे बढ़ा,राजनीति में आ गया। नगरपालिका का चेयरमेन बना। नगर में पहचान बनी,रुतबा हुआ। तकदीर ने साथ दिया दो पैसे भी पल्ले हो गए। उसके बाद इस आदमी ने पीछे मुड़कर देखा ही नही। कांग्रेस ने इसका ऐसा हाथ पकड़ा कि यह कांग्रेस का पर्याय बन गया। १९७७ से २००३ तक सात बार कांग्रेस की टिकट पर श्रीगंगानगर से विधानसभा का चुनाव लड़ा। तीन बार जीता चार बार हारा। एक बार तो राधेश्याम के सामने भैरों सिंह शेखावत तक को हारना पड़ा। उसके बाद राधेश्याम, राधेश्याम से राधेश्याम गंगानगर हो गए। २००३ में यह नेता जी ३६००० मतों से हार गए। तब इनको ३४१४० वोट मिले थे। इनको हराने वाला था बीजेपी का उम्मीदवार। इस बार कांग्रेस ने राधेश्याम को उम्मीदवार नही बनाया। बस उसके बाद तो नेता जी आपे से बहार हो गए,कांग्रेस नेताओं को बुरा भला कहा। बिरादरी की पंचायत बुलाई,लेकिन सभी ने नकार दिया। आज इस नेता जी ने दिल्ली में बीजेपी को ज्वाइन कर लिया। अब इनके श्रीगंगानगर से बीजेपी उम्मीदवार होने की उम्मीद है। इनके घर पर कई दशकों से इनकी शान का प्रतीक बना हुआ कांग्रेस के झंडे के स्थान पर बीजेपी का झंडा लगा दिया गया है। जब झंडा बदला जा रहा था तब लोग यह कह रहे थे कि झंडा डंडा सब बदल गया, तब नारदमुनि का कहना था कि जब आत्मा ही बदल गई तो झंडे डंडे की क्या बात। आत्मा के इस बदलाव ने सब के चेहरे के भाव बदल कर रख दिए। राजनीति तेरी जय हो,ऐसी राजनीति जिसमे नीति कहीं दिखाई नहीं देती।

श्रीगंगानगर में नेशनल कांफ्रेंस

भारत-पाक सीमा के निकट स्थित श्रीगंगानगर के एम डी कॉलेज में आगामी १२-१३ दिसम्बर को "भारतीय बैंकिंग का बदलता हुआ चेहरा" विषय पर नॅशनल कांफ्रेंस का आयोजन किया जाएगा। इस में हिंदुस्तान के जाने माने लोग अपने पत्रों का वाचन करेंगे। दुनिया भर में जारी मंदी के इस दौर में इस कांफ्रेंस का बहुत महत्व माना जा रहा है।
यहाँ यह इसलिए लिखा जा रहा है क्योंकि एक तो यह उस कॉलेज में हो रही है जिसमे मैं पढता था। दूसरा इसके संयोजक हैं मेरे लिए सम्माननीय डॉ ओ पी गुप्ता। कोई भी जानकारी या सुझाव का आदान प्रदान उनसे इस नम्बर ०९४१४९४८९१३ पर किया जा सकता है।

झूठे हैं तेरे वादे

भोला मन नहीं समझ सका
तेरे चालाक इरादे
तूने तो अब आना नहीं
झूठें हैं तेरे वादे।
----
तिल तिल मैं यहाँ जल रही
तूं लिख ले मेरे बैन
चिता को आग लगा जाना
मिल जाएगा चैन।
----
कितने सावन बीत गए
मिला ना मन को चैन
बादल तो बरसे नहीं
बरसत है दो नैन।
----
तेरे दर्शन की आस को
जिन्दा है ये लाश
इस से ज्यादा क्या कहूँ
समझ ले मेरी बात।

---गोविन्द गोयल

Tuesday, November 11, 2008

तुम्हारी किताबों की किस्मत

मुझसे अच्छी है तुम्हारी
इन किताबों की किस्मत
जिन्हें तुम हर रोज़
अपने सीने से लगाती हो
मेरे बालों से कहीं अधिक
खुशनसीब है
तुम्हारी इन किताबों के पन्ने
जिन्हें तुम हर रोज़ बड़े
प्यार से सहलाती हो
मेरी रातों से भी हसीं हैं
तुम्हारी इन किताबों की रातें
जिन्हें तुम अपने पास सुलाती हो
इतनी खुशनसीबिया देखकर भी
तुम्हारी इन किताबों की
मेरी आँखे हर पल बार बार रोतीं हैं
क्योंकि हर साल तुम्हारे सीने से लगी
एक नई किताब होती है
वो पुरानी किताब पड़ी रहती है
एक तरफ़ आलमारी में 'गोविन्द" की तरह
इस उम्मीद के साथ कि
शायद एक फ़िर सीने से लगा लो
तुम इस पुरानी किताब को।




