श्रीगंगानगर-नए चेहरे.नए नकोर सपने. अलग प्रकार की नई सोच. कुछ कर दिखाने का जुनून,उत्साह,उमंग,इरादे. यही तो है राजनीति में एक नया प्रयोग.घिसे पिटे मुरझाए,मुर्दा पुरानी शक्लों
से बिलकुल अलग. उनसे बिलकुल अलहदा जिनको देख देख कर राजनीति से घिन होने
लगी थी. जिनके लिए मांगे गए थे "नोटा". राइट टू रिजेक्ट. बात ये नहीं कि
"आप" की सरकार कितनी लम्बी चलती है. बात ये कि गंदली राजनीति में,कीचड से
लथपथ कही जाने वाली राजनीति में कुछ नया तो शुरू हुआ. सरकारें तो जाने माने
राजनीतिज्ञ चरण सिंह और चंद्रशेखर की भी नहीं चली थीं. अटलबिहारी वाजपई की
सरकार केवल 13 दिन में बैठ गई थी. इससे उन लोगों
का महत्व तो कम नहीं हुआ जो आगे आए नए विचारों के साथ. "आप" कौन लोग हैं
सब जानते हैं. आम से खास होने का मतलब आज अरविन्द केजरीवाल और उनके
साथियों से अधिक और कौन जान सकता है. जिन्होंने कभी राजनीति नहीं की. वे
एकदम से आते हैं और दिल्ली की सत्ता हासिल कर लेते हैं. उस दिल्ली की जहां
लगातार कांग्रेस ने तीन बार सरकार बनाई.बेशक आप को कोई अनुभव नहीं है सरकार
चलाने का. राजनीति करने का. तो उनको आंदोलन करने का कौनसा अनुभव था. उनके
साथियों ने कौनसा हड़तालें की थीं. वह भी तो किया. जनता की आवाज बने. जनता
को जोड़ा.उनकी दम तोड़ती उम्मीदों को जिन्दा किया. राजनीति से नाउम्मीद हो
चुके आम जन को एक नया नेतृत्व देने का भरोसा दिलाया.जनता ने भी विकल्प के
रूप में आप को स्वीकार कर सरकार की टोपी सर रख दी. हर तरफ यही प्रश्न,सरकार
कैसे चलेगी? आप वादे कैसे पूरे करेगी? वादे व्यावहारिक नहीं.इससे पहले
भी इसी प्रकार के प्रश्न मिडिया में थे.आप राजनीतिक दल कैसे बनाएंगे? कैसे
चलाएंगे?चुनाव कैसे लड़ेंगे? जीत कैसे मिलेगी? सब कुछ जनता के सामने हैं.
होता चला गया.बड़े बड़े राजनीतिज्ञों के करियर पर एक बार तो झाड़ू फेर दी.
सवाल अपनी जगह जायज भी थे और आज भी हैं. क्योंकि कई दशकों से ऐसी सोच
विकसित ही नहीं हुई कि ऐसा भी हो सकता है जैसा आप कहते हैं. उम्मीद ही नहीं
होती थी किसी राजनीतिक दल से कि वह आम जन को वादों और आश्वासन के अतिरिक्त
कुछ देगा. इसमें कोई शक नहीं कि आप के भी अभी तक वादे हैं. अब उनको मौका
मिला है वे अपने वादे किस प्रकार से पूरे करते हैं उस पर देश की निगाह टिकी
है. कितने वादे पूरे होते हैं! सीएम का बंगला,बड़ी सुरक्षा न लेने की बातों
पर कितना अमल होता है. अरविन्द केजरी वाल सीएम बनने के बाद आम जन को
कितना उपलब्ध होते हैं,यह कुछ दिन बाद पता लगेगा किन्तु इतना जरुर है कि
राजनीतिक लोगों के प्रति बढ़ते अनादर के इस दौर में कुछ तो ऐसा हुआ है जिसकी
वजह से आम आदमी आप के किसी नेता को अच्छी नजर से अभी देखे चाहे ना लेकिन
देखने के बारे में सोच तो सकता है.भ्रष्टाचार से तंग आया आम आदमी उससे
निजात पाने के सपने एक बार फिर देखने लगे तो बुरी बात क्या है. अभी शुरुआत
है. ठीक वैसी ही जैसी 1985 -86
में असम में हुई थी जब कॉलेजियट ने सरकार बनाई और चलाई थी.आप के माध्यम से
राजनीति में एक नई पूरी तरह उजली सुबह की उम्मीद तो कर ही सकते हैं.दिन
आगे कैसे बढ़ेगा?वह कैसा होगा? उसमें क्या कुछ घटित होगा? कौन चलेगा कौन
नहीं,शाम, और रात कैसी आएगी? यह थोडा समय बीत जाने के बाद आप और हैम के
सामने आ जाएगा.
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