Monday, January 4, 2010

ख़ुशी पर भारी गम


तमाम खुशियों पर
भारी है
तेरी
जुदाई का गम,
मिलने के
सारे के सारे
जतन
पड़ गए कम,
हो सके तो
चले आना
मेरी ओर,
निकलने को है
अब मेरा दम।

11 comments:

मनोज कुमार said...

अच्छी रचना।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

वाह-वाह बहुत खूब, जिनसे आरजू की गई है पता नहीं वो सुनते भी है या नहीं ?

डॉ. मनोज मिश्र said...

गोदियाल साहब सही कह रहें हैं.

Renu goel said...

सीधे सीधे शब्दों में कही गयी जुदाई की लम्बी सी कहानी ....

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

kavita achchi lagi .badhai

Kusum Thakur said...

बहुत अच्छी रचना !!

विनोद कुमार पांडेय said...

भला कौन रुक पाएगा जब इतने बढ़िया लफ़्ज से बुलाएँगे..सुंदर भाव..धन्यवाद!!

Udan Tashtari said...

सटीक!!



’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

Randhir Singh Suman said...

nice

Roshani said...
This comment has been removed by the author.
Roshani said...

नारद मुनि जी नव वर्ष में आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें....