Friday, September 30, 2011

दुर्गा मंदिर में भी अतिथि जिला कलेक्टर देवो भवः


श्रीगंगानगर-अतिथि देवो भवः। अतिथि भगवान है। मेहमान ईश्वर तुल्य है।वह देवता के समान है। और अतिथि जिला कलेक्टर हो तो! तो वह 33 करोड़ देवी देवताओं के बराबर हो जाता है। जिला कलेक्टर अतिथि चाहे श्रीदुर्गा माता के मंदिर में हों। हैं तो अतिथि ही। और अतिथि देव तुल्य है। तो फिर जब साक्षात देवता,ईश्वर,भगवान आपके समक्ष हो तो फिर उस देवी माता की पूजा,आराधना,वंदना का क्या,जिसको दशकों से मंदिर में विराजमान कर रखा है। जिसके लिए महोत्सव होता है।कलेक्टर आता है।यही,बिलकुल यही दृश्य था विनोबा बस्ती दुर्गा मंदिर में। रात को सवा आठ बजे से लगभग 9 बजे तक। माता का पहला नवरात्रा। शाम की आरती का समय हो चुका। घंटे,घड़ियाल बज रहें हैं। माँ दर्शन को आए नर नारी,बच्चे उत्साह में हैं। पधाधिकारी मुख्य द्वार पर जिला कलेक्टर का इंतजार में।उनके साथ नके कुछ खास भी हैं। कोई फूल माला देख रहा है। किसी के हाथ में ड्राई फ्रूट,मिष्ठान की प्लेट है। चेहरों पर चमक है। घंटे मंदिर में गूंज रहें हैं। लो भक्तो जिला कलेक्टर सपत्नीक मंदिर में पधार चुके हैं। श्री दुर्गा माता का क्या, वो तो माँ हैं। मंदिर में ही रहेंगी। जिला कलेक्टर रोज रोज अतिथि देव कहाँ बनते हैं! घंटे,घड़ियाल के मधुर स्वर के बीच अतिथि का स्वागत हुआ। कलेक्टर और उनकी धर्म पत्नी ने बड़ी ही विनम्रता से आवभगत स्वीकार की। देव पधारे तो साथ फोटो हुई। तब उनको देवी माता के प्रतिमा के समक्ष लाया गया। साथ चलने की हौड़ तो होनी ही थी। अतिथि देव होते हैं ना। देव के संग चलने का अवसर माता ने दिया तो चलना ही था। कलेक्टर,उनकी पत्नी कुछ क्षण हाथ जोड़ माता के समक्ष खड़े रहे। आरती के समय परिक्रमा की इजाजत नहीं होती। परंतु कलेक्टर पत्नी के साथ अतिथि के रूप में थे। अतिथि भगवान होते हैं। इसलिए सब बंधन खुल गए। एक परिक्रमा के पश्चात कलेक्टर की पत्नी ने बहुत ही सादगी,श्रद्धा,विश्वास के साथ एक सामान्य महिला की भांति घुटने के बल बैठ माता को प्रणाम किया। घंटे घड़ियाल बज रहें हैं। पदाधिकारी उनको एक कमरे में ले गए। कुछ मिनट बाद वापिस आए। आरती के बाद उनको स्मृति चिन्ह के रूप में माता का चित्र भेंट किया गया। आरती की मर्यादा,पुजारी की गरिमा,माता के प्रति श्रद्धा सब पीछे रह गए। क्योंकि अतिथि देवो भवः। और अतिथि जिला कलेक्टरएक एसएमएस नरेंद्र शर्मा कामंदिर के बाहर एक भिखारी, एक महिला से,ओ सुंदरी सवा पांच रुपए दे दो अंधा हूं। महिला का पति पत्नी से बोला, दे दो,तुम्हें सुंदरी कह रहा है,यकीनन अंधा ही है।अनिल गुप्ता की लाइन हैमैं खुद से ही बिछड़ा हूँ मेरा पता बताए कौन,सारे जग से रूठा हूं आकार मुझे मनाए कौन।

1 comment:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

कलयुग के भूसुर यहीं हैं।