Wednesday, November 25, 2015

देव धाम मेँ भव्य और दिव्य मंदिर, प्राण प्रतिष्ठा 30 को



श्रीगंगानगर। देव धाम मेँ भव्य और दिव्य मंदिर का निर्माण ही चुका है। यह है माँ चिंतपूर्णी दुर्गा मंदिर। यह बना है हनुमानगढ़ रोड पर स्थित अग्रवाल ट्रस्ट के पीछे। इसका निर्माण भी ट्रस्ट ने ही किया है। मंदिर मेँ देवी माँ , हनुमान जी और विष्णु लक्ष्मी के प्रतिमाओं के साथ शिव परिवार की स्थापना की जा चुकी है। प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा 30 नवंबर को सुबह होगी। बताते हैं ही कि जिस दिन मंदिर के लिए नींव की खुदाई हुई उस दिन काले नाग का जोड़ा निकला। उनको यह कह सुनसान क्षेत्र मेँ छोड़ दिया गया कि मंदिर बन जाए तब आ जाना। अब जब मंदिर का निर्माण हो चुका। प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा के लिए अनुष्ठान हो रहा है, तब काले नाग का यह जोड़ा फिर आ गया। यह जोड़ा एक कमरे मेँ है। उनके सामने दूध का कटोरा रखा गया है। चार से पाँच फीट साइज के इस जोड़े के कारण इस मंदिर को दिव्य माना जा रहा है। निर्माण भव्य तरीके से हुआ है। मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही आनंद की अनुभूति होती है। इसका मुख्य द्वार उत्तर की ओर है जबकि एक द्वार देव धाम वाली गली मेँ पूर्व की ओर भी है। संभवतः यह मंदिर नगर का सबसे भव्य मंदिर है। देव धाम उस गली के लिए लिखा गया है जहां बालाजी धाम, गणेश मंदिर, शनि मंदिर, करणी माता का मंदिर है। देव धाम सबसे उचित नाम है। क्योंकि श्रीगंगानगर मेँ एक गली मेँ सबसे अधिक मंदिर यहीं है। भीड़ भी खूब रहती है। 

कार्तिक पुर्णिमा पर मंदिरों मेँ दीप माला

श्रीगंगानगर। कार्तिक मास की पुर्णिमा के मौके पर रात को मंदिर, मंदिर दीपों की रोशनी से जगमग हो गए। हर मंदिर मेँ महिलाओं ने दीपमाला की। कितनी ही महिलाओं ने तो 365-365 दीप जलाए। किसी मंदिर मेँ दीपों से स्वास्तिक बना था तो कहीं ॐ। मंदिरों मेँ खूब रौनक थी। दीपों की कतारों के कारण मंदिरों की शोभा बहुत अधिक आभा युक्त दिखी। अग्रसेन नगर मेँ तो अनेक महिलाओं सड़क किनारे दीप जला रहीं थीं। शाम को तीन पुली पर महिलाओं की अपार भीड़ थी। वहाँ भी दीपक जलाए गए। महिलाओं ने ईंट मिट्टी से घर बनाए। सजाये। उसमें अन्न उगाया। नहर किनारे मेला लगा हुआ था। ऐसा ही दृश्य दिन भर श्मशान घाट मेँ रहा। महिलाओं के जत्थे दीप लेकर आते रहे। हर मूर्ति के सामने दीप जलाया। यमराज और चित्रगुप्त की खास पूजा अर्चना की। यमराज से अकाल मौत ना देने की और चित्रगुप्त से अच्छे कर्म करवाने की प्रार्थना की। नगर मेँ गुरूपर्व की भी खूब धूम रही। कोई गली, सड़क ऐसी नहीं थी जहां विशेष रोशनी ना की गई हो। सुबह से ही सब एक दूसरे को बधाई दे रहे थे। 

Tuesday, November 24, 2015

सरफरोश तो पीके गजनी हो गया लगता है


श्रीगंगानगर। आमीर खान! मैं तो आपको राजा हिंदुस्तानी जान के याद करता रहा। अपने मुल्क का सरफरोश समझता रहा। मगर तुम तो गजनी हो गए। भूल गए सब। इस देश मेँ मिला रुतबा, प्रशंसक, मान, सम्मान, पैसा, प्यार, लाड, दुलार करोड़ों की दुआएं जैसे अनमोल खजाने गजनी को कहां याद रहे। देश की मिट्टी, संस्कृति, संस्कार सहिष्णुता जैसी एकता की महक सब भूल गए। अपने मुस्लिम होने का लगान इस देश की संस्कृति, आन, बान, शान भाईचारे से वसूल करने का इरादा है क्या? इरादा क्या, वसूल कर ही रहे हो। हालांकि आप देश विदेश की मीडिया की नजरों मेँ हो, मेरी  और स्थानीय अखबारों की उनके सामने क्या बिसात, लेकिन शब्द दूर दूर तक जाते हैं। लिखे शब्द इतिहास बनते हैं। सहेज कर रखे जाते हैं। खामोश रहें तो सहिष्णु और जवाब दें तो असहिष्णु का लेवल लगा देते हैं आप जैसे महान आदमी। दिल चाहता है एक बार फिर इस देश मेँ रंग दे बसंती की तान छेड़ दी जाए। लेकिन तारे जमीं पर लाने की कोशिश करते थ्री इडियट्स की याद आ जाती है और मन उल्लास, आनंद से भर झूमने लगता है। कलाकार तो रंगीला होता है, तुम पीके हो गए। वही पीके, जो  यह साबित करता नजर आया कि  पाकिस्तानी मुसलमान पूरी तरह पाक है। और हिंदुस्तान के साधू संत चोर, झूठे, मक्कार। देश ने आपकी इस बात को भी सिर आँखों पर लिया । आँखों को नम किया। तालियाँ बजाईं। तारीफ की भावपूर्ण दृश्य की। क्योंकि दर्शक सहिष्णु थे । उन्होने  उसे एक नाटक के रूप मेँ लिया, देखा, ताले बजाई और आपको साधुवाद दिया। क्योंकि देश मेँ सहिष्णुता है और रहेगी। सब उसे फिल्म का सीन समझते रहे, ये तो अब समझ आया कि पीके के पीछे आमीर खान था। उसकी सोच थी। उसके अंदर का धर्म था। जनाब आमीर खान, हिंदुस्तान मेँ सहिष्णुता केवल एक शब्द मात्र नहीं है। यह संस्कार है। संस्कृति है। इसे विकृति मेँ बदलने की कोशिश अब होने लगी है। सहिष्णुता है तभी तो हिंदुस्तान है। जैन हैं। बौद्ध हैं। ईसाई हैं। सिख हैं। मुस्लिम हैं। और साथ है इन सबका हिंदुस्तान। गजनी को याद हो ना हो, लेकिन सरफरोश को तो याद रखना चाहिए कि मेरी फिल्मों को भी वैसा ही प्यार मिला, जैसा दूसरे कलाकारों की फिल्मों को मिला। परंतु आपने तो सब कुछ नजर अंदाज कर दिया। आप बालक नहीं। आपको तो ज्ञात ही होगा कि कलाकार का कोई धर्म या जाति नहीं होती। वह सबका सांझा है। उसे जाति-धर्म के अनुसार वह नहीं मिलता जो आपको मिला। जो मिलता है, उसकी कला को देख मिलता है। मगर आपने तो अपने आप को एक धर्म तक सीमित कर, सहिष्णुता की नई मिसाल पेश कर दी दुनिया के सामने। पूरा देश जिसे अपना मान कर उस पर अभिमान करता था, उसने अपने आप को एक छोटे दायरे मेँ समेट लिया। आपकी अभिव्यक्ति को सलाम तो करना ही होगा। इसमें भी कोई शक नहीं कि झूठे धर्म निरपेक्ष आपके स्वर मेँ स्वर मिलाएंगे। झूमेंगे। नाचेंगे, गाएँगे। क्योंकि उनकी जमात मेँ एक और शामिल हो गया। हिंदुस्तान विरोधी मीडिया आपको फ्रंट पेज से अंदर नहीं जाने देगा। टीवी स्क्रीन से हटाएगा नहीं। सौ प्रकार की बहस करवा, आपके साथ खड़ा होगा। किन्तु याद रखना जनाब ये सब अपने कद को छोटा करने जैसा है। सहिष्णुता, सहिष्णुता केवल लिखने, बोलने से नहीं होती। इसे आचरण मेँ भी लाना पड़ता है। मेरे ये शब्द असहिष्णुता की श्रेणी मेँ नहीं रखना। ये केवल आपको आपकी बड़ी हैसियत, बड़ा कद याद दिलाने के लिए है। गजनी को यह याद दिलाने के लिए है कि वो मंगल पांडे है। दो लाइन पढ़ो-

