Wednesday, January 30, 2013

ऐसे आजादी को अपनी तो जय राम जी की


श्रीगंगानगर- एक बेटी को बेटा कहने पर एतराज है। कहती है, बेटी को बेटी ही मानो  ताकि बेटी का महत्व बेटी के ही रूप में हो बेटे के रूप में नहीं। वह इस बात को मजबूती से उठाती है। लेख लिखती है। एक बेटी को फेसबुक के बारे में टोका टाकी करो तो वह मुंह फुला लेती है। आईडी ब्लॉक करने की धमकी दे माता-पिता को इमोशनल ब्लेकमेल करती है। समाज में बदलाव का युग है। खुलेपन का जमाना है। नारी को बहुत आगे ले जाना है। उसे सब कुछ करने की छूट हो। कोई समझाइस की जरूरत नहीं। वह सब जानती और समझती है। टोका टाकी और बात बात पर खिच खिच करने वाले माँ-बाप और भाई बहिन के  मन से उतर जाने का आशंका! नारियों को गरिमा से रहने की बात करने वाले को जूते खाने की नौबत आ जाती है। हर किसी में हौड़ मची है नारी की स्वतन्त्रता की। लड़कियों को लड़कों के बराबर रखने की। खुले पन की। जिस पर लगातार इतनी हाय तौबा मची रहती है आखिर वह क्या? क्या लड़कियों को देर रात तक अपने किसी दोस्त के साथ कहीं भी जाने देना ही खुलापन है! कुछ भी करने की छूट ही नारी को आगे बढ़ाती है!लड़की को आधे अधूरे कपड़े पहने देखना ही आजादी है! हर कोई जानता है की आज कोई भी परिवार  लड़की को घर में बंद नहीं रखता। उसको बढ़िया से बढ़िया,अपनी हैसियत से अधिक शिक्षा दिलाता है। बड़े बड़े शहरों में भेजता है। बड़ी बड़ी कंपनी में जॉब की आजादी है। देश- विदेश कहीं भी अकेले वह आती जाती है। घर की हर वह सुविधा उसको उपलब्ध है जो दूसरे मेंबर्स को। नारी को आगे बढ़ने के बराबरी के अवसर हैं। उसको अपनी मर्जी से अपनी राह चुनने की आजादी है। इससे भी आगे इंटर कास्ट लव मैरिज। दशकों पहले ऐसी बात पर भी हँगामा हो जाता था। परिवार के  दूसरे लड़के लड़कियों के रिश्तों में परेशानी आती थी। अब यह लगभग सामान्य बात है। लेकिन इसके बावजूद अगर किसी परिवार को ये पता लग जाए कि उसकी लड़की किसी लड़के से मिलती है, कोई चक्कर है तो वह टेंशन में आ जाता है। स्कूल से कोई शिकायत आ जाए तो माता-पिता का स्कूल स्टाफ से आँख मिलना मुश्किल जो जाता है। यह इसलिए नहीं कि वो नारी के दुश्मन है। यह इसलिए क्योंकि वे अपनी लड़की की बदनामी से डरते हैं। वे उसे अपने से अधिक प्यार करते हैं। चाहते हैं। उसके बढ़ते कदमों के साथ उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाए रखना ही उनकी कामना होती है। बस ऐसे परिवारों को नारी का दुश्मन समझ लिया जाता है। सार्वजनिक रूप से बेशक कोई ये कहकर बल्ले बल्ले हो सकता है कि ये उसे अपनी लड़की के किसी भी समय किसी के साथ कहीं पर जाने पर कोई एतराज नहीं किन्तु सच्चाई इसके विपरीत होती है। संभव है कुछ महानगरों के कुछ परिवारों में ऐसा किसी कारण विशेष से होता हो। परंतु सच यही है कि लड़की के भटकने का डर सभी को लगता है और इसी कारण वह बस एहतियात रखता है। उसे बेड़ियों में नहीं जकड़ता। इस एहतियात का  सब अपनी अपनी सोच के मुताबिक व्याख्या करते हैं। अर्थ निकालते हैं। समय,काल,परिस्थिति के मुताबिक भाषण देते हैं। अपने आप को नारी स्वतन्त्रता का बहुत बड़ा लंबरदार साबित करने के लिए ऐसी बात कहते हैं। कोई अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देता है तो इसमें बुराई क्या है। नंगा बदन, लड़की को कहीं भी,किसी कभी समय किसी के साथ जाने,चुम्मा चाँटी करने की छूट ही नारी स्वतन्त्रता है तो ऐसे आजादी को अपनी तो जय राम जी की। कोई बुरा माने या भला।

Monday, January 28, 2013

सुनो गौरी! आइंदा मेरे सपने में मत आना


श्रीगंगानगर-तू सपने में क्या आई,मन के शांत समंदर में जैसे तूफान आ गया। बवंडर उठने लगे दिल के हर कोने में। अलमारी में  एक साइड में पड़ी  धूल में लिपटी पुरानी किताब के पन्ने अपने आप  ही खुलने लगे। उसमें लिखा हर एक शब्द याद आ गया।  वैसे का वैसे जैसा हम दोनों ने लिखा था, अपने मन को कलम बनाकर प्यार की स्याही से। हर एक शब्द केवल शब्द नहीं चित्र हैं तेरी-मेरी प्रीत के,मिलन के । किताब पूरी कैसे होती मुझ अकेले से। ठीक है तेरे मेरी बात तो एक है। सोच भी वही है लेकिन शब्दों को मिलकर लिखने में जो जान आती वह मुझ अकेले से ना होता।  ये तुझे खुश करने के लिए नहीं कह रहा कि  तू हर पल ख्याल में रही। यादों में बसी रही। दिल मेरे साथ साथ तेरे लिए भी उतना ही धड़कता था।  सपने में झलक भी दिखती रही। किन्तु आज तो जैसे इस नींद ने गज़ब कर दिया। अच्छा, ये तो बता,  तुझे ये पता कैसे लगा कि आज कल मैं बहुत अकेला अकेला रहता हूं, जो तू चली आई.....ये रात जैसे पूनम की रात बन गई। चाँदनी की शीतलता ने तेरे प्यार की मधुरता को और बढ़ा दिया। .....फिर तेरा आना वैसा नहीं था जैसे पहले था। तू जल्दी में नहीं थी। घबराहट भी नहीं दिखी। आज तो प्रीत  से लबरेज था तेरा  हर अंदाज। तू बेपरवाह थी इस संसार से। ऐसा इससे पहले  तो कभी नहीं हुआ। शब्दों में,आँखों में दिल में,चाल में दीवानगी थी। तुझे देखते ही मेरी बाहें खुद ही खुल गईं तुझे अपने अंदर समाहित कर लेने को और  देखो, तुमने भी एक पल नहीं लगाया, बाहों में चली आई ...तेरा मुझ से लिपट जाना जैसे किसी मासूम बच्चे का सुरक्षित  बाहों में समा जाना... दिलों का मिलना कैसे होता है पहली बार तूने और मैंने महसूस किया। हम तो चुप थे। बस देख रहे थे एक दूसरे के चेहरे को हाथ में लेकर...निहार रहे थे एक दूजे को। बात! सालों बाद मिले तब भी भूल गए कि  कितनी ही बातें थी करनी वाली, जो कभी अधूरी रह गई थी...यही सोचते थे कि  इस बार मिले तो बात पूरी करेंगे...लेकिन इस मिलन के दौरान फिर सब कुछ भूल गए।  याद रहा तो केवल इतना की देख लें एक दूसरे को। शायद ये सपना फिर कभी आए ही ना। हम तो आलिंगन में बस मुस्कुराते  रहे....दिल कुछ अधिक तेज थे....रूह अधिक चंचल थी।  वो मौका क्यों चूकती!...दिल ही दिल से बात करते रहे...तेरी मेरी आँखों ने एक दूसरे से क्या बात की, तू भी जानती है और मैं भी। शब्दों की जरूरत ही नहीं पड़ी....मन के भाव...आँखों की चमक...दिल की धड़कन....हाथों में हाथ ने जैसे वो सब बात कर ली जो सालों से करना चाहते थे। लेकिन कभी ऐसा मिलन हुआ ही नहीं था। कभी मौका मिला भी तो मर्यादा ने हर कदम को रोका होगा...टोका होगा....रुसवाई का डर  होगा....चर्चा का भय होगा। मन को मारा होगा। दूर दूर से एक दूसरे को निहारा होगा। बेशक तुम निर्मल हो....तुम्हारे भाव निर्मल हैं.....प्यार का अहसास निर्मल है....पर तुम फिर से मेरे सपने में मत आना....अब तूफानों को सहन करने की पहले जितनी हिम्मत नहीं है। बिखरा बिखरा ठीक हूं...फिर से जुड़ना नहीं चाहता....जुडने का मतलब है फिर कभी टूटना....जब टूटना ही है तो फिर टूटा हुआ तो हूं ही...इसलिए तुम फिर किसी राह में ना मिलना ...इस बार मिलेंगे तो वहां जहां फिर कभी मिलने और जुदा होने का रिवाज नहीं होता। ठीक।

Friday, January 25, 2013

कॉलेज सरकार दे, जय जय बी डी की हो,विधायक बाऊ जी बने,ऐसा नहीं हो सकता


श्रीगंगानगर-सरकारी मेडिकल कॉलेज! चुनावी साल में एक बहुत बड़ा मुद्दा। प्रदेश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी के लिए। साथ में बी डी अग्रवाल के लिए। जनता की भावना जुड़ी है इस मुद्दे से। यह चुनावी राजनीति को प्रभावित भी कर सकता है। तो जो मुद्दा चुनाव को प्रभावित कर सकता है वह सरकार के लिए कितना महत्वपूर्ण होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। ऐसे में सब कुछ चुटकियों में होने वाला नहीं है। राजनीतिक सौदे बाजी होगी। इस हाथ दे और उस हाथ ले। किसी ने कौनसा जेब से कुछ देना है। बुजुर्ग कहते हैं बिना रोए तो माँ भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती। ये तो सरकार है। जिसका जनता से कोई भावनात्मक लगाव होता ही नहीं। जनता केवल वोट बैंक है। हर एक बात राजनीतिक नफा-नुकसान की तराजू पर तोली जाती है। उसको क्या जरूरत है वह श्रीगंगानगर में मेडिकल कॉलेज खोलने की। कॉलेज खोले सरकार। जय घोष हो बी डी अग्रवाल का। फूलमाला बी डी के गले की शोभा बने। बी डी फिर ललकारे मारे सरकार को। विधायक चुना जाए राधेश्याम गंगानगर। जब जय जय बी डी अग्रवाल की होनी है। जनता ने विधायक राधेश्याम को चुनना है। कांग्रेस को जिले से चलता करना है तो फिर सरकार भी तो उसी नजरिए से देखेगी सब कुछ। सरकारी मेडिकल कॉलेज किसी भी  क्षेत्र के लिए बहुत बड़ी बात हो सकती है। यह ना केवल बड़ी बल्कि गौरव शाली और विकास के नए आयाम स्थापित करने वाली बात है इसके साथ साथ क्षेत्र के आन बान और शान की भी बात है। जब कोई सरकार ऐसा प्रोजेक्ट देती है तो उम्मीद भी करती है। सरकार की अपनी तो कोई उम्मीद होती ही नहीं। हां,उस पार्टी की उम्मीद जरूर होती है जिसकी सरकार हो। पार्टी की उम्मीद यही कि चुनाव में जनता उसके उम्मीदवारों को भरपूर समर्थन दे। वर्तमान में तो ऐसा लगता नहीं कि मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा करने के बाद जनता कांग्रेस के पक्ष में लामबंद हो जाएगी। इसका श्रेय तो किसी ओर की झोली में जाएगा। जब किसी ओर की झोली ही भरनी है  तो फिर सीधे उसी से राजनीतिक सौदेबाजी क्यों ना हो? राजनीति में क्या संभव नहीं है? कांग्रेस के नेता घुटनों के बल जाकर उस  बी डी अग्रवाल से अपनी पार्टी के लिए समर्थन मांग सकते हैं जिसने अपना राजनीतिक वजूद अभी साबित नहीं किया है। बी डी अग्रवाल को और क्या चाहिए।  यही तो कहना है कि जमींदारा पार्टी कांग्रेस का समर्थन करेगी। उनको कौनसा हाई कमान से अनुमति लेनी है। बीजेपी फिलहाल सौदेबाजी की  स्थिति में नहीं है। वह तो यही आश्वासन दे सकती है कि सरकार आई तो वह श्रीगंगानगर में सरकारी  मेडिकल कॉलेज खोलेगी, बस। समय है अभी। देखो,राजनीति इस मामले में किस से क्या करवाती है।

