गोविंद गोयल
श्रीगंगानगर।
महाराजा गंगासिंह की नगरी गंगानगर । अपने आप मेँ मस्त शहर। शरीफ नागरिकों का शहर।
बेफिक्र लोगों का शहर। अफसर इधर की भाषा नहीं जानते। वे किसी नेता की बात नहीं
मानते। विपक्षी दलों के नेताओं को ताव नहीं आता। आम आदमी किसी मुद्दे पर किसी के
साथ नहीं आता । क्योंकि शरीफ लोग गांधी जी के पद चिन्हों पर चलते हैं। बुरा देखना
नहीं। बुरा बोलना नहीं और बुरा सुनना नहीं। जय राम जी की। होता रहे, जो होता है, हमें क्या मतलबा। हम इस गली की बजाए उस सड़क से निकल लेंगे। घर के सामने की सड़क
साफ हो तो पूरा नगर नरक बने, हमें क्या?ट्रैफिक पुलिस वाला चौराहे पर ट्रैफिक
व्यवस्थित करने की बजाए, इधर उधर खड़ा रह बाइक वालों को हेलमेट पहनाता
है। दुकानदार पार्किंग लाइन के अंदर सामान रख ग्राहक बुलाता है। करोड़ों रुपए खर्च
हो गए, सीवरेज नहीं बनता। ओवरब्रिज हमने बनने नहीं
देना। ए माइनर के किनारे की सड़क बने तो नाक कटती है। काम शुरू भी नहीं होता कि
शरीफ व्यक्ति उसमें टांग अड़ाने के लिए आ जाते हैं। फिर भी कोई उम्मीद करें कि इस
शहर को विकास के लिए फंड मिले। अनुदान दिया जाए। इसका विकास किया जाए। मेडिकल
कॉलेज बने। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हो। जनाब, जो है उसकी तो सार संभाल होती नहीं, और मिल जाए। जो सरकारी है, वह हमारी है, की सोच रखने वाले इस नगर के शरीफ लोगों की
शराफत की जितनी जय जय कार की जाए कम है। ऐसी गांधी वादी सोच वाले शरीफ लोगों के इस
नगर को कुछ नहीं मिलना चाहिए। सरकार इधर से आँख बंद कर ले। राजनैतिक कृपा तो है
ही। विधायक, सभापति दोनों ही बीजेपी के नहीं है। दोनों
सत्तारूढ़ पार्टी के होते तो सौ टंटे होते। विकास के लिए पैसे की उम्मीद होती।
योजना बनती। अड़ंगे लगते। पार्षदों की नई नई उम्मीदें जवां होती। अब किस्सा समाप्त।
ना विधायक को मतलब और ना सभापति को। दोनों की मौज। कुछ नहीं करना। कोई कुछ भी कहे, बीजेपी को किसी भी सूरत मेँ सभापति को पार्टी
मेँ शामिल नहीं करना चाहिए। पार्टी मेँ शामिल होते ही फंड की मांग करेंगे। विकास
की उम्मीद जगेगी। बाद मेँ टिकट की लाइन मेँ लगेगा। नित नए क्लेश । आंधा न्योतो, दो बुलाओ। ऐसा करने की जरूरत ही नहीं। जो जहां
है, उधर रहे। जिसको पता नहीं, सभापति का मतलब क्या होता है, उसको पार्टी मेँ लेकर करना भी क्या! जिस शहर की
जनता को कुछ चाहिए ही नहीं, उसे देकर करना भी क्या! इसलिए सरकार को तो
गंगानगर के संबंध मेँ टेंशन रखने की अब जरूरत नहीं। क्योंकि सब के सब खाते पीते
नागरिक हैं। इनको कुछ चाहिए ही नहीं। इनके नगर मेँ जो है, वो भी अधिक ही है। यही वजह है कि जो है उसकी
ठीक से देखभाल नहीं हो पाती। जो अफसर हैं, वे भी स्टेट के सबसे काबिल हैं। इस कारण उनके प्रति भी किसी को कोई शिकायत
होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। मोदी जी बेकार मेँ स्मार्ट सिटी, स्मार्ट सिटी की रट लगा रहे हैं। अरे, देश मेँ सिटी स्मार्ट नहीं स्मार्ट नागरिक होने
चाहिए। और यह स्मार्टनेस आती है आत्मसंतुष्टि से। जो केवल गंगानगर के
नागरिकों मेँ है। बेशक, देश भर मेँ सर्वे करवा लो, ऐसे संतोषी जीव कहीं नहीं मिलेंगे। कितने भी
अत्याचार कर लो, पैसे देंगे, हाथ जोड़ेंगे , घर बैठ जाएंगे। किसी को कानों कान खबर तक नहीं
होने देंगे। दो लाइन पढ़ो—
बहुत अच्छा है
शहर
लोग भी सब
शरीफ हैं इधर के,
फिर भी तू
इनकी
नजरों से बच
बचा के आया कर।
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