समय के मारे हैं इसलिए बेचारे हैं।
वरना चाहने वाले तो हमारे भी
आपके जैसे बहुत सारे हैं।
समय के मारे हैं इसलिए बेचारे हैं।
वरना चाहने वाले तो हमारे भी
आपके जैसे बहुत सारे हैं।
श्रीगंगानगर-सिवरेज। ओवरब्रिज। अंडरपास। बढ़िया सड़कें। चारों तरफ हरियाली। सुंदर स्ट्रीट लाइट........और भी बहुत कुछ जो शहर को बहुत अच्छा कहलाने को मजबूर कर दे। मगर ये सब क्या मुर्दों के लिए होगा? वर्तमान हालात में तो इसका जवाब यस ही है। जिंदा ही नहीं रहे तो इन सबका क्या मतलब। ये सब तो इन्सानों के लिए होता है। इंसान इनके लिए नहीं। लाइट आज आवश्यक क्या अतिआवश्यक है। इसके बिना जीवन की कल्पना......बहुत ही मुश्किल है। श्रीगंगानगर शहर में तो कुछ अधिक ही कठिन। क्योंकि यहां इंसान कम मच्छर अधिक है। इंसान तो कई लाख होंगे मच्छर कई करोड़। इंसान गर्मी तो काट ला मगर मच्छरॉ का क्या करे? सोमवार सुबह से मंगलवार सुबह तक शहर में लाइट की क्या स्थिति रही है! सब जानते हैं। संभव है बड़े अधिकारी ना जानते हों। कारण कि उनके यहां वैकल्पिक व्यवस्था रहती है।लाइट जाने का मतलब क्या होता है ये वे भी नहीं समझते होंगे जिनके यहां इंवर्टर है। जनरेटर की सुविधा है। लाइट ना होने का असली अर्थ वही बता सकते हैं जो सारी रात जागे हैं। लाइट तो गई सो गई। मच्छरों ने कुछ पल भी चैन से सोने नहीं दिया। रात को बिजली ना होने से क्या होता है उस शिशु की माँ से पूछो जो रात भर कभी पंखे से। कभी गत्ते से और कभी आँचल से हवा कर मच्छर भागती रही। वह बताएगी उसकी बेचैनी। नहीं भी बताए तो उसकी आँखों में पढ़ लेना। सुबह उसको सुला कर तब कहीं माँ को करार आया होगा। धीरे धीरे घर का काम निपटाती है कि कहीं उसके लाडले की नींद ना टूट जाए। ऐसा ही हाल था बुजुर्गों का। रात भर परेशान रहे। इतनी बेचैनी कि उसका वर्णन करना संभव नहीं। रात भर जागा इंसान जल्दी ड्यूटी करने क्या तो जाएगा। चला भी गया तो क्या काम कर पाएगा। कलेक्टर कहते हैं सिवरेज का निर्माण जल्दी शुरू होगा। अंडर पास भी बनवा देंगे। सड़कों की मरम्मत भी हो जाएगी। स्ट्रीट लाइट भी शहर को जगमग करेंगी। लेकिन कलेक्टर साहब ये सब काम किसके आएगा।लाइट होती नहीं। मच्छरों की भरमार। ऐसे में जिंदा कौन रहेगा? जो स्वस्थ होगा वही। ऐसे हालात में कोई स्वस्थ कैसे रह सकता है। इसलिए आपको कुछ करना है तो पहले मच्छरों ने निजात दिलवाइए। लाइट 24 घंटे नहीं तो उस समय तो रहे जब सबसे अधिक जरूरी हो। यह सब नहीं भी करवा सकते तो कोई बात नहीं। क्योंकि हम तो हमारे चुने जन प्रतिनिधियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते आपको कहने की हिम्मत तो बहुत बड़ी बात है।
श्रीगंगानगर-शुक्रिया जिला कलेक्टर। धन्यवाद एसपी साहब। आभार उन सभी अधिकारियों का जो उनके साथ थे।श्रीगंगानगर के इतिहास में यह पहला मौका था जब कलेक्टर,एसपी की अगुवाई में विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने बस में एक साथ जिला मुख्यालय का भ्रमण किया। उसकी मुख्य समस्या को देखा। उसके समाधान के बारे में चर्चा की।यह तो संभव है कि कलेक्टर एसपी शहर का दौरा करें। अधिकारियों को भी बुला लें। धूल उड़ाती कई सरकारी गाड़ियां इधर उधर आती जाती दिखाई दें। जनता को लगे कि कुछ हो रहा है। मीडिया ये समझे कि कोई बड़ी गंभीर घटना हो गई। पर यह बात कल्पना से परे थी कि जिला प्रशासन ही बस में सवार हो नगर के हालात खुद देखेगा। ना केवल देखेगा बल्कि वहीं चर्चा भी करेगा। शहर का कोई हिस्सा शायद ही बचा होगा जहां बस ना पहुंची हो। बात ये नहीं कि समस्याओं का समाधान होगा या नहीं। बात ये भी तो है कि अब तो खुद प्रशासन ने अपनी आंख से सब कुछ देख लिया। कुछ ना कुछ तो होगा