Thursday, January 24, 2013

पैसे से ही होती है रिश्तों में रिश्ते की खनक


श्रीगंगानगर-सही है की पैसा भगवान नहीं है। किन्तु इसमें भी शायद ही किसी को शक हो कि आज के दौर में पैसा भगवान से कम भी नहीं है। पैसे हो तो रिश्तों की खनक भी जोरदार होती है। वरना ना तो उनमें आवाज होती है और ना किसी को ये कहने,बताने को जी करता है कि वो जो है, मेरा ये लगता है। पैसों के भगवान जैसा बन जाने की वजह से रिश्तों की गरमाहट अब पहले जैसी नहीं रही। रिश्ता भाई का हो या बहिन का सब पर थोड़ा अधिक पानी पड़ ही रहा है। रिश्तों को अपनाने,उसे अपना बताने का बस अब एक ही पैमाना रह गया है और वो है पैसा। जी, बिलकुल पैसा। जेब गरम है तो रिश्ते भी गरमाहट देंगे। वरना रिश्ता बस नाम का रिश्ता रहेगा, रिश्तेदारी की लिस्ट पूरी करने के लिए और कुछ भी नहीं। कुछ दिन पहले की बात है किसी मित्र के साथ था।  रात लगभग साढ़े नो बजे का समय होगा। फोन बजा...हैलो! फोन मालिक ने कहा। कुछ पल बात हुई। मैंने उसकी ओर देखा।  उसने बताया कि  फलां रिश्तेदार का फोन था। लड़की का रिश्ता कर दिया। कल सगाई है....कहां...कितने बजे इसकी सूचना कल देंगे। दोनों के लिए हैरानी थी। इतनी निकट की रिश्तेदारी...और ये बात। खैर, सुबह हुई। सूचना मिलनी ही थी। मिल गई। फलां होटल....इतने बजे...पहुँच जाना। संदेश साफ था। घर नहीं आना था...होटल पहुँचना था। संबंध थे....साथ जाना पड़ा। लड़का-लड़की दोनों पैसे वाले। जिसके साथ लेखक  गया वह एक पक्ष का अग्रिम पंक्ति का रिश्तेदार था। लेकिन आर्थिक हैसियत के मामले में उनसे 19 क्या 18 ही होगा। इसीलिए तो सीधा होटल बुलाया। वहां  किसने पूछना था! रिश्तेदारी थी, बुलाना जरूरी था। और कुछ नहीं....ना किसी ने उनका परिचय किसी रिश्तेदार से करवाया....न इसकी जरूरत महसूस की। ऐसा ही एक और था...दूसरे पक्ष की ओर से। वह रिश्तेदार नहीं परिवार का सदस्य था।उसकी भी यही स्थिति थी। ना तीन में ना तेरह में। जिसको पता था उसको तो पता था कि ये लड़का-लड़की का क्या लगता है! इसके अलावा कुछ नहीं। बस गिनती करने के लिए साथ लाना पड़ा। करता भी क्या वह! कहां जाता! बेचारा इधर उधर अपना समय पास करता रहा। कई घंटे के फंक्शन में उससे शायद ही कोई किसी बात के लिए बोला हो। सलाह तो बहुत बड़ी बात है। ये कोई कल्पना नहीं। सच्ची घटना है। इसी समाज की और इसी शहर की। आने वाला समय शायद इससे भी दो कदम आगे होगा। अब दिखावे के लिए कमजोर रिश्तेदार,परिवार को बुला तो लेते हैं। संभव है भविष्य में कोई जिक्र भी करना उचित ना समझे। यही कहेंगे....छोड़ो! बाद में बता देंगे। क्या फर्क पड़ता है। बदलते सामाजिक परिवेश को निकट से देखने का मौका मिलता है तो भाव शब्द बन ही जाते हैं।