Monday, November 10, 2008

प्रीत-विरह-फाल्गुन-सजनी

दरवाजे पर खड़ी खड़ी
सजनी करे विचार
फाल्गुन कैसे गुजरेगा
जो नहीं आए भरतार।
----
फाल्गुन में मादक लगे
जो ठंडी चले बयार,
बाट जोहती सजनी के
मन में उमड़े प्यार।
----
साजन का मुख देख लूँ
तो ठंडा हो उन्माद,
बरसों हो गए मिले हुए
रह रह आवे याद।
---
प्रेम का ऐसा बाण लगा
रिस रिस आवे घाव,
साजन मेरे परदेशी
बिखर गए सब चाव।

---
हार सिंगार छूट गए
मन में रही ना उमंग
दिल पर लगती चोट है
बंद करो ये चंग।
----
परदेशी बन भूल गया
सौतन हो गई माया,
पता नहीं कब आयेंगें
जर जर हो गई काया।
---
माया बिन ना काम चले
ना प्रीत बिना संसार,
जी करता है उड़ जाऊँ,
छोड़ के ये घर बार।
---
बेदर्दी साजन मेरा
चिठ्ठी ना कोई तार,
एक संदेशा नहीं आया
कैसे निभेगा प्यार।
----गोविन्द गोयल

Saturday, November 8, 2008

वंशवाद का बखेडा

---- चुटकी----

नेहरू,इंदिरा
राजीव, राहुल
फ़िर शायद बढेरा,
हिंदुस्तान में पता
नहीं कब तक रहेगा
वंशवाद का बखेडा।

---गोविन्द गोयल

लोकतंत्र में वंश वाद की आंधी

---चुटकी-----

नेहरू,इंदिरा
राजीव और
अब राहुल गाँधी,
लोकतंत्र में भी
खूब चल रही है
वंश वाद की आंधी।

---गोविन्द गोयल

Friday, November 7, 2008

सास बहू को दी विदाई

---- चुटकी----

एक महिला ने
दूसरी से कहा
ये क्या हो गया हाय,
एकता कपूर ने
सास बहू को
बोल दिया बाय।
----
पता नहीं किसने
सास बहू को
नजर लगाई है,
जो इसको बंद
करने की नौबत आई है।
----
शायद "बा" का अमरत्व
ले बैठा इसको,
बा तो मरती नही
इसलिए ख़ुद ही खिसको।

----गोविन्द गोयल

Thursday, November 6, 2008

यमराज को बनाया भाई

हिंदुस्तान की संस्कृति उसकी आन बान और शान है। दुनिया के किसी कौने में भला कोई सोच भी सकता है कि मौत के देवता यमराज को भी भाई बनाया जा सकता है। श्रीगंगानगर में ऐसा होता है हर साल,आज ही के दिन। महिलाएं सुबह ही नगर के शमशान घाट में आनी शुरू हो गईं। हर उमर की महिला,साथ में पूजा अर्चना और भेंट का सामान,आख़िर यमराज को भाई बनाना है। यमराज की बड़ी प्रतिमा, उसके पास ही एक बड़ी घड़ी बिना सुइयों के लगी हुई, जो यह बताती है की मौत का कोई समय नहीं होता। उन्होंने श्रद्धा पूर्वक यमराज की आराधना की उसके राखी बांधी, किसी ने कम्बल ओढाया किसी ने चद्दर। यमराज को भाई बनाने के बाद महिलाएं चित्रगुप्त के पास गईं। पूजा अर्चना करने वाली महिलाओं का कहना था कि यमराज को भाई बनाने से अकाल मौत नहीं होती। इसके साथ साथ मौत के समय इन्सान तकलीफ नही पाता। चित्रगुप्त की पूजा इसलिए की जाती है ताकि वह जन्मो के कर्मों का लेखा जोखा सही रखे। यमराज की प्रतिमा के सामने एक आदमी मारा हुआ पड़ा है,उसके गले में जंजीर है जो यमराज के हाथ में हैं। चित्रगुप्त की प्रतिमा के सामने एक यमदूत एक आत्मा को लेकर खड़ा है और चित्रगुप्त उसको अपनी बही में से उसके कर्मों का लेखा जोखा पढ़ कर सुना रहें हैं। सचमुच यह सब देखने में बहुत ही आनंददायक था। महिलाएं ग़लत कर रही थी या सही यह उनका विवेक। मगर जिस देश में नदियों को माता कहा जाता है वहां यह सब सम्भव है।

नेताओं की छंटनी

----चुटकी----

कट गया टिकट
खडें हैं बीच मंझधार,
नेताओं पर भी
पड़ रही है
छंटनी की मार।

----गोविन्द गोयल

गंगा की भी होगी वही गति

---- चुटकी----

गंगा को घोषित
किया रास्ट्रीय नदी,
हॉकी,चीता, मोर
जैसी हो जायेगी
अब इसकी गति।

--गोविन्द गोयल

निष्ठा केवल अपने स्वार्थ के लिए

श्रीगंगानगर में एक कांग्रेस नेता हैं राधेश्याम गंगानगर। इनको कांग्रेस का पर्याय कहा जाता था। गत सात विधानसभा चुनाव ने ये कांग्रेस के उम्मीदवार थे। बीजेपी के दिग्गज भैरों सिंह शेखावत को भी इनके सामने हार का मुहं देखना पड़ा। इस बार कांग्रेस ने इस बुजुर्ग को टिकट देना उचित न समझा। बस तो निष्ठा बदल गई,बगावत की आवाज बुलंद कर दी। जिनकी चौखट पर टिकट के लिए हाजिरी लगा रहे थे उन नेताओं को ही कोसना शुरू कर दिया। यहाँ तक कहा कि टिकट पैसे लेकर बांटी गई हैं। ऐलान कर दिया कि कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त करवा देंगें। अब इस नेता ने महापंचायत बुलाई है उसमे निर्णय होगा कि नेता जी को चुनाव लड़ना चाहिए या नही। राधेश्याम आज जो कुछ है वह कांग्रेस की ही बदोलत है जिसकी खिलाफत करने की वह शुरुआत कर रहा है। कांग्रेस ने जिस राज कुमार गौड़ को टिकट दी है वह बुरा आदमी नहीं है, साफ छवि का मिलनसार आदमी है। ३७ साल से राजनीति में है। सीधे सीधे किसी प्रकार का कोई आरोप नहीं है। लेकिन उसके पास कार्यकर्त्ता नहीं हैं। इतने लंबे राजनीतिक जीवन में गौड़ के साथ केवल तीन आदमी ही दिखे। ऐसे में वे क्या करेंगे कहना मुश्किल है। रही बात बीजेपी कि तो उसके पास इस से अच्छा मौका कोई हो नहीं सकता। जाति गत समीकरणों की बात करें तो उसके पास प्रहलाद टाक है। राजनीति में बिल्कुल फ्रेश चेहरा। इनके कुम्हार समाज को अभी तक बीजेपी कांग्रेस ने टिकट नहीं दी है। ओबीसी के इस इलाके में बहुत अधिक मतदाता हैं। कांग्रेस में बगावत के समय वे बीजेपी के लिए कोई चमत्कार करने सकते हैं। अन्य उम्मीदवार फिलहाल पीछे हुए हैं, उनकी टिकट मांगने की गति धीमी हो गई उत्साह भी नहीं रहा। जनता तो बस इंतजार ही करने सकती है।

Wednesday, November 5, 2008

बात बेबात ठहाके लगाओ

---- चुटकी----

सब के सब अपने
नवजोत सिद्धू को
अपना आदर्श बनाओ,
बात हंसने की
हो या न हो
बस ठहाके लगाओ।

----गोविन्द गोयल

भात भरेगा मामा

---- चुटकी----

झोली फैलाकर
खड़े रहो
होगी ऐसी करामात,
खुशियाँ घर घर
बरसेंगीं,मामा[चन्दा]
ऐसा भरेगा भात।

----गोविन्द गोयल

बंद कर दो हंगामा

---- चुटकी-----

दुःख,दर्द ,तकलीफ
सब भूल जाओ
ना करो कोई हंगामा,
सब समस्याओं का
समाधान कर देगा
अपना चंदा मामा।

---गोविन्द गोयल

Tuesday, November 4, 2008

क्यों दिखाती हो झूठे ख्वाब

---- चुटकी----

जो सालों से नहीं मिला
वह अब मिलेगा,
स्नेह करेगा
तुम्हे पुचकारेगा,
प्यार से पूछेगा
हमसे दिल की बात,
हे सखी,क्यों तंग करती हो
क्यों दिखाती हो झूठे ख्वाब,
कुछ और ना समझ सखी
नेता जी आयेंगें
क्योंकि सामने हैं चुनाव।

