Friday, November 14, 2008

कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है

ये ठीक है कि कुछ पाने के लिए
कुछ ना कुछ खोना पड़ता है,
लेकिन मैं इस बात से अंजान था कि
मैं कुछ पाने के लिए
इतना कुछ खोता चला जाउंगा
कि मेरे पास कुछ और
पाने के लिए
कुछ भी नहीं बचेगा,
और मैं और थोड़ा सा कुछ
पाने के लिए
अपना सब कुछ खोकर
उनके चेहरों को पढता हूँ ,
जो मेरे सामने
कुछ पाने की आस में आए ,
मैं उनको कुछ देने की बजाये
अपनी शर्मसार पलकों को झुका,
उनके सामने से एक ओर चला जाता हूँ
किसी ओर से कुछ पाने के लिए।

6 comments:

seema gupta said...

लेकिन मैं इस बात से अंजान था कि
मैं कुछ पाने के लिए
इतना कुछ खोता चला जाउंगा
कि मेरे पास कुछ और
पाने के लिए
कुछ भी नहीं बचेगा,
" very well said, its the real truth of the life.."

Regards

Unknown said...

सही कहा है. इस पाने-खोने के चक्कर में आदमी आदमी नहीं रहता, न जाने क्या हो जाता है?

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

बहुत ही सुंदर

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सही कहा, हम इस झुठे जगत को पाने की चाह मै अपना सब कुछ खो देते है, ओर जब आखरी सांस मै देखते है तो.... सब कुछ लूटा देखते है...
धन्यवाद, एक बहुत ही गहरी बात कह दी आप ने

Aruna Kapoor said...

aakhir hum chaand par pahuch hi gaye!....hum sab bhaaratiya, beshak bharat hi hai!

दिगम्बर नासवा said...

Well said sir.

मैं कुछ पाने के लिए
इतना कुछ खोता चला जाउंगा
कि मेरे पास कुछ और
पाने के लिए
कुछ भी नहीं बचेगा,

very close to reality