Wednesday, January 23, 2013

चुनावी चंदे की लालसा में सब कुछ सिर माथे है जी


श्रीगंगानगर-कुछ पाने की लालसा में सभी पार्टी के छोटे बड़े नेता सब कुछ सहन कर रहे हैं। जिसका दशकों का वजूद है वह भी और जो राजनीति में कदम जमा रहा है वह भी। बात कर रहें हैं चुनावी चंदे की। जी, चुनावी चंदा। देने वाले कौन होते हैं बड़े बड़े सेठ। उद्योगपति। ठेकेदार। अफसर भी। इस बार सबकी निगाह सेठ बी डी अग्रवाल पर है। मोटा सेठ है तो चंदा भी मोटा ही होगा। इसलिए उसकी हर बात सिर माथे। कोई छोटा मोटा नेता, किसी संगठन का आदमी किसी पार्टी के बड़े नेता के बारे में कभी कोई छोटी बात गलती से भी कह दो उस पार्टी के नेता टूट कर उसके पीछे पड़ जाते हैं। हाय तौबा मचाते हैं। लेकिन जमींदारा पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बी डी अग्रवाल हर मंच से बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं को खूब बुरा भला कहता है। आज तक किसी नेता ने उसकी आलोचना नहीं की। सबको सुनाई देता है। लेकिन बी डी अग्रवाल की बात सबको मिश्री जैसी लगती है। क्योंकि बी डी अग्रवाल की आज ऐसी हैसियत है जो किसी भी बीजेपी/कांग्रेस नेता की नहीं है। ये नेता बेशक वे बड़े होंगे लेकिन अपने आप को ये सभी  बी डी अग्रवाल से छोटा समझते हैं। या यूं कहें कि छोटा बनाए हुए हैं। इसकी वजह है आने वाले विधानसभा चुनाव। चुनाव कोई ऐसे तो लड़ा जाता नहीं। पैसा तो बाजार से ही आता है। और आज के दिन एक मात्र बाजार है सेठ  बी डी अग्रवाल। इसलिए बी डी अग्रवाल को नाराज करने का मतलब है अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना। बी डी अग्रवाल कहते हैं तो क्या हुआ, चुनाव में सहयोग भी तो यही करेंगे। इसलिए सब के सब चुप्प हैं। राधेश्याम गंगानगर जैसे धुरंधर राजनीतिक व्यक्ति  तक चुप हैं जिसके बारे में बी डी अग्रवाल ने कहा था की बीजेपी की टिकट राधेश्याम को मैंने दिलाई। अब चुनाव को कुछ समय ही बचा है। एक दो को छोड़ दें तो सभी की निगाह बी डी अग्रवाल पर है। वही है जो सबसे अधिक चुनावी फंड सभी पार्टियों के उम्मीदवारों को उपलब्ध करवा सकता है। इसलिए सब के सब नेता सुन रहे हैं अपने आकाओं के बारे में अपमानजनक बातें। बी बी अग्रवाल की जगह कोई और वसुंधरा राजे सिंधिया या अशोक गहलोत के बारे में कुछ कहता तो ये नेता कभी के बुरा भला कहने वाले के लत्ते फाड़ चुके होते। बी डी अग्रवाल की बात और है। वो समर्थ हैं। इसलिए उनका कहा हर शब्द सिर माथे। फिर राजनीति का क्या पता! कौनसा नेता कब बी डी अग्रवाल के गले मिलता नजर आ जाए। इसलिए चुप्प ही ठीक है। बड़े कहते भी हैं...एक चुप्प सौ को हराए

बाऊ जी के होर्डिंग शो में अग्रवाल गिनती के


श्रीगंगानगर-राजनीति में जातिवाद ठीक नहीं है। लेकिन वर्तमान राजनीति की कोई भी चर्चा जाति के बिना होती ही नहीं। यह भी सच है कि हर नेता अपने भाषण में हर जात,बिरादरी की लल्ला लोरी करता है किन्तु यह भी किसी से छिपा नहीं कि उसकी निगाह सबसे अधिक अपनी जाति के लोगों पर अधिक रहती है। बात राधेश्याम गंगानगर की हो तो यह सब सामान्य लगता है। ऐसा ही हुआ है इस बार भी,बीजेपी के विधायक राधेश्याम गंगानगर से। उन्होने अपने जन्म दिन पर शहर के हर क्षेत्र में बधाई के बड़े बड़े होर्डिंग,बोर्ड और बैनर लगवाए  या उनके समर्थकों ने लगाए। इन सभी पर जितने भी बधाई देने वालों के नाम हैं उनमें सबसे अधिक अरोड़ा बिरादरी के हैं। उसके बाद दूसरी बिरादरी के खास व्यक्तियों के। किन्तु हैरत की बात ये कि राधेश्याम गंगानगर के इस शो में अग्रवाल समाज की सक्रियता पढ़ने को नहीं मिली। अग्रवाल समाज के लोगों के नाम तो चंद होर्डिंग पर हैं। जिनमें से दो चार धानमंडी में लगे हैं। एक दो अन्य स्थानों पर। सुरेन्द्र सिंह राठौड़ के खास,उनके मित्र, पारिवारिक सदस्य के के लड्ढा के तीन चार होर्डिंग लगे हैं।अग्रवाल समाज के ही नहीं दूसरे समाज के लोगों,राजनीति को समझने वाले कई व्यक्तियों ने इस रिपोर्टर से यह सवाल किया कि राधेश्याम गंगानगर ने अग्रवाल समाज की उपेक्षा की या अग्रवाल समाज के लोगों ने अपने नाम लिखवाने से इंकार कर दिया। अब इन दोनों में से कौनसी बात सच है इसका पता लगाना बहुत ही मुश्किल है। क्योंकि राधेश्याम गंगानगर किसी भी हालत में ये कहने वाले नहीं कि उन्होने अग्रवाल समाज की उपेक्षा की है। उधर,वर्तमान राजनीतिक हालात में केवल नाम लिखवाने के लिए कोई व्यक्ति राधेश्याम को नाराज करेगा ये भी कठिन है। जहां भी इन होर्डिंग की बात होती है वहां आपसी चर्चा में लोग अग्रवाल समाज के लोगों के नाम न होने की वजह भी तलाश करने की कोशिश होती है। किन्तु किसी को यह समझ नहीं आ रहा कि यह क्यूं कर हुआ। यह सोची समझी राजनीतिक रणनीति है या अंजाने में कोई भूल हो गई। सब जानते हैं कि राजनीति में राधेश्याम गंगानगर इस प्रकार की भूल करने वाले है नहीं। इस बात से भी कोई अंजान नहीं कि राधेश्याम गंगानगर का राजनीति में कोई भी कदम बेवजह होता ही नहीं। संभव है जल्दी इसके पीछे छिपी वजह सामने ना आए। परंतु कभी न अकभी तो कोई बोलेगा ही कि पर्दे के पीछे क्या हुआ था।