कदमों की आहट से बच्चे को पहचान लेते हैं 
माँ-बाप ही हैं, जो बिना कहे सब जान लेते हैं। 

Monday, November 23, 2015

अशोक नागपाल को आज तक नहीं मिला निलंबन का पत्र


श्रीगंगानगर। बीजेपी की जिलाध्यक्षी से हटाए गए पूर्व विधायक अशोक नागपाल को आजतक पार्टी से निलंबन की लिखित  सूचना नहीं नहीं मिली है। उनके घर आज भी बीजेपी का झण्डा लगा है। श्रीनागपाल ने 13 दिसंबर 2014 को 13 प्वाइंट लिख कर प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी को दिये थे। उनका आज तक ना तो कोई जवाब अशोक नागपाल को मिला है। ना ही उनकी जांच करवाई  गई है। अशोक नापगाल ने इस रिपोर्टर को बताया कि एक साल से वे कई बार प्रदेश अध्यक्ष से मिले हैं। हर मुलाक़ात मेँ उन्होने यही कहा कि वे अगले सप्ताह आपको बुला लेंगे। बात सुन लेंगे। 13 प्वाइंट्स की जांच करवा लेंगे। श्रीनागपाल के अनुसार आज तक इस मुद्दे पर संगठन ने बात नहीं की। उनका कहना था कि वे तो समाचार पत्रों और टीवी समाचारों मेँ आई निलंबन की खबरों से अपने आप को पार्टी से निलंबित मान रहे हैं। लिखित मेँ कुछ नहीं मिला।

जिंदल-टिम्मा अलग हुए, दो होंगे कन्या लोहड़ी उत्सव

श्रीगंगानगर। इस बार नगर मेँ दो दो कन्या लोहड़ी उत्सव मनाए जाएंगे। दोनों मेँ ही लड़कियों को फ्री फ्री शिक्षा के पैकेज दिये जाएंगे। कौन कितने पैकेज देगा ये, आयोजन के बाद पता चलेगा। एक उत्सव हमेशा की तरह चेम्बर ऑफ कॉमर्स का होगा। दूसरा इस बार बाबा दीप सिंह सेवा समिति करेगी कई सालों से कन्या लोहड़ी माना रहा चेम्बर ऑफ कॉमर्स रामलीला मैदान मेँ कन्या लोहड़ी 11 से 13 जनवरी के बीच किसी तिथि को मनाएगा। जबकि समिति ने अभी तिथि की घोषणा नहीं की है। जानकारी मिली है कि दोनों के पदाधिकारी शिक्षण संस्थों से पैकेज लेने के लिए कोशिश कर रहे हैं। चेम्बर का नेतृत्व इंजी बंशीधर जिंदल के पास है जबकि समिति के सर्वेसर्वा तेजेन्द्रपाल सिंह टिम्मा है। कुछ खास व्यक्ति दोनों को फिर से एक करवाने की कोशिश मेँ है। जबकि बड़ी संख्या मेँ ऐसे व्यक्ति भी हैं जो किसी भी सूरत मेँ दोनों को एक देखना नहीं चाहते। दो उत्सव होने के बाद धड़ेबंदी होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। टिम्मा विरोधी जिंदल के इर्द गिर्द जमा हो सकते हैं तो जिंदल विरोधी टिम्मा मेँ हवा भरने से नहीं चूकेंगे। 

