Friday, March 12, 2010

बात तो कुछ भी ना थी

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बात तो, कभी भी
कुछ भी ना थी,
मैं तो बस यूँ ही
मुस्कुराता रहा,
अपनों को खुश
रखने के लिए
अपने गम
छिपाता रहा।
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मेरे अन्दर झांकने वाले
गुम हो गए दो नैन,
कौन सुनेगा,किसको सुनाऊं
कैसे मिले अब चैन।

8 comments:

वाणी गीत said...

मुस्कुराहटों से मुस्कुराहटें बढती हैं ...इसलिए मुस्कुराते रहे ...गम छिपा कर भी ...कि और लोग मुस्कुरा सकें ...!!

निर्मला कपिला said...

बात तो, कभी भी
कुछ भी ना थी,
मैं तो बस यूँ ही
मुस्कुराता रहा,
अपनों को खुश
रखने के लिए
अपने गम
छिपाता रहा।
बहुत खूब। जिसे ये कला आ गयी समझो उसे जीना आ गया। शुभकामनायें

Udan Tashtari said...

वाह! बहुत खूब!!


नारायण!! नारायण!

हेमन्त कुमार said...

अन्तर्मन तो है न ।
आभार ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मैं तो बस यूँ ही
मुस्कुराता रहा,
अपनों को खुश
रखने के लिए
अपने गम
छिपाता रहा।
यूँ समझिये नारद मुनि जी कि लगभग हरेक का ही यही हाल है !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

चलिए एक चुटकी आज आपके साथ मेरी भी ;
उस प्रदेश में
आजकल काफी
"मिस- मैनेजमेंट" चल रही है !
क्योंकि वहाँ
"सुश्री" की गवर्नमेंट चल रही है !

shikha varshney said...

वाह! बहुत खूब!!

Gautam RK said...

मेरे अन्दर झांकने वाले
गुम हो गए दो नैन,
कौन सुनेगा,किसको सुनाऊं
कैसे मिले अब चैन।



Very Fine Sir....





Regards

Ram Krishna Gautam