Sunday, January 13, 2013

लोकसभा का चुनाव लड़ूँगा बीकानेर से-मेघवाल



श्रीगंगानगर-बीकानेर से बीजेपी सांसद अर्जुन मेघवाल ने कहा है कि वे लोकसभा का ही चुनाव लड़ेंगे और वह भी बीकानेर से। यह बात उन्होने प्रेस वार्ता में  एक सवाल के जवाब में कही। उनसे पूछा गया था कि वे अनूपगढ़ से विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे या लोकसभा का। वे बोले,हाईकमान ने कह दिया है कि अर्जुन मेघवाल लोकसभा का ही चुनाव लड़ेंगे। क्योंकि पार्टी को भी लोक सभा में बढ़िया डिबेटर और अच्छा बोलने वाले सांसद चाहिए,जो पार्टी के पक्ष को लोकसभा के पटल पर रख सके। राजस्थान में पार्टी के अध्यक्ष के मसले पर पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष अर्जुन मेघवाल ने कह कि यह तो प्रदेश प्रभारी सोलंकी जी ने बहुत कुछ साफ कर दिया है। श्री मेघवाल ने कि आने वाले कुछ समय में सभी कुछ क्लियर हो जाएगा। उन्होने इस बात को गलत बताया कि उनका श्रीगंगानगर आने का कार्यक्रम हैं। श्रीमेघवाल ने इन चर्चाओं को गलत बताया कि वे वहां से भाग रहे हैं। उन्होने दावा किया कि उनके कार्यकाल में बीकानेर क्षेत्र का बहुत अधिक विकास हुआ है। प्रेस वार्ता बीजेपी नेता प्रहलाद राय टाक के निवास पर हुई थी। उनके साथ बीजेपी के जिला अध्यक्ष महेंद्र सिंह सोढ़ी,चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष बंशी धर जिंदल,बीजेपी नेता शिव स्वामी भी मौजूद थे।

इस मौके पर समूचे देश को एक हो जाना चाहिए-अर्जुन



श्रीगंगानगर-बीजेपी सांसद अर्जुन मेघवाल ने कह है कि पाकिस्तान की बर्बरता पूर्ण कार्यवाही के बाद समूचे देश को एक होना चाहिए। लेकिन सरकार के मंत्री अलग अलग बात कर रहे हैं। यहां प्रेस से बात करते हुए श्री मेघवाल ने कहा  कि रक्षा मंत्री कड़ा  बयान दे रहे हैं, गृह मंत्री सॉफ्ट और विदेश मंत्री नॉर्मल। उन्होने कह कि ऐसी स्थिति में मल्टीपल वॉइस नहीं होनी चाहिए। उन्होने कह कि बीजेपी हर रेप में फांसी के सजा देने के पक्ष में फिलहाल नहीं है। इस बारे में पार्टी में चर्चा हो रही है। श्री मेघवाल ने कह कि इस मामले में कडा कानून बनाना चाहिए। एमपी ने कह कि पार्टी इसी पक्ष में है कि फांसी की सजा सार्वजनिक स्थान पर बर्बर तरीके  गैंग रेप होने की स्थिति में ही दी जानी चाहिए। अर्जुन मेघवाल ने कह कि वे लोकसभ अकी लॉं एंड जस्टिस कमेटी के मेम्बर हैं। इस लिए जहां भी जाते हैं समाज के लोगों से इस मुद्दे पर चर्चा करते हैं कि ऐसे मामलों में कैसे कानून होने चाहिए। उन्होने बताया कि लोकसभा में कानून बनेगा आगमी जनरेशन के लिए। आगामी पीढ़ी यह महसूस करे कि लोकसभा में चर्चा ठीक हुई। कानून बनने के बाद महिलाओं को वह सम्मान मिला जिसकी वे हकदार हैं। प्रेस वार्ता बीजेपी नेता प्रहलाद राय टाक के निवास पर हुई। उनके साथ बीजेपी के जिला अध्यक्ष महेंद्र सिंह सोढ़ी,चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष बंशी धर जिंदल,बीजेपी नेता शिव स्वामी भी थे।

Friday, January 11, 2013

चुटकी




कांग्रेस के इस राज में
हुआ अंधेरा घुप,
सैनिकों के सिर कटे हैं
पीएम फिर भी चुप।



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मुझे चाहोगी
बिछड़ जाओगी,
कसूर तेरा है
ना मेरा है
ये तकदीर
का फैसला है।  