---गोविन्द गोयल

Monday, November 3, 2008

कुत्ते को घुमाते हैं शान से

---- चुटकी----
बुजुर्ग माँ-बाप
के साथ चलते
हुए शरमाते हैं हम,
अपने कुत्ते को
सुबह शाम
घुमाते हैं हम।
------
अधिकारों के लिए
लगा देंगें
अपने घर में ही आग,
अपने कर्त्तव्यों को
मगर भूल जाते हैं हम।
----
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
खंड खंड हो रहा है देश
फ़िर भी अनेकता में एकता
के नारे लगाते हैं हम।
----
सबको पता है कि
बिल्कुल अकेले हैं हम,
हम, अपने आप को
फ़िर भी बतातें हैं हम।
----गोविन्द गोयल

Sunday, November 2, 2008

काजल की कोठरी में भी झकाझक

हम बुद्धिजीवी हर वक्त यही शोर मचाते हैं हैं की हाय!हाय! राजनीति में साफ छवि और ईमानदार आदमी नही आते। लेकिन देखने लायक जो हैं उनकी क्या स्थिति इस राजनीति में है,उसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। श्रीगंगानगर जिले में है एक गाँव है २५ बी बी। वहां के गुरमीत सिंह कुन्नर पंच से लेकर लेकर विधायक तक रहे। लेकिन किसी के पास उनके खिलाफ कुछ कहने को नही है। कितने ही चुनाव लड़े मगर आज तक एक पैसे का भी चंदा उन्होंने नहीं लिया। किसी का काम करवाने के लिए उन्होंने अपने गाड़ी घोडे इस्तेमाल किए। राजस्थान में जब वे विधायक चुने गए तो उन्हें सबसे ईमानदार और साफ छवि के विधायक के रूप में जाना जाता था। कांग्रेस को समर्पित यह आदमी आज कांग्रेस की टिकट के लिए कांग्रेस के बड़े लीडर्स की चौखट पर हाजिरी लगाने को मजबूर है। जिस करनपुर विधानसभा से गुरमीत कुन्नर टिकट मांग रहा है वहां की हर दिवार पर लिखा हुआ है कि
गुरमीत सिंह कुन्नर जिताऊ और टिकाऊ नेता है किंतु यह कहानी कांग्रेस के लीडर्स को समझ नहीं आ रही। गत दिवस हजारों लोगों ने गुरमीत सिंह कुन्नर के यहाँ जाकर उनके प्रति समर्थन जताया, उनको अपना नेता और विधायक माना। ऐसी हालातों मेंकोई सोच सकता है कि ईमानदार और साफ छवि के लोग राजनीति में आयेंगें। पूरे इलाके में कोई भी एजेंसी सर्वे करे या करवाए, एक आदमी भी यह कहने वाला नहीं मिलेगा कि गुरमीत सिंह कुन्नर ने किसी को सताया है या अपनी पहुँच का नाजायज इस्तेमाल उसके खिलाफ किया। जब राजनीति का ये हाल है तो कोई क्या करेगा। यहाँ तो छल प्रपंच करने वालों का बोलबाला है। राजनीति को काजल की कोठरी कहना ग़लत नहीं है। जिसमे हर पल कालिख लगने की सम्भावना बनी रहती है। अगर ऐसे में कोई अपने आप को बेदाग रख जन जन के साथ है तो उसकी तारीफ की ही जानी चाहिए।
जागरूक ब्लोगर्स,इस पोस्ट को पढ़ने वाले बताएं कि आख़िर वह क्या करे? राजनीति से सन्यास लेकर घर बैठ जाए या फ़िर लडाई लड़े जनता के लिए जो उसको मानती है।

छठी का दूध याद आ गया

----- चुटकी-----

राज ठाकरे तो
एक दम से
पलटी खा गया ,
शायद उसको
छठी का दूध
याद आ गया।

----गोविन्द गोयल

Saturday, November 1, 2008

दीपावली की सजावट प्रतियोगिता

श्रीगंगानगर में दिवाली पर बाज़ार में सजावट पतियोगिता का आयोजन किया गया। यह आयोजन पब्लिक पार्क दुकानदार यूनियन ने करवाई थी। दिवाली की रात को श्रीराम तलवार,विधायक ओ पी महेन्द्रा,व्यापार मंडल के अध्यक्ष नरेश शर्मा,राकेश शर्मा, संजय कालड़ा और न्यूज़ चैनल की रिपोर्टर स्वाति अग्रवाल आदि के निर्णायक मंडल ने बाज़ार में दुकानों का अवलोकन कर विजेताओं को ईनाम दिए। उसी समय के दो चित्र ।