Saturday, November 21, 2015

सुखद है हरी सिंह कामरा का जिला अध्यक्ष होना


श्रीगंगानगर। ये हरी सिंह कामरा कौन हुआ? हरी सिंह कामरा कौन है? ऐसे कितने ही प्रश्न इन दिनों राजनीतिक गलियारों के साथ साथ उन लोगों की जुबां पर भी हैं जो राजनीति मेँ रुचि रखते हैं। उसे समझते हैं। इसकी चर्चा करते हैं। सच्ची बात तो ये कि हमें भी अधिक नहीं पता। इतनी ही जानकारी है कि ये बिजयनगर नगरपालिका मेँ अध्यक्ष रहें हैं। बीजेपी के वर्कर हैं। और क्या-क्या  थे, पता नहीं। वैसे भी कुछ होते तो पता भी होता। फिलहाल वे उस बीजेपी के जिलाध्यक्ष हैं, जिसकी केंद्र और प्रदेश मेँ सत्ता है। अब इतनी बड़ी पार्टी ने कामरा  जी को जिला अध्यक्ष बनाया है तो उनको सलामी तो देनी ही पड़ेगी। संगठन और सरकार चलाने वाले राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं ।  वो किसी ऐसे वैसे को तो बनाने से रहे। इसलिए कुछ ना कुछ तो कामरा जी मेँ होगा ही, जो उनको जिलाध्यक्षी दी गई है। और कुछ नहीं तो सोढ़ी जी जितना तो देखा ही होगा कामरा जी मेँ। इससे अधिक करना भी क्या है बीजेपी को। सरकार है ही दोनों स्थानों पर। समय से पहले कोई हिला नहीं सकता। तब तक कामरा जी पड़े रहेंगे, बने रहेंगे  सोढ़ी जी की तरह क्या नुकसान है। कामरा जी का जिला अध्यक्ष होना इस बात का सबूत है कि बीजेपी मेँ कार्यकर्ता की कितनी पूछ है। पैदल की कितनी कदर है। शतरंज मेँ पैदल  ही तो होते हैं कुर्बानी देने के लिए। उनको ही आगे किया जाता है रास्ता बनाने के लिए। पहले सोढ़ी जी थे, अब कामरा जी हैं। आप कुछ भी कहें। कुछ भी समझें । इन शब्दों का कोई अर्थ निकालें। परंतु कामरा जी से उचित कोई और हो ही नहीं सकता था। विधानसभा की 6 सीटों वाले इस जिले मेँ बीजेपी  के चार विधायक हैं। इनके अलावा विशाल नेता भी हैं। अगर कोई धुरंधर बना होता तो वो इन विधायकों और विशाल नेताओं को हजम नहीं होना था। क्योंकि सत्तारूढ़ पार्टी का जिलाध्यक्ष होना कोई ऐसे ही नहीं है। मंत्रियों ने आना है। प्रभारी मंत्री ने बैठक लेनी है। सौ पंगे हैं। सत्ता और संगठन मेँ ताल मेल के। खब्ती हो तो सो टंटे कर दे, बैठे बिठाए। अब कामरा जी के बस मेँ तो कुछ है नहीं। क्योंकि ना तो कोई इनकी सूरत जाने ना कभी कोई बड़ा कद रहा। बिजयनगर के अलावा किसी और स्थान पर कोई जानता नहीं हैं। ना प्रशासन जाने ना पार्टी के लोग। ना उनका  कोई नेटवर्क है। कभी इधर उधर गए हों तो जाने भी। संतोषी जीव थे। जो मिला उसी को मुकद्दर समझ के झोली मेँ लेते रहे। उनको क्या पता था कि कोई दिन ऐसा भी आएगा जब पार्टी, बड़े बड़े विधायक और विशाल नेता उनको जिला अध्यक्ष बना देंगे। बेशक, कुछ ना पता हो। पद मिल रहा हो तो लेने मेँ क्या हर्ज है। काबिलयात, अनुभव की बात छोड़ो  जी । कद तो पद मिलते ही बड़ा हो गया। बड़े कद को बड़ा पद मिले ये कोई जरूरी नहीं राजनीति मेँ। इधर सब चलता है। बड़े कद को पड़ा पद मिला था, क्या हुआ? हाथ-पाँव फैलाने की कोशिश की तो घर बैठा दिया। फिर सिर उठाया तो फिर चित कर दिया। कौन? अपने सीधे सादे अशोक नागपाल जी और कौन। कामरा जी और सोढ़ी जी मेँ कोई फर्क नहीं है। कामरा जी सोढ़ी जी से उन्नीस ही रहने की कोशिश करेंगे। पद का महत्व जान, समझ कर इक्कीस बनने का प्रयास करेंगे तो उनको अशोक नागपाल का स्मरण करवा दिया जाएगा । वर्तमान मेँ जो आनंद सोढ़ी हो जाने मेँ है वह अशोक नागपाल होने मेँ नहीं। यही रिवाज है इस पार्टी का। यही कर्म है जिला अध्यक्षी का। क्योंकि जिलाध्यक्ष बेशक संगठन के रूप मेँ विधायकों से अधिक शक्तिशाली हो, किन्तु विधायक कभी ऐसा नहीं चाहेंगे। बड़े नेता भी बर्दाश्त नहीं करेंगे कि वे जिला अध्यक्ष की हाजिरी भरें । इसलिए सोढ़ी, कामरा जैसों के भाग बदलते हैं। उनकी किस्मत चमकती है। घर बैठे सत्तारूढ़ पार्टी की जिला अध्यक्षी मिल जाती है। जिसके लिए बड़े बड़े नेता इधर उधर भागदौड़ करते हैं। सौ प्रकार के प्रपंच रचते हैं। इसलिए कामरा जैसे व्यक्ति का जिला अध्यक्ष होना सुखद है, सभी के लिए। कामरा जी को बैठे बिठाए पद मिल गया और बाकियों को पैदल। जहां मर्जी हो खड़ा कर दो। दो लाइन पढ़ो—
जिन्दा साबित करेगा
रोज मरेगा,
मुर्दा बन के रहेगा
मौज करेगा।


