Wednesday, December 21, 2011

बाहर हंगामा...अंदर चिंतन.....न्यास में नया प्रयोग

श्रीगंगानगर-नगर विकास न्यास। चेयरमेन,सचिव सभी अपने अपने स्थान पर। कोई इधर उधर या घटा बढ़ी होगी तो आगे जिक्र करेंगे। फिलहाल आंखों देखा हाल पढ़ो,आनंद लो। मनन करो और फिर कमेन्ट कि क्या गलत क्या सही। दोपहर बाद साढ़े चार बजे होंगे। सचिव के कमरे से उनकी तेज बोलने की आवाज आने लगी। कान उधर हो गए। जो बरामदे में थे उनकी आंख भी। कुछ मिनट बाद एक कर्मचारी उनके कमरे से बाहर आया। उसने अपने साथ जो हुआ दूसरे कर्मचारी को बताया। दूसरे ने तीसरे को........फिर सभी को पता लग गया। फिर कुछ मिनट बाद सचिव पीए के कमरे में आए। कोई आदेश की बात की। वह कर्मचारी भी पास में था। दूसरे,तीसरे .....कई कर्मचारी भी आ गए। उन्होने सचिव से उनके व्यवहार पर आपति जताई। दोनों पक्षों में तेज आवाज में गरमा गरमी हुई। सचिव ने बात समाप्त करने के लिए पहले तो हाथ जोड़ कर क्षमा याचना की फिर अचानक उस कर्मचारी के पैरों में झुक गए। सभी अवाक! ये क्या हो गया! एक कर्मचारी फिर भी बोलता रहा। तब सचिव ने कहा...अब क्या क्षमा भी नहीं करोगे। आवाज फिर तेज हुई। सचिव ने कहा,काम नहीं करना तो छुट्टी ले लो। कोई एक कर्मचारी बोला.....आप ले लो छुट्टी। सचिव यह कहते हुए कि पब्लिक सब जानती है, कौन कैसा है..... अपने कमरे में चले गए। कुछ क्षण बाद बाहर आए कार में बैठे और रवाना हो गए । कोई कर्मचारी कह रहा था मेडिकल लेकर गए हैं। ऊपर जिक्र किया था कि चेयरमेन भी थे। यस,अब भी हैं। अनुज चेयरमेन भी हैं। मैंने देखा तब तो अनुज उनके साथ वाली कुर्सी पर थे बाद में इधर उधर भी बैठ सकते हैं। उनके अग्रज चेयरमेन जो हैं। जब उनके कमरे के बाहर उनके ही दफ्तर के अधिकारी कर्मचारी हंगामा करने में व्यस्त थे तब चेयरमेन नगर के अनेकानेक पार्षदों के साथ न्यास क्षेत्र की समस्याओं के समाधान पर चिंतन कर रहे थे। अब चेयरमेन न्यास के मुखिया होने के नाते बाहर आकर उनको धमकाते,पुचकारते, समझाते तो चिंतन में खलल पड़ता। इसलिए बैठक जारी रही...... चिंतन का सबसे बढ़िया ढंग भी यही है। बाहर क्या हो रहा है उस तरफ बिलकुल भी ध्यान मत दो। अंदर रहो। अंदर क्या हो रहा है यह किसी को पता नहीं लगना चाहिए। जब चिंतन जनता के लिए जनता के नुमाइंदे कर रहे हो तो फिर हंगामा,तमाशा कोई मायने नहीं रखता। ये तो सोचो कि नेता कितने गंभीर हैं समस्याओं के समाधान के लिए। आनंद कुमार गौरव कहते हैं—समझ गया है मेमना,अब शेरों की चल,बिना बात दोहराएंगे,फिर फिर वही सवाल।

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