अंधेर नगरी चौपट राजा

---- चुटकी----

अंधेर नगरी
चौपट राजा,
हिंदुस्तान का तो
बज गया बाजा।
टके सेर भाजी
टके सेर खाजा,
लूटनी है तो
जल्दी से आजा।

---गोविन्द गोयल

Friday, October 31, 2008

नारदमुनि ख़बर लाये हैं

देश,काल, धर्म, वक्त,परिस्थितियां कैसी भी हों एक दूसरे को गिफ्ट देने से आपस में प्यार बढ़ता है। यह बात माँ द्वारा अपने लाडले के गाल पर चुम्बन लेने से लेकर जरदारी का अमेरिका की उस से हाथ मिलाने तक सब पर एक सामान लागू होती है। जब सब ऐसा करते कराते हैं तो पत्रकारों ने क्या बुरा किया है। ऐसा ही सोचकर एक नेता ने पत्रकारों को गिफ्ट पैक बड़े स्टाइल से भिजवाए। ये पैक उनका छोटा भाई और उनका पी आर ओ कम प्रवक्ता कम खबरिया लेकर गए। पैक में एक डिब्बा काजू कतली का और एक शगुन वाला लिफाफा। लिफाफे में थी नकदी। किसी में ११०० रूपये,किसी में २१०० रूपये किसी में ५१०० रूपये भी थे। नेता जी की नजरों में जो जैसा था उसके लिए वैसा ही गिफ्ट। अब कईयों ने इसको स्वीकार कर लिया और कईयों ने वापिस लौटा दिया। सबके अपने अपने विवेक, इस लिए सबने अपनी ओर से ठीक ही किया। कोई इसको सही बता रहा है कोई ग़लत। दोनों सही है। नेता जी के पास फिल्ड में रहने वाले पत्रकारों से हाथ मिलाने का इस से अच्छा मौका और हो भी क्या सकता था। मालिक लोगों के पास तो बड़े बड़े विज्ञापन पहुँच जाते हैं। ऐसे में पत्रकारों ने लिफाफे लेकर अच्छा किया या नहीं किया, इस बारे में नारदमुनि क्यों कुछ कहे। नारदमुनि तो ख़ुद पत्रकारों से डरता है।

सिक्युरिटी का साया है

यह चुटकी उन देवी देवताओं, गुरुओं, साधू संतो,कथा वाचकों को समर्पित है जिनको अपने प्राणों की बहुत अधिक चिंता रहती है। इसी चिंता से बचने के लिए उनके चारों ओर सुरक्षा का घेरा रहता है। वैसे तो ये महानुभाव कहते हैं कि जिसने जन्म लिया उसकी मौत निश्चित है, आदमी को जीवन मरन के फेर नहीं पड़ना चाहिए। जिसने जैसे कर्म किए हैं उसको वैसे ही फल मिलेंगें। ये वे तमाम उपदेश देतें हैं जिनका उनकी अपनी जिन्दगी से कोई खास वास्ता नहीं होता।

-----चुटकी----

उफ़ ! कैसा घोर
कलयुग आया है,
"भगवान" के
चारों ओर भी
सिक्युरिटी का साया है।

--गोविन्द गोयल

Thursday, October 30, 2008

जो हो हिंदुस्तान का

---- चुटकी----

ये उत्तर का
वो पश्चिम का
तू बिहार का
मैं राजस्थान का,
कोई एक तो बताओ
जो हो बस
केवल हिंदुस्तान का।