Thursday, January 10, 2013

चुटकी




जब जब सरकार
पाक को गले लगाती  है
तब तब सेना
अपना सिर कटवाती है।


Wednesday, January 9, 2013

देश का आक्रोश समाप्त और गुस्सा हुआ ठंडा


 श्रीगंगानगर-छोटे कस्बे से लेकर महानगर तक के युवाओं के आक्रोश पर कोहरा पड़ गया। व्यवस्था परिवर्तन के लिए उनके दिलों में प्रज्जवलित आग ठंडी हो गई। देश भर जलायी गई हजारों मोमबत्ती शीतलहर में बुझ गई। तो क्या यह सब बासी कढ़ी में उबाल था या फिर न्यूज चैनल की लाइव कवरेज का कमाल। एक लड़की पर हुए घिनोने अत्याचार से क्षुब्द बिना किसी के इशारे पर अपनी मर्जी से हजारों की संख्या में सड़कों पर न्याय की मांग के लिए सड़कों पर उतरे युवा आज कहाँ हैं? कल एक बेटी की इज्जत का सवाल था तो आज क्या  देश की मर्यादा,इज्जत,मान सम्मान और अखंडता का प्रश्न नहीं है? वह देश जिसे सब भारत माता कहते हैं। उसे मातृ भूमि के नाम से पुकार गौरव का अनुभव करते हैं। ये शब्द उसी देश के लिए हैं जिस पर भगत सिंह,राजगुरु,सुखदेव के बाद भी कितने ही जवान शहीद हो गए। आज उससे भी दर्दनाक दास्ताँ है शहादत की। पाक हमारे घर आकर ना केवल हमारे सैनिकों का मारता है बल्कि उनकी गर्दन  धड़ से अलग कर हमें चुनौती देता है। देश चुप्प हैं। विपक्ष ने  बयान दे अपना धर्म पूरा कर लिया और  सरकार ने चेतावनी दे अपना। लेकिन देश के युवाओं का वो जज्बा कहां है जो कुछ दिन पहले एक बेटी के लिए उमड़ आया था। वह आक्रोश,गुस्सा कहां है जिसने सरकार को घुटनों के बल झुकने के लिए मजबूर कर दिया था। वे युवा कहां हैं जिन्होने जंतर-मंतर से लेकर राजपथ तक को अपनी शक्ति का अहसास करवा दिया था। लोग कुछ भी कहें,ये घोर अचरज की बात है कि पाक की इतनी घिनोनी हरकत के बावजूद लोगों का खून नहीं खोल रहा। लगभग पूरा देश चुप है। जिस सोशल साइटस को ऐसे आंदोलनों का जन्मदाता कहा जाता रहा है वहां भी चुप्पी है। पाक सेना का शिकार हुए सैनिकों के सम्मान में कोई आयोजन नहीं। ना श्रद्धांजली का कार्यक्रम। ना उनकी आत्मा की शांति के लिए कोई प्रार्थना। सभी चौक खाली हैं। कोई भी मोमबत्ती लेकर नहीं आया। सैनिकों की शहादत पर युवाओं की ऐसी बेरुखी,हैरानी पैदा करती है। क्या इन शहीदों का परिवार उस बेटी के परिवार जैसा नहीं है क्या जिसके लिए पूरा देश न्याय के लिए उमड़ पड़ा था। लाठी खाई। आंसू गैस का सामना किया। ठंडे पानी से नहाए। शहीद हुए सैनिकों के लिए क्या एक मोमबाती भी नहीं युवाओं के पास! युवा इतना समय भी नहीं निकाल सकते कि उनको नमन कर सके और सरकार को नमस्कार! सरकार को समझाने के लिए इतना वक्त भी नहीं उनके पास कि जो कुछ वह कर रही है वह कायरता है। क्योंकि लातों के भूत कभी बातों से नहीं माना करते। कारगिल, संसद पर आक्रमण, मुंबई हमला.....आखिर कब तक।

Monday, January 7, 2013

पढ़ाई की तो हो गई छुट्टी........