Tuesday, November 17, 2015

मुरदों के शहर मेँ श्मशानों की पोबारह पच्चीस


श्रीगंगानगर। गज़ब की बात है। दूसरे शहर के लोग प्रेरणा ले सकते हैं। सीख सकते हैं इस शहर से। जी, मुरदों का ये शहर कुछ नहीं, बहुत कुछ सिखाने मेँ सक्षम है। क्योंकि मुरदों के इस शहर के श्मशान घाट चकाचक हैं। दोनों के दोनों। श्मशान घाट की प्रबंध समितियों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उनके कदमों के निशानों पर चलने की सोच लो। धन्यवाद के पात्र हैं वे व्यक्ति  जिनको मुरदों की इतनी अधिक फिक्र है। राष्ट्रपति नहीं तो स्टेट लेवल के सम्मान के हकदार तो ये हैं हीं। यही हैं वो जिनके पास दूरदृष्टि है। भविष्यदृष्टा हैं प्रबंध समिति के सभी पदाधिकारी। ये जानते थे कि हमारा शहर मुरदों का है। ज़िंदों के लिए तो उचित व्यवस्था कर नहीं सकते, इसलिए मुरदों के लिए सब ठीक कर सकें तो पुण्य होगा। यही सोच उन लोगों ने मुरदों के लिए खास इंतजाम किए हैं। फायर प्रूफ ईंटों से चिता की वेदी निर्मित की गई है। उसमें एक जाली और दूसरी ट्रे है। जाली मेँ फूल रह जाएंगे और राख़ नीचे ट्रे मेँ। मुरदे के विश्राम के लिए कई स्थान हैं। एक और बना दिया, चिता के साथ। सफाई बेहतर है। हरियाली की कोई कमी नहीं। खूब संभाल हो रही है। दोनों ही श्मशान घाटों मेँ विकास की गंगा बह रही है। बेशक शहर चंडीगढ़ का बच्चा ना बना हो, मगर श्मशान घाट उससे कम नहीं है। मुरदों के लिए इतनी चिंता करने वाले लोग और किसी शहर मेँ हो ही नहीं सकते। श्मशान घाट के बाहर शहर मेँ आप  कैसे भी मुरदे हों। आप मेँ मुरदे जैसी बात हो या न हो। किन्तु जैसे ही आप मुरदा बन लोगों के कंधों पर श्मशान घाट आओगे, आप बेफिक्र हो जाना। आपको किसी प्रकार की चिंता की कोई आवश्यकता नहीं। सब कुछ बढ़िया है। शहर से भी बेहतर। बेहतर नहीं कई गुना बेहतर। शहर मेँ जितनी अव्यवस्था है, उतनी ही अधिक अंदर व्यवस्था है। शहर का प्रशासन जिंदा लोगों के लिए कुछ करे ना करे, परंतु श्मशान घाट का प्रशासन मुरदों के लिए सभी व्यवस्था करने के लिए चिंतन करता रहता है। केवल इसलिए कि जिंदा रहते हुए समस्याओं  से दो चार रहने वाले को मुरदा हो  जाने  के बाद कोई समस्या ना हो। ज़िंदों की कोई फिक्र नहीं, मुरदों की इतनी चिंता, ये कहने वाले दुश्मन है मुरदों के। ऐसे लोगों को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। शहर मेँ ऐसी ही लोग दंगा करवाते हैं। सॉरी! मुरदों के लिए की गई व्यवस्था लानत नहीं है शहर के लिए।  मिसाल है, मिसाल । जो इस मिसाल को  शहर के लिए शर्मनाक बताए वह दुश्मन है हमारा। क्योंकि उसे पता  ही नहीं शहर के मिजाज का। कई दशकों से इस शहर का हिस्सा हूँ। इतना सुकून कभी नहीं मिला , जितना आज श्मशान घाट मेँ पाया। ये चिंता समाप्त हो गई कि मरने के बाद पता नहीं कैसा लगेगा। अच्छा होगा या सब कुछ सूगला ही होगा, शहर की तरह। परंतु अब ठीक है। शहर मेँ सब कुछ सही हो ना हो, लेकिन श्मशान घाट मेँ सब सही है। उधर सब बढ़िया है, जिधर हर मुरदे को जाना ही है। और मुरदे को चाहिए भी क्या। बस, उसकी मिट्टी ठीक से ठिकाने लग जाए, यही तो चाहता है वह। मुरदा है, इसलिए करना तो उसने शहर मेँ भी कुछ नहीं, उधर कुछ करने लायक वह रहता नहीं। तभी तो  दूसरे करते हैं, उनके लिए सब कुछ । शहर मेँ  ऐसा हो नहीं रहा। शहर मुरदों का है, मुरदे क्या करें! जिन पर कुछ करने की ज़िम्मेदारी है, वे ही  कुछ नहीं कर रहे । इसलिए श्मशान ही ठीक है हमारे लिए। क्योंकि आखिर हम हैं तो मुरदे ही। तभी तो ये शहर मुरदों का हुआ है। आज दो नहीं कई लाइन पढ़ो—

जीवन मेँ सुख चाहिए तो चापलूसी करना सीख
केवल सच ही बोलेगा, तो नहीं मिलेगी भीख। 
सब को अच्छा बोल तू, झूठे, लम्पट, चोर 
सारा जग खामोश है, तू काहे मचावे शोर। 

