श्रीगंगानगर-दोपहर
के लगभग बारह बजने को है. गांव के अंदर घुसते ही मैदान में चारों तरफ
गाड़ियां ही गाड़िया खड़ी हैं. लोगों के अलग अलग झुण्ड आपस में चर्चा करते
हुए. चबूतरे पर बड़ी संख्या में लोग एक व्यक्ति को घेर कर बैठे हुए हैं.
व्यक्ति ने सर पर कोई टोपी ले रखी है और कन्धों पर ड़ाल रखा है एक शॉल.कोई
आकर हाथ मिलाता है कोई प्रणाम करता है.कुछ लोग उठते हैं तो दूसरे बैठ जाते
हैं. विचार विमर्श होता है. बात चीत चलती रहती है. कुछ क्षण पश्चात टोपी
वाला व्यक्ति उठता है और विनम्रता से ये कहता है कि सर पर पानी ड़ाल
लूं,नहा लूं, कुछ खा के दवा ले लूं. तब तक आप करो आपस में बातचीत. इतना कह
वे अंदर घर के अंदर की तरफ चले, रस्ते में कोई उदास व्यक्ति मिला. उसका
कंधे पर हाथ रख बोले, फेर की होआ...हार जित होंदी रहंदी ए. इतना कह वे अंदर
चले गए. ये था 25 बीबी गांव. जहां सुबह से लोगों का तांता लगा हुआ था
गुरमीत सिंह कुन्नर से मिलने का. श्री कुन्नर वहीं सुबह से ही लोगों से
मिल रहे थे जहां हमेशा मिला करते थे. . चेहरे पर हलकी मुस्कान लिए.अंदर
गुरमीत सिंह कुन्नर की बीवी बलविंदर कौर की हिम्मत तो इससे भी बढ़कर. चेहरे
पर मुस्कान से स्वागत. पराजय की कोई टेंशन नहीं. वहीँ अंदाज मिलने का और
वही चाय लस्सी पिलाने का.बस एक वाक्य में ही उन्होंने जैसे सब कुछ कह
दिया, गहलोत सरकार ही हार गई. हमारी क्या बात है. वैसे भी हार की चिंता,गम
टेंशन वो करे जिसके लिए राजनीति कमाई का साधन है. हमने क्या करना था.
पल्ले से लगे तो लगे. सुबह से शाम तक लोग आते थे. फोन पर काम हो जाता था.
हार जीत की कोई बात नहीं,बस सब के सब खुश रहें और किसी को कोई दुःख ना
हो.यही बहुत है. चुनाव तो आते जाते रहते हैं. हार के बारे में कोई उनसे
थोड़ा अफ़सोस करे भी तो यही कहते हैं वे सब, चिंता करण दी कोई लोड़ नई. इस
बीच कुछ महिलाएं आती हैं और वे खड़ी हो उनसे मिलने के लिए चली जाती
हैं.उनके चेहरे से ये नहीं लगता कि कुछ घंटे पहले उनके पति मंत्री थे और अब
पराजित कांग्रेस प्रत्याशी. घर में वैसी ही चहल पहल और रौनक. नहीं थी तो
वह सरकारी लाल बत्ती वाली गाड़ी. एक व्यक्ति ने तो गुरमीत सिंह से गांवों के
दौरे का प्रोग्राम बनाने को कहा. गुरमीत सिंह बोले,अभी नहीं. एक महीने
बाद. उनके आस पास भीड़ देख कर कोई अंजान व्यक्ति ये नहीं कह सकता कि ये एक
दिन पहले चुनाव में हारे हुए किसी व्यक्ति के यहां है. एक साइड में दो चार
व्यक्तिचुनाव की समीक्षा करने में लगे थे. गत चुनाव के बाद और आज के दिन
में एक फर्क जरुर था वो ये कि उस दिन काफी लोग फूल माला भी लेकर आये थे.
किसी के हाथ में मिठाई भी थी. वह आज नहीं था.भीड़ के लिहाज से आज का दिन
उन्नीस नहीं इक्कीस ही कहा जा सकता है.
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