---गोविन्द गोयल

Wednesday, October 29, 2008

ये पब्लिक है सब जानती है

चुनाव में टिकट का बहुत अधिक महत्व होता है। टिकट मिलते ही नेता के चारों ओर हजारों लोगो का जमावड़ा हो जाता है। अगर टिकट उस पार्टी का हो जिसकी सरकार बनने के चांस हो तो भीड़ का अंत नही रहता। मगर नारदमुनि ने आज मामला उल्टा देखा। मीडिया से लेकर आम जन तक में यह बात आई कि भारत पाक सीमा पर स्थित श्री करनपुर विधानसभा क्षेत्र से इस बार शायद गुरमीत सिंह कुन्नर को कांग्रेस अपना उम्मीदवार न बनाये। बस फ़िर क्या था, जन जन का हजूम गुरमीत सिंह कुन्नर के समर्थन में उमड़ पड़ा। भीड़ ऐसी कि किसी दमदार पार्टी उम्मीदवार के यहाँ भी होनी मुश्किल है। शायद ही कोई ऐसा वर्ग या जाति होगी जो श्री कुन्नर से मिलने उनके पास न गया हो। सब का एक ही कहना था कि टिकट मिले न मिले हमारे उम्मीदवार तो आप ही हैं। भीड़ का समुद्र जैसे यहाँ से वहां तक कांग्रेस से बगावत करने को तैयार लगा। जन जन ने यह कहते सुना गया कि गुरमीत सिंह के सामने बीजेपी का कोई भी नेता टिकट लेने तो तैयार नहीं है। ऐसे में कांग्रेस पता नहीं क्यों ऐसे आदमी को उम्मीदवार बनाने पर तुली है जिसका इलाके में कोई जनाधार तो दूर की बात ठीक से जनता तक नहीं है। श्री कुन्नर के समर्थन में आई भीड़ ने साफ शब्दों में कहा कि हम लोग किसी के पास टिकट लेने नहीं जायेंगें , गुरमीत सिंह कुन्नर की टिकट जनता है। अगर कोई दूसरा टिकट लाया तो उसको रिटर्न टिकट साथ लानी होगी। पता नहीं कांग्रेस के लीडर ये बात जानते हैं या नहीं।

सारी रात जले वो भी

--- -----चुटकी------

माना कि तुम दीप जला रही हो
दिवाली की खुशियाँ मना रही हो
क्या हाल होगा उसका, जरा सोचो
जिसको तुम भुला रही हो,
जला देना एक दीपक उसका भी
तुम्हारे दीपक के साथ जले वो भी
जिस तरह जलता है दिल मेरा
उसी तरह जिंदगी भर जले वो भी।

----गोविन्द गोयल

आज होगी उनकी दिवाली

नारदमुनि रात से ही व्यस्त थे। लक्ष्मी की गतिविधियों की जानकारी प्रभु तक पहुंचानी थी। लक्ष्मी चंचल यहाँ जा, वहां जा। जिसके बरसी खूब बरसी, जिनके यहाँ नहीं गई तो नहीं गई। नारदमुनि ने देखा कि लक्ष्मी माँ तो झूठे, मक्कार,सटोरिये,भ्रष्ट नेता अफसर, कर्मचारी, बेईमानों के यहाँ इस प्रकार जा रही थी जैसे वे उनके मायके के हों। ये सब के सब पुरी शानो-शौकत के साथ लक्ष्मी जी का स्वागत सत्कार करने में लगे थे। नारदमुनि इनके खारों के बाहर खड़े इंतजार करते रहे । लक्ष्मी जी की अधिकांश कृपा ऐसे लोगों पर ही हुई। अब लक्ष्मी जी थक गईं। उन्होंने उल्लू से कहा कि वह बाकी के काम निपटा के क्षीर सागर आकर रिपोर्ट करे। अब उल्लू तो उल्लू है उसने वही किया जो उल्लू करता है। इन सब काम में सुबह हो गई। नारदमुनि प्रभु की ओर प्रस्थान कर रहे है। रस्ते में हर गली में उन्हें चिथडों के सामान कपड़े पहने हुए बच्चे गली में बिखरे पटाखों के कूडे में कुछ तलाश करते दिखे। नारदमुनि ने सोचा कि नगर के अधिकांश बच्चे तो सो रहें हैं। ये कूडे में कुछ तलास कर रहें हैं। नारदमुनि ने पूछ लिया। बच्चे कहने लगे, साधू बाबा हम तो पटाखे खोज रहें हैं। शहर की हर गली में इस प्रकार कूडे में बहुत सारे पटाखे मिल जायेंगे, जितने ज्यादा पटाखे मिलेंगे उतनी ही अच्छी हमारी दिवाली होगी। क्योंकि हमारे पास खरीदने के लिए तो रूपये तो होते नहीं सो हम तो इसी प्रकार दिवाली की रात के बाद पटाखे की तलाश कूडे में करते हैं। नारदमुनि क्या करता, उसके पास कोई जवाब भी नही था। सच ही तो है। देश में करोड़ों लोग अपनी दिवाली इसी प्रकार ऐसे लोगो की झूठन से अपने त्यौहार मानते हैं जिनके यहाँ लक्ष्मी शान से आती जाती है। नारदमुनि ने सारा हाल जाकर प्रभु को सुना दिया। प्रभु जी सुनकर मुस्कुराते रहे, जैसे हमारे नेता औरअफसर लोगों की समस्याओं को दुःख को सुनकर मुस्कुराया करते हैं। नारायण नारायण

