Thursday, January 26, 2012

भाटी,मूंदड़ा,जयदीप के बाद अब बी डी अग्रवाल का अवतरण

श्रीगंगानगर-चंद्रा ट्रैवेल्स के गजेन्द्र सिंह भाटी। इंहोने शहर भर में सेवा के अनेक प्रकल्प शुरू किए। काफी राशि विभिन्न प्रकार के आयोजनों पर खर्च की। लगभग हर किसी आयोजन में वे खुद या उनकी पत्नी रितु गजेन्द्र भाटी प्रमुख होती। संजय मूंदड़ा। कौन है जो इस नाम को ना जानता हो। आम जन से लेकर मीडिया तक में समाज सेवी बन कर छा गए। कई लाख रुपए गौ शालाओं को दान कर गो सेवक भी बने। यहां से लेकर दिल्ली-जयपुर तक के नेताओं से रिश्ते बनाए। जयदीप बिहाणी। एक खानदानी पहचान। शिक्षा का इतना बड़ा संस्थान। जिसकी दूर दूर तक पहचान और शान। एक दौर इनका भी चला। कोई कार्यक्रम जयदीप बिहाणी के बिना होना मुश्किल था। विज्ञापनों के सहारे या रिश्तों के भरोसे कैसे भी था। शायद ही कोई दिन होता होगा जब इनके नाम या चित्र प्रकाशित ना होते हो। समय कितनी तेजी से आगे निकल जाता है। आज ये कहां है? क्या गतिविधियां हैं?बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसा नहीं ये कि ये आज सक्षम नहीं रहे। या इनकी ऊर्जा,जोश,समाज सेवा की भावना समाप्त हो गई। सब कुछ है। किन्तु इंहोने अपने कदम रोक लिए।श्री भाटी को विधानसभा के चुनाव ने आईना दिखा दिया। संजय मूंदड़ा को सभापति का चुनाव ले बैठा। जयदीप को टिकट नहीं मिली।स्थान कभी कोई खाली नहीं रहता। इनके कदम रुके तो बी डी अग्रवाल का अवतार हुआ। वे अग्रवाल समाज को एकजुट करके आगे बड़े,बढ़ते ही चले गए। समाज में पहचान बनाई। दूसरे समाज से हाय हैलो हुई। पहले वालों ने लाखों खर्च किए तो श्री अग्रवाल ने करोड़ों की परवाह नहीं की। गरीब विद्यार्थियों हेल्प। बुजुर्गो का सम्मान। स्कूल कॉलेज में उनके प्रायोजित ज्ञान वर्धक कार्यक्रम। वे गंगानगर से निकाल कर नोहर भादरा तक पहुँच गए। ना...ना....करते राजनीति में उम्मीदवार उतारने का एलान कर दिया। दूसरे क्षेत्रों में चुनाव लड़ने के इच्छुक एक दो नेता भी आ गए।आरएसएस के कार्यक्रम को सहयो करने लगे। राधेश्याम गंगानगर से जिनके विचार नहीं मिलते ऐसे नेता भी श्री अग्रवाल को महत्वाकांक्षा को हवा देने लगे। एक और उम्मीदवार तैयार हो गया चुनाव के लिए। पर बात भैरों सिंह शेखावत पर आकर अटक जाती है। पैसा ही चुनाव जीतने का कारक होता तो वे चुनाव नहीं हारते। संपर्क,मतदाताओं से सीधी जानकारी जीत के लिए जरूरी होता तो महेश पेड़ीवल चुनाव जरूर जीतते। श्रीगंगानगर में जीत हार के कारण अभी तक तो कोई समझ नहीं सका। बी डी अग्रवाल समझ गए तो यह उनकी एक और उपलब्धि है।

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