श्रीगंगानगर-पढ़ाई की छुट्टी। जी, बिलकुल छुट्टी। प्रशासन और किसी मामले में संवेदनशील हो या ना हो ठंड में छुट्टी करने में बहुत अधिक संवेदनशीलता दिखाता है। वजह भी है और मजबूरी भी। वजह ! लोग मांग करते हैं। मजबूरी ये कि ठंड में किसी बच्चे के कुछ हो गया तो मुश्किल। खिलाने की वाह वाही मिले ना मिले खिलाते खिलाते बच्चा रो पड़े तो उसका इल्जाम जरूर लग जाता है। 24 दिसंबर से स्कूलों में छुट्टी है। जब स्कूल खुलेंगे तब तीन सप्ताह हो चुके होंगे। अधिक गर्मी तो छुट्टी।अधिक सर्दी तो छुट्टी। तीज त्योहार की छुट्टी। कभी किसी सामाजिक मुद्दे के कारण हड़ताल की छुट्टी। कभी एचएम पावर की छुट्टी तो कभी कलेक्टर पावर की। कभी टीचर नहीं आया। तो कभी बच्चों का मूड नहीं था पढ़ने को। कभी कोई मर गया शोक में छुट्टी। बस, छुट्टी का बहाना चाहिए। छुट्टी की कोई कमी नहीं। तैयार हैं सब के सब छुट्टी के लिए। किसी के पास यह सोचने के लिए समय ही नहीं कि जब छुट्टी ही रहेगी तो पढ़ाई कब होगी? स्लेबस कौन पूरा करवाएगा? बच्चों की नींव कैसे मजबूत होगी? उनका  ज्ञान कैसे बढ़ेगा? वे आगे कैसे बढ़ेंगे? सॉरी! इन सब बातों से ना तो प्रशासन को कोई मतलब है और ना सामाजिक संगठनों को अभिभावकों को। आठवीं तक फेल तो वैसे ही किसी को नहीं कर सकते। चाहे कापी खाली छोड़ दो। टीचर की सिरदर्दी है उस बालक को पास करने की। जब आठवीं तक के सभी बच्चों को पास ही करना है तो फिर स्कूल लगे या ना क्या अंतर पड़ता है। इसलिए छुट्टी ही ठीक है। इस प्रकार की ठंड में ये क्या गारंटी है कि छुट्टी और नहीं बढ़ेगी। स्कूल में जब तक पढ़ाई शुरू होगी तब बोर्ड की परीक्षा का समय निकट आने लगेगा। फिर स्लेबस पूरा करवाने की भागमभाग। स्कूल नहीं तो ट्यूशन। इसमें कोई शक नहीं कि इस ठंड अधिक है। लेकिन ये तो इस मौसम में होनी ही है। हर बार कोई ना कोई रिकॉर्ड टूटता है। जब हर बार ऐसा होता है तो फिर क्यों ना छुट्टी का सालाना टाइमटेबल ही बदल दिया जाए। क्या जरूरत है डेढ़ माह के ग्रीष्मकालीन अवकाश की। बड़े दिनों की छुट्टियों की। दशकों पहले जब इन छुट्टियों का सिलसिला शुरू हुआ तब से आज तक काफी कुछ परिवर्तित हो चुका है। उस समय वे छुट्टी सभी के अनुकूल थी। आज के समय ये नहीं भी हैं तो इनको बदलने में क्या हर्ज है। कोई जरूरी तो नहीं कि एक लकीर को सदियों तक पीटा जाता रहे। आखिर स्कूलों में पढ़ाई ही नहीं होगी तो फिर इनका मतलब क्या? सब घर रहें। एक पेपर सरकार ले और आठवीं की डिग्री दे दे। काम नक्की। और क्या तो। ना उम्र की सीमा। ना समय का बंधन। ना स्कूल लगाने का झंझट और ना छुट्टियों की टेंशन। क्यों, ठीक है ना!

Wednesday, January 2, 2013

मॉडर्न होने का चाव नहीं...दक़ियानूसी ही ठीक हैं...


 श्रीगंगानगर-दिल्ली की घटना से घिनोनी कोई घटना नहीं हो सकती। यही वजह रही है कि देश भर में इसके खिलाफ आक्रोश,गुस्सा दिखा। यह आक्रोश और गुस्सा सोच में बदलाव लाने को आतुर था। कानून बदलने की बात करते सुना गया। पुरुषों से अपनी मानसिकता बदलने को कहा गया। उनको रात नो बजे के बाद घर में रखने की सलाह भी नारी समर्थकों ने दी। महिलाओं को और अधिक बराबरी पर लाने की बात हुई। और भी बहुत कुछ....अब बात निकली है तो दूर तक जाएगी ही। सच में अब बदलाव होगा! यह बदलाव घर घर में देखने को भी मिलेगा। तो क्या आइंदा किसी भी परिवार की लड़की रात को अपने बॉय फ्रेंड के साथ कहीं भी जा सकेगी! उसे हक होगा। तभी तो वह लड़कों की बराबरी कर सकेगी। क्या वेलेंटाइन डे पर अपने पुरुष मित्र के साथ पार्क में घूमने की आजादी भी उसको होगी।किसी भी होटल में कुछ भी करने की छूट भी । कोई बजरंग दल...वल को दखल देने की इजाजत नहीं। क्योंकि यह महिलाओं की आजादी से जुड़ा है। अब हर परिवार को और अधिक खुले विचारों का होना है। बॉय फ्रेंड बेटी,बहिन को घर बुलाने आए तो भेजना ही पड़ेगा। ये सब लिखने और सुनने में बढ़िया लगता है। फेसबुक पर कमेन्ट कर हम आनंदित होते हैं। यह हमें खुले विचारों का होने का तमगा भी देता है। दक़ियानूसी विचारधारा का ठप्पा हटाता है। लेकिन इस सवाल का जवाब किसके पास है कि कितने परिवार इस बात को बर्दाश्त करेंगे कि उसकी बेटी,बहिन अपने बॉय फ्रेंड के साथ हो। चाहे लड़की के परिवार को अपनी लड़की पर कितना ही विश्वास हो। लड़का चाहे कितना भी चरित्रवान हो। दोनों के चरित्र की चाहे समाज कसमें खाता हो। अपने बच्चों को उनके उदाहरण देता हो। इसके बावजूद माता-पिता,भाई ये पसंद नहीं कर सकते  कि उसकी बेटी बहिन अपने बॉय फ्रेंड के साथ हो। किसी सिनेमा में। कैफे में, होटल में। या रात को सड़क पर। इसकी वजह भी है और मजबूरी भी। ये दोनों सबको पता भी हैं। कौनसे ऐसे माता-पिता होंगे जो ये नहीं चाहते कि उनकी बेटी खूब आगे बढ़े....उनका नाम रोशन करे..... । सब के सब यही सोचकर लड़कियों को पढ़ाते हैं। दूसरे शहरों में भेजते हैं। इसके बावजूद कोई ये नहीं सुन सकता कि उसकी बेटी,बहिन उस समय, उसके साथ, उस स्थान पर थी। संभव है महानगरों में चाहे ऐसी बात से किसी को कोई फर्क ना पड़ता हो। लेकिन अन्य स्थानों पर तो इसे किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं समझा जाता। अगर कोई ज़ोर शोर से यह कहता है कि  हमारे यहां बेटी,बहिन का बॉय फ्रेंड के साथ कभी भी,कहीं भी जाने आने पर कोई प्रतिबंध नहीं है तो उनको सलाम। सॉरी! लेकिन सच्चाई यही है।