ही। यह सब पब्लिसिटी के लिए किया हो लगता नहीं। क्योंकि कलेक्टर,एसपी को पब्लिसिटी करवा के क्या करना है। प्रशासनिक सूत्रों से पता चला है कि कलेक्टर और एसपी में बहुत अच्छी ट्यूनिंग है। इनका मकसद दीपावली तक शहर की दशा में सुधार करने की है। ताकि इस बड़े त्योहार पर जनता को अपना शहर ठीक ठाक लगे। चाहे बहुत बड़ा सुधार कम समय में करने में कलेक्टर,एसपी सफल ना हों लेकिन इतना जरूर हो जाएगा जिससे जनता को ये लगे कि बस में प्रशासन घूमा तो कुछ तो हुआ। ये संयोग ही है कि ठीक दिवाली के दिन ही इस बार श्रीगंगानगर का स्थापना दिवस भी है। दोनों ही श्रीगंगानगर का स्थापना दिवस नए स्टाइल से मनाने के बारे में न केवल सोच रहें हैं बल्कि दोनों के पास कोई प्लानिंग भी है। सूत्र कहते हैं कि बुजुर्ग व्यक्तियों के अनुभव भी इस प्लानिंग का हिस्सा होंगे। इसके अलावा नगर के अनेक ऐसे व्यक्ति भी स्थापना दिवस समारोह में सक्रिय योगदान देने के लिए प्रशासन के साथ हो सकते हैं जो निर्विवाद हैं। जिनकी सोच कुछ हट के करने की हो। प्रशासन सूत्रो से इसी प्रकार के व्यक्तियों की जानकारी प्राप्त करने में लगा है। संभव है उन तक प्रशासन का संदेह पहुंचे।अनिल गुप्ता कहते हैं-समय स्वयं समझा देगा अपने और पराए कौन,मैं मुद्दत से उसका हूं लेकिन उसे बताए कौन। एसएमएस मनीष गर्ग का—संता बंता से,कौनसी कास्ट के लोग देश के अच्छे नागरिक होते हैं? बंता-बनिए। संता-कैसे?बंता-हर स्थान पर लिखा होता है देश के अच्छे नागरिक “बनिए”।
श्रीगंगानगर-अचरज,प्रसन्नता,खिन्नता,असमंजस, थोड़ी चिंता और उम्मीद। बस यही है राजस्थान सरकार की मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा योजना। वह गरीब जिसको मुफ्त दवा मिली उसको अचरज और प्रसन्नता दोनों का अनुभव हुआ। डाक्टरों के लिमिट तय हो गई।उनको वही दवा लिखनी थी जो उनकी लिस्ट में है।जो नर्सिंग स्टाफ कभी काम नहीं करता था उनको काम करना पड़ा। इसलिए उनको खिन्नता हुई। वे लोग भी ऐसे ही दिखे जिनको पूरी दवा मुफ्त नहीं मिली। सरकारी अस्पतालों के आस पास जो दवाइयों की दुकाने हैं उनके मालिकों के चेहरों पर कुछ उदासी,चिंता थी।आज उनका काम 50 से 75 प्रतिशत कम रहा।मगर इसके बावजूद उनको उम्मीद थी कि उनके कारोबार पर इस योजना का अधिक असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि सरकार पूरी दवा उपलब्ध नहीं करवा सकती। जो दवा सरकारी दुकान पर नहीं होगी वह मरीज को बाहर से लानी ही होगी। इसके अलावा ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत होगी लाइन में लगने की बजाए प्राइवेट दुकान से दवा खरीद कर जल्दी घर या अपने काम पर जाना चाहेंगे। एक वर्ग ऐसा भी है जो असमंजस में है कि उनका क्या होगा? इस वर्ग में पेंशनर्स अधिक हैं। सबसे अधिक राशि भी सरकार इन्ही की दवाओं पर खर्च करती थी। इसका दुरुपयोग भी भी बहुत अधिक होता था। कोई भी योजना पहले ही दिन सौ प्रतिशत सफल हो जाए,संभव नहीं। ऐसा ही यहां भी था। सरकारी दुकान पर जो दवा थी वह दे दी गई। जो नहीं थी पर्ची पर उसके नाम के आगे “उपलब्ध नहीं” की मोहर लगा दी गई। ताकि मरीज दवा कहीं और से ले खरीद सके। इसी योजना को शुरू करने के लिए राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त संसदीय सचिव श्री कुमावत यहां आए। सरकारी अस्पताल प्रांगण में समारोह हुआ। जिसमें आम जन की अनुपस्थिति साफ दिखाई दे रही थी। वहां श्री कुमावत के रूप में सरकार थी। सरकारी पार्टी के नेता थे।विपक्ष के रूप में बीजेपी विधायक राधेश्याम गंगानगर। सरकार के प्रतिनिधि के रूप में प्रभारी सचिव थे। जिला कलेक्टर थे। डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ तो होना ही था।