Sunday, January 22, 2012

नर सेवा की बजाए अपने प्रचार पर मिट्टी किया धन

श्रीगंगानगर- कहीं पढ़ा था....एक बार मदन मोहन मालवीय विदेश में गए। वहां कुम्भ मेले के बारे में चर्चा चली। उनसे पूछा गया कि कुम्भ मेले में लाखों लोग आते हैं...प्रचार पर बहुत धन खर्च होता होगा। मालवीय जी ने बोले...प्रचार पर खर्च!केवल पच्चीस पैसे। विदेशियों को अचरज हुआ....केवल 25 पैसे! मालवीय जी का जवाब था...हां पच्चीस पैसे। पच्चीस पैसे के पंचांग में मेले की तिथि का जिक्र होता है और लाखों लोग उसी के आधार पर आ जाते हैं कुम्भ मेले में। तब से अब तक जमाना बहुत बदल गया। आज कल तो छोटे छोटे मंदिरो के कार्यक्रम के प्रचार के लिए हजारों हजार खर्च हो जाते हैं। नगर के विख्यात झांकी वाले बाला जी के मंदिर का वार्षिक उत्सव फरवरी में है। उस उत्सव के लिए नगर की हर गली,नुक्कड़,चौराहों पर बैनर,पोस्टर,होर्डिंग लगाए जा चुके हैं। इनकी संख्या इतनी है कि इनको गिनना मुश्किल है। इस पर हजारों.....[वैसे चर्चा ये है कि कई लाख रुपए] रुपए खर्च हो चुके हैं। यह खर्च किसी भी कम का नहीं । क्योंकि यह सामग्री फिर से काम आएगी नहीं। मतलब ये कि जो कुछ खर्च हुआ वह मिट्टी हो गया। इसमें कोई शक नहीं कि आज इस मंदिर के संचालकों के सूरत को देख खूब चंदा मिलता है। किन्तु उसका यह मतलब तो नहीं कि उसको मिट्टी कर दिया जाए। इस राशि से कोई भी ऐसी स्थायी जगह बनाई जा सकती है जो किसी गरीब के काम आए। गरीब परिवारों के लिए कोई कान्वेंट स्कूल खोला जा सकता है। गरीब परिवारों की लड़कियों के लिए रोजगार को कोई ट्रेनिंग सेंटर चल सकता है। और भी बहुत कुछ किस जा सकता है। कहीं और नहीं लगा सकते तो मंदिर का विस्तार कर अंधविद्यालय जैसे कोई प्रकल्प शुरू किए जा सकते हैं। वैसे भी शास्त्र कहते हैं कि नर सेवा नारायण सेवा... किन्तु कई लाख रुपए प्रचार में लगाकर मिट्टी कर देना तो किसी की सेवा नहीं,सिवाए पोस्टर,होर्डिंग बनाने वालों के। जिनको काम मिल जाता है। ऐसा नहीं है कि केवल लेखक को ही आप्ति है। चर्चा तो शहर में भी है मगर कोई बोल कर मंदिर संचालकों की नाराज नहीं करना चाहता।कुछ ये भी सोचते हैं कि धर्म का काम है...हम क्यों पाप के भागी बने। पोस्टर,होर्डिंग्स पर बाला जी छोटे हैं और कीर्तन करने वाले बड़े।कलयुग में भगत बड़ा हो ही जाता है। मंदिर नया हो तो प्रचार पर कुछ राशि खर्च करना जायज कही जा सकती है। इस मंदिर की मंडली तो दूर दूर तक पहुँच रखती है। प्रेस से लेकर पुलिस,बड़े बड़े व्यापारी,नेता सब इनके चरणों में शीश झुकाते हैं। शायद यही वजह है कि कोई इनसे किसी प्रकार का सवाल नहीं करता?जो करता है उसका इनका,इनके इनके चेलों का कोप भाजन बनना तय ही है। रामचरित मानस में तुलसी बाबा ने कहा है...परहित सरस धर्म नहीं भाई,पर पीड़ा नहीं सं अधमाई।

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