Thursday, September 3, 2015

अब और विकास की जरूरत नहीं है गंगानगर को


गोविंद गोयल
श्रीगंगानगर। महाराजा गंगासिंह की नगरी गंगानगर । अपने आप मेँ मस्त शहर। शरीफ नागरिकों का शहर। बेफिक्र लोगों का शहर। अफसर इधर की भाषा नहीं जानते। वे किसी नेता की बात नहीं मानते। विपक्षी दलों के नेताओं को ताव नहीं आता। आम आदमी किसी मुद्दे पर किसी के साथ नहीं आता । क्योंकि शरीफ लोग गांधी जी के पद चिन्हों पर चलते हैं। बुरा देखना नहीं। बुरा बोलना नहीं और बुरा सुनना नहीं। जय राम जी की। होता रहेजो होता हैहमें क्या मतलबा। हम इस गली की बजाए उस सड़क से निकल लेंगे। घर के सामने की सड़क साफ हो तो पूरा नगर नरक बनेहमें क्या?ट्रैफिक पुलिस वाला चौराहे पर ट्रैफिक व्यवस्थित करने की बजाएइधर उधर खड़ा रह बाइक वालों को हेलमेट पहनाता है। दुकानदार पार्किंग लाइन के अंदर सामान रख ग्राहक बुलाता है। करोड़ों रुपए खर्च हो गएसीवरेज नहीं बनता। ओवरब्रिज हमने बनने नहीं देना। ए माइनर के किनारे की सड़क बने तो नाक कटती है। काम शुरू भी नहीं होता कि शरीफ व्यक्ति उसमें टांग अड़ाने के लिए आ जाते हैं। फिर भी कोई उम्मीद करें कि इस शहर को विकास के लिए फंड मिले। अनुदान दिया जाए। इसका विकास किया जाए। मेडिकल कॉलेज बने। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हो। जनाबजो  है उसकी तो सार संभाल होती नहींऔर मिल जाए। जो सरकारी हैवह हमारी हैकी सोच रखने वाले इस नगर के शरीफ लोगों की शराफत की जितनी जय जय कार की जाए कम है। ऐसी गांधी वादी सोच वाले शरीफ लोगों के इस नगर को कुछ नहीं मिलना चाहिए। सरकार इधर से आँख बंद कर ले। राजनैतिक कृपा तो है ही। विधायकसभापति दोनों ही बीजेपी के नहीं है। दोनों सत्तारूढ़ पार्टी के होते तो सौ टंटे होते। विकास के लिए पैसे की उम्मीद होती। योजना बनती। अड़ंगे लगते। पार्षदों की नई नई उम्मीदें जवां होती। अब किस्सा समाप्त। ना विधायक को मतलब और ना सभापति को। दोनों की मौज। कुछ नहीं करना। कोई कुछ भी कहेबीजेपी को किसी भी सूरत मेँ सभापति को पार्टी मेँ शामिल नहीं करना चाहिए। पार्टी मेँ शामिल होते ही फंड की मांग करेंगे। विकास की उम्मीद जगेगी। बाद मेँ टिकट की लाइन मेँ लगेगा। नित नए क्लेश । आंधा न्योतोदो बुलाओ। ऐसा करने की जरूरत ही नहीं। जो जहां हैउधर रहे। जिसको पता नहींसभापति का मतलब क्या होता हैउसको पार्टी मेँ लेकर करना भी क्या! जिस शहर की जनता को कुछ चाहिए ही नहींउसे देकर करना भी क्या! इसलिए सरकार को तो गंगानगर के संबंध मेँ टेंशन रखने की अब जरूरत नहीं। क्योंकि सब के सब खाते पीते नागरिक हैं। इनको कुछ चाहिए ही नहीं। इनके नगर मेँ जो हैवो भी अधिक ही है। यही वजह है कि जो है उसकी ठीक से देखभाल नहीं हो पाती। जो अफसर हैंवे भी स्टेट के सबसे काबिल हैं। इस कारण उनके प्रति भी किसी को कोई शिकायत होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। मोदी जी बेकार मेँ स्मार्ट सिटीस्मार्ट सिटी की रट लगा रहे हैं। अरेदेश मेँ सिटी स्मार्ट नहीं स्मार्ट नागरिक होने चाहिए। और यह  स्मार्टनेस आती है आत्मसंतुष्टि से। जो केवल गंगानगर के नागरिकों मेँ है। बेशकदेश भर मेँ सर्वे करवा लोऐसे संतोषी जीव कहीं नहीं मिलेंगे। कितने भी अत्याचार कर लोपैसे देंगेहाथ जोड़ेंगे , घर बैठ जाएंगे। किसी को कानों कान खबर तक नहीं होने देंगे। दो लाइन पढ़ो
बहुत अच्छा है शहर
लोग भी सब शरीफ हैं इधर के,
फिर भी तू इनकी
नजरों से बच बचा के आया कर। 


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