Monday, November 16, 2015

थड़े टूटे तो गंगानगर मेँ होगी अराजकता


श्रीगंगानगर। दृश्य 1- महिला ने घर का दरवाजा खोला। उधर से तेज गति से बाइक आई। दरवाजा टूटा। महिला दूर गिरी। सर पर चोट लगने से मौत। बाइक सवार हॉस्पिटल मेँ भर्ती। स्थिति गंभीर। 2- बच्चा नजर बचा के घर से निकल गया। जैसे ही बाहर कदम बाहर रखा कार की चपेट मेँ आ गया। मौके पर ही मौत। लोगों ने कार को तोड़ा। मालिक को पीटा। एक दूसरे के खिलाफ केस। 3-चार पाँच आवारा किस्म के लड़कों ने अपनी अपनी बाइक सड़क पर लगाई और करने लगे अपनी भाषा मेँ बातचीत। सब कुछ सड़क किनारे था। इसलिए  घर मेँ सुनाई दे रहा था। घर मालिक ने बाहर निकल उनको समझाने की सोची । पहले तो गेट नहीं खुला घर का, क्योंकि बाइक आगे लगी थी। बाइक हटवाई। उनको घर के आगे से हटने को कहा तो झगड़ा हो गया। लड़कों का कहना सही था, सड़क पर खड़े हैं, तुझे क्या? दोनों मेँ झगड़ा  हुआ। लड़कों ने समझाने आए व्यक्ति को पकड़ लिया। घर की महिला छुड़ाने आई तो उसके साथ भी बुरा बर्ताव। पुलिस को फोन किया। लड़के चले गए। पुलिस ने कुछ नहीं किया। 4-राह चलते बदमाश एक घर मेँ घुस गए। लड़कियों से बदतमीजी की। सामान ले गए। सीसीटीवी कैमरे नहीं थे। इसलिए पुलिस कुछ ना कर पाई। 5- कड़ाके की ठंड मेँ दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो बदमाश घर मेँ घुस गए। बुजुर्ग को मारा और सामान लूट कर फरार। वारदात की जानकरी कई घंटे तक किसी को नहीं हुई। 6-हर घर के आगे कार, बाइक्स खड़ी हैं। घर मालिक परेशान। कोई रास्ता नहीं। कोई किसी को कुछ कह नहीं सकते। 7- घर ऊंचे, सड़क नीची। लोगों को हो रही है आने जाने मेँ परेशानी। बाहर रैम्प बना नहीं सकते। कब्जा होगा। इसलिए लकड़ी की सीढ़ी  बनाई है। आते जाते समय बाहर लगा देते हैं। 8- घर की दीवार के साथ नाली बनाई प्रशासन ने। ठेके पे जैसी बननी थी बनी। नाली का पानी घर की नींव मेँ जाता रहा। कई मकानों को नुकसान। ये सभी दृश्य आज  बेशक काल्पनिक हैं। लेकिन श्रीगंगानगर मेँ दशकों पुराने थड़े टूटे तो ये काल्पनिक दृश्य हकीकत बन जाएंगे। । गली गली होंगे ऐसे सीन। कोई कुछ नहीं कर सकेगा। क्योंकि घर का दरवाजा सड़क के किनारे होगा और किवाड़ सीधे सड़क पर खुलेंगे । सड़कों की स्थिति ट्रैफिक के लिहाज से वैसी की वैसी रहेगी, क्योंकि लोगों के वाहन तो सड़कों पर ही खड़े रहेंगे। जनता बेशक खामोश है। राधेश्याम गंगानगर हार से उबर नहीं पाए हैं। किन्तु कोई ये ना सोचे कि थड़े टूटने से केवल सीवरेज की समस्या होगी। इसके साथ और भी कई प्रकार की परेशानी जनता के सामने खड़ी हो जाएंगी। अनेक प्रकार की आशंका हर पल रहेगी। क्योंकि घरों की ओट समाप्त हो जाएगी। परदा हट जाएगा। प्रशासन के पास इन समस्याओं, परेशानियों का कोई समाधान नहीं है। वह केवल और केवल लकीर पीट रहा है। उसे इस बात से कोई  मतलब नहीं कि थड़े दशकों पुराने हैं। जिसने घरों के आगे ये व्यवस्था की, वो कोई पागल तो नहीं था। फिर दशकों पहले नाली-नाले बना सड़क की हद भी प्रशासन ने बनाई है, इन स्थानों पर। ठीक है, प्रशासन को इससे कोई लेना देना नहीं। उसे तो कोर्ट के आदेश की पालना करनी है बस । लेकिन ये पढ़ा-लिखा प्रशासन जन जन की परेशानी, दुख तकलीफ से कोर्ट को तो अवगत करवा सकता है। वो भी तो न्याय के लिए है। वो भी तो समझदार है। चलो, प्रशासन ये ना करे तो ना करे। गौशाला रोड पर करके दिखा दे कुछ। जहां से कब्जे हट गए। थड़े टूट गए। उधर सड़क बनाओ। नाली का निर्माण करो। शहर मेँ जिन स्थानों पर मुरदों को जलाया जाता है वो  तो दिन पर दिन निखर रहें हैं और जिधर जिंदा लोग रहते हैं, उसकी स्थिति बिगाड़ने के काम किए जा रहे हैं। अजब शहर है और गज़ब है उस शहर के नेता। निराले हैं अफसर। लोगों की छोड़ो, वे तो जैसे हैं, उसका जिक्र कई बार कर चुके हैं। दो लाइन पढ़ो कचरा पुस्तक की—
हमारा क्या, खामोशी से 
गुजर जाएंगे वक्त की तरह,
ये वादा रहा, नाम रहे ना रहे 