Tuesday, October 28, 2008

जेब खाली तो कैसी दिवाली

---- चुटकी----

जिसकी जेब खाली
उसकी कैसी दिवाली,
जिसके पास माया
उसकी तो हर रोज
दिवाली है भाया।

--- गोविन्द गोयल

नारदमुनि को मेनका का भ्रम

नारदमुनि दिवाली पर नगर भ्रमण कि निकले । चारों ओर आनंद ही आनंद बिखरा हुआ था। उल्लास और उत्साह की महक इस आनंद को बढ़ा रही थी। मंदी का कहीं अता पता नहीं दिख रहा था। परम्परागत और आधुनिक परिधानों से लक दक हर उमर के लोग लोग रौनक में चार-पाँच चाँद एक साथ लगा चुके थे। नारदमुनि भी नारायण नारायण करते इधर से उधर ,उधर से इधर आ जा रहे थे। अचानक नारदमुनि ने देखा कि हर कोई एक ही और देख रहा है। नारदमुनि नारायण नारायण तो भूल गए और उस तरफ़ देखा जिस ओर सब देखा देखी कर रहे थे।नारदमुनि चक्कर खा गए, अरे ! ये मेनका यहाँ कहाँ से आ गई? कमर तो उसके पास थी ही नहीं, बाकी के साइज़ लेडिज टेलर होता तो देखते ही बता देता। जींस टॉप पहने हुए,जुल्फें खुली,नारदमुनि भी नारायण नारायण की बजाय अहा ! वाह !,आह ! करने लगे। थोड़ा निकट जाकर देखा तो उस मेनका के स्वर्ग की मेनका होने का वहम मिट गया। नारदमुनि की टेंशन और बढ़ गई, ये मेनका नहीं तो वैसी ही अनुपम सुंदरी यहाँ धरती पर और वाह भी भारत पाक सीमा के निकट श्रीगंगानगर में क्या कर रही है। पडौस में तो श्रीमान जरदारी रहतें हैं। नारदमुनि उसको देखते ही रहे, और उनको काम भी क्या था? नारदमुनि ने देखा कि बाइकों पर सवार कई कितने ही भंवरे कीट पतंगों की तरह उसके आगे पीछे घूमने लगे। अपने हर अंग पर हुस्न का बोझ लिए वह बाला भी सब समझ रही थी इसलिए कभी कभी वहउनकी ओर देख उनके दिल की हसरत पूरी कर देती थी। इस कारण कई बाइक वाले आपस में टकराते टकराते बचे। इस से पहले कि नारदमुनि उसके पास जाकर उस से ये पूछते कि हमारी स्वर्ग वाली मेनका तुम्हारी रिश्तेदार है क्या, उनको ऊपर से सिग्नल मिल गया चुप रहने का। ऊपर से सिग्नल मिलने के बाद किसकी हिम्मत होती आउट ऑफ़ दी वे काम करने की। सो नारदमुनि फ़िर नारायण नारायण करने लगे। वह यूँ ही बिजलियाँ गिराती रही।
बाद में भेद खुला कि वह कोई लड़की नहीं बल्कि किसी डांसर ग्रुप का डांसर है। उसका चेहरा मोहरा बिल्कुल लड़कियों जैसा है इसलिए कभी कभी वह किसी त्यौहार और मेले ठेले में ऐसे किलोल करके लोगों को हैरत में डालता रहता है।

Monday, October 27, 2008

भज ले नारायण का नाम

----- चुटकी-----

भज ले नारायण का नाम
नारद, नारायण का नाम,
भज ले नारायण का नाम
नारद,नारायण का नाम।
-----
मनमोहन जी टिके हुए हैं
बिना किए कुछ काम,
उनकी जुबां पर रहता है
बस इक मैडम का नाम।
भज ले नारायण का ......
-----
पीएम पद का चिंतन करे तो

लगता नहीं है ध्यान
आडवाणी के ख्वाब में आए
इक मोदी का नाम।
भज मन नारायण का नाम.....
-----
चुनाव आए तो सारे नेता
झुक झुक करे सलाम,
उसके बाद वही नेता जी
दुत्कारे सुबह और शाम।
भज मन नारायण का नाम....
-----
महंगाई की बात करे जो
वो बालक नादान,
शेयरों के दाम गिर रहे
सेंसेक्स पड़ा धडाम।
भज मन नारायण का नाम....
-----
धर्मनिरपेक्ष है वही देश में
जो ले अल्लाह का नाम,
साम्प्रदायिक है हर वो बन्दा
जो भजता राम ही राम।
भज मन नारायण का नाम....