Tuesday, January 1, 2013

चुनाव मैं ही जीतूँगा—राधेश्याम गंगानगर



श्रीगंगानगर-बीजेपी विधायक राधेश्याम गंगानगर ने आज अपने जन्मदिन पर प्रेस वार्ता की। उसमें उन्होने अपने विकास कार्यों का गुणगान करते हुए इसका श्रेय जनता को दिया। मीडिया की लल्ला लोरी की। अपने आप को चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार बताया और साथ में ये दावा किया कि जीत हर हाल में उनकी ही होगी। उन्होने कहा कि वैसे तो इस बार उनक आखिरी चुनाव है लेकिन उनका सपना पूरा  नहीं हुआ तो वे फिर चुनाव लड़ेंगे। सपना क्या है ये स्पष्ट नहीं किया। बीजेपी विधायक ने कहा कि उनके मुक़ाबले कोई नहीं है। है तो केवल इस क्षेत्र की जनता। अपने पुत्र रमेश राजपाल के चुनाव लड़ने के बारे में उन्होने साफ कहा,चुनाव तो इस बार मैं ही लड़ूँगा। उन्होने बीजेपी के राज में मेडिकल कॉलेज बनाकर देने की बात कही। विधायक ने कहा कि मेडिकल कॉलेज के लिए सीएम हाउस के बाहर धरना देने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि मुझे कलेक्टर के पास इस बारे में लिखित में आ चुका है। वे बोले, अगर मैं सीएम होता तो दो दो मिनट में सौ करोड़ रुपए देने वाले को गले लगाता और एक मिनट में आदेश जारी कर देता। आरएसएस के साथ अपने रिश्तों को उन्होने बहुत ही मधुर बताया। बीजेपी की टिकट मिलने का दावा किया। उन्होने इस बात को गलत बताया कि उन्होने किसी को आगे नहीं बढ्ने दिया। उन्होने अनेक नेताओं के नाम गिनाए जिनको उन्होने आगे बढ़ाया। गौरव पैलेस में हुई इस प्रेस वार्ता में नगर परिषद की उप सभापति सीता सोनी,बीजेपी नगर मण्डल अध्यक्ष अनिल बहल सहित उनके अनेक समर्थक थे।

नया कलेंडर अहसास है नए साल का


श्रीगंगानगर--आओ मन बहलाएं, बदल कर एक कलेंडर नया साल मनाएं । कलेंडर के अलावा आज क्या बदला है? कुछ भी तो नहीं। हजारों घरों में तो कलेंडर भी नहीं बदला होगा। देश- दुनिया के साथ हम अपनी कल वाली सोच लिए वैसे ही तो हैं जैसे कल थे। संभव है बहुत से लोग इसको नकारात्मक कह कर नजर फेर लें। इसके बावजूद दो और दो का जोड़ चार ही होगा तीन या पांच नहीं । सच्चाई यही है कि कलेंडर ही बदला जाता है। हम और कुछ बदलना चाहते ही नहीं। डेट,वार,दिन रात का छोटा बड़ा होना,गर्मी,सर्दी,बरसात,पतझड़,आंधी,तूफान के आने जाने ,उनका अहसास करवाने के लिए प्रकृति कलेंडर बदलने का इंतजार नहीं करती। वह यह सब पल पल ,क्षण क्षण करती ही रहती है। ऐसा तब से हो रहा है जब कलेंडर बदलने का रिवाज आया भी नहीं होगा। जिस नए का अनुभव हमें आज हो रहा है वह नया तो होता ही रहता है। किन्तु हम इसको तभी मन की आँख से देख पाते हैं जब कलेंडर बदलते हैं। जिन घरों में कलेंडर नहीं बदले जाते वहां भी प्रकृति के वही रंग रूप होते हैं जैसे अन्य स्थानों पर। जहाँ कलेंडर बदले जाते हैं संभव है वहां भौतिक साधनों से प्रकृति के असली रंग रूप को अपनी पसंद के अनुरूप ढाल लिया जाता हो। सृष्टी का सृजन करने वाली उस अदृश्य शक्ति के पास तो बहुत कुछ नया है। वह तो इस नए पन से रूबरू भी करवाता रहता है। हम खुद इसे ना तो देखना चाहते हैं ना मिलना। जो नयापन वह शक्ति ,प्रकृति हम हर रोज प्रदान करती है उसको महसूस हम तब करते हैं जब पुराना कलेंडर उतारते हैं। नया कलेंडर ही अहसास है नए साल का। यह अहसास होता नहीं तो करवाया जाता है उनके द्वारा जिनके लिए यह एक बाज़ार के अलावा कुछ नहीं। ये भावनाओं का बाज़ार इस प्रकार से सजाते हैं कि आँखोंऔर दिल को नया ही नया लगता है। बहुत बड़ा बाज़ार हर उत्सव,वार और त्योहार की तरह। ऐसा बाज़ार जहाँ गंजे भी कंघी खरीदने को अपने आप को रोक ना सकें।एक कवि की इन पंक्तियों के साथ बात को विराम दूंगा--रेगिस्तानों से रिश्ता है बारिश से भी यारी है,हर मौसम में अपनी थोड़ी थोड़ी हिस्सेदारी है। अब बैंगलोर से विनोद सिंगल का भेजा एस एम एस --बड़ी सुखी सी जिन्दगी जदों पानी दे वांग चल्दे सी, हुण नित तूफान उठदे ने जदों दे समन्दर हो गए।

मेरी पुस्तक सत्यमेव जयते ...सॉरी रोंग नंबर लग गया में प्रकाशित