-----गोविन्द गोयल

Sunday, October 26, 2008

राशन का बजट बढ़ गया

---- चुटकी----

राशन का बजट बढ़ गया
इन्कम वही पुरानी है,
अर्थशास्त्री फेल हो गया
घर घर यही कहानी है।
----
बेटा मांगे एक फुलझडी
तो आँख में आए पानी है

माँ के चेहरे को पढ़ पढ़ के
बच्ची हुई सयानी है।
----
माँ बेटी की चाहतें मर गई
देख रसोई का सन्नाटा,
नून तेल तो आ जाएगा
कहाँ से आएगा गोविन्द आटा।

----गोविन्द गोयल

Saturday, October 25, 2008

राजनीति के माध्यम से सेवा









राजनीति का रास्ता बहुत अधिक काँटों वाला है। ये कहा जाता है कि राजनीति आम आदमी के बस की बात नहीं। इस में फ्रेश और गैर राजनीतिक परिवार के सदस्य को कोई नहीं पूछता। श्रीगंगानगर में इन बातों को झूठा साबित करने में लगे हैं प्रहलाद राय टाक। स्नातकोतर,विधि स्नातक प्रहलाद टाक राजनीति के पथरीले रास्ते पर बिल्कुल फ्रेश हैं। मगर उनको कोई कह नही सकता कि राजनीति में उनका ये पहला कदम है। उनका फ्रेश होना उनकी अतिरिक्त क्वालिटी बन गया है। प्रहलाद टाक समाज सेवा भावी तो पहले से ही हैं अब वे राजनीति को सेवा का माध्यम बना कुछ अधिक करना चाहते हैं। इस के लिए फिलहाल श्रीगंगानगर विधानसभा क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना है। उनके या उनके परिवार का इस से पहले राजनीति से कोई लेना देना नहीं था। प्रहलाद राय का परिवार कभी भी राजनीति में एक्टिव नहीं रहा। उन्होंने गत कई सप्ताह में अपने आप को बीजेपी के कार्यकर्त्ता के नाते इतना एक्टिव किया कि आज वे बीजेपी के बड़े लीडर्स की नजरों में हैं। राजनीति में किस तरह टिक पायेंगें इसके जवाब में प्रहलाद टाक कहते है- मेरा मकसद राजनीति को व्यवसाय बनाना नहीं है। मैं तो पहले भी सामाजिक रूप से एक्टिव था और अब और अधिक एक्टिव रहूँगा। मैं तो समाज सेवी ही कहलाना पसंद करता हूँ। मुझे आशा है कि जन जन फ्रेश को आगे बढने को मौका देगा । फोटो-१-अपने साथियों के साथ प्रहलाद टाक। फोटो-२-बीजेपी लीडर राजेन्द्र सिंह राठौर के साथ। फोटो-३-बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष श्री माथुर के साथ। फोटो-४- बीजेपी के प्रदेश प्रभारी गोपी नाथ मुंडे के साथ प्रहलाद राय टाक ।

उस दिन होगी असली दिवाली

---- चुटकी----
घर घर मंगल दीप जलाएं
कोई कौन रहे न खाली,
चारों तरफ़ हो खुशियों का आलम
कोई पेट रहे ना खाली।
-----
सब के तन पर कपडें हों
बेघर के घर अपने हों,
नगर में दिखे ना कोई सवाली
उस दिन होगी असली दिवाली।
----
अधरों पर मुस्कान खिले
हर हाथ को काम मिले,
घर घर बाजे खुशियों की थाली
कब आएगी ऐसी दिवाली।
----
मस्ती में झूमे मतवाले
किसी के घर भी लगे ना ताले
रोशन हो एक कौना कौना
कहीं दिखे ना चादर काली
किस दिन आएगी ऐसी दिवाली।
----
----गोविन्द गोयल

जनता का राज है

---- चुटकी-----

महाराज है,
महारानी है
युवराज है ,
जी हाँ, भारत में
जनता का राज है।

--- गोविन्द गोयल

Friday, October 24, 2008

चंदा मामा के यहाँ यान

---- चुटकी-----

चंदा मामा के यहाँ
गया है अपना यान,
शेयर बाज़ार चढेगा
घटेंगे राशन के दाम।
----
सरकार की तरह
मस्त रहो जनाब,
पेट भरे न भरे
देखते रहो ख्वाब।
----
चैनलों पर देखिये
राजनीति के रंग,
नेताओं के नाटक देख
लोग रह गए दंग।
----
जितना जल्दी हो सके
सुरक्षित घर को भाग,
सबके अपने स्वार्थ है
कौन बुझाये आग।

---गोविन्द गोयल