Sunday, November 15, 2015

भीतर तो कड़वाहटें, बाहर करवा चौथ



हनुमानगढ़मरुधरा साहित्य परिषद की ओर से 13 नवम्बर की  शाम ढिल्लों कॉलोनी  स्थित स्वामी विवेकानंद मॉडल स्कूल में देश के ख्यातनाम गजलकार एवं दोहाकार विजेंद्र शर्मा के सम्मान में एक शाम शब्द सारथी विजेंद्र के नाम कार्यक्रम आयोजित किया। अध्यक्षता राजस्थान कॉलेज के प्राचार्य और राजस्थान आर्थिक परिषद के अध्यक्ष डॉ. संतोष राजपुरोहित ने कीआकाशवाणी सूरतगढ़ के उद्घोषक राजेश चड्ढा मुख्य अतिथि थे। पत्रकार बालकृष्ण थरेजा, गोपाल झा, दीनदयाल शर्मा विशिष्ट  अतिथि थे । विजेंद्र शर्मा ने अपनी सृजन यात्रा का वृतांत प्रस्तुत करते हुए गजल व दोहे के कहन व उनकी सृजनात्मक बारीकियों पर अपने विचार व्यक्त किये और अपने चुनिंदा दोहे व गजलें प्रस्तुत कर उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने आज के बदलते परिवेश में पति पत्नी के सम्बन्धों पर कटाक्ष करते हुए दोहा 'जग जाहिर होती नहीं, इस रिश्ते की थोथ, भीतर तो कड़वाहटें, बाहर करवा चौथ, सुनाया तो श्रोता अपनी तालियां रोक नहीं पाए। उन्होंने पत्रकारों का आह्वान करते हुए कहांभले कलम दे हाथ में, या दे दे तलवार, मौला इनकी तू मगर, पैनी रखियो धार। क्षेत्र में फसलों के खराब हो जाने और किसानों के वर्तमान हालत पर जब ये दोहा 'कितना हुआ किसान का, पता करो नुकसान, पटवारी के आ गई, आँखों में मुस्कान सुनाया तो हॉल तालियों से गूंज उठा। विजेंद्र शर्मा के कविता पाठ के बाद वरिष्ठ साहित्यकार ओम पुरोहित कागद ने दोहाकार विजेंद्र शर्मा के कृतित्व पर तथा डॉ. प्रेम धींगड़ा ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। कवि नरेश मेहन, अनिल जांदू, राजूसारसर राज, मनोज देपावत, हरीश हैरी, संजय शिल्प, एम.ए.राठौड़, डॉ. शीतल धूडिय़ा, राजू रामगढिय़ा, भारतेंदु सैनी, मनीष जांगिड़, विनोद यादव, जितेंद्र बठला ने कवि विजेंद्र शर्मा की सृजन यात्रा पर सिलसिलेवार विचार व्यक्त किए। विजेंद्र शर्मा के साहित्यिक योगदान के लिए  वर्ष 2015 का कुं.चन्द्रसिंह बिरकाळी सम्मान प्रदान किया गया। मरुधरा साहित्य परिषद की ओर से यह सम्मान प्रतिवर्ष एक साहित्यकार को दिया जाता है। डॉ. संतोष राजपुरोहित ने कहा कि राजस्थान कॉलेज में प्रकृति के चितेरे कवि कु. चन्द्रसिंह बिरकाळी के नाम पर हिंदी साहित्यपीठ की स्थापना की गई है। बालकृष्ण थरेजा ने कहा कि हनुमानगढ़ जिले के महाविद्यालयों के हिंदी विभागों की ओर से जिले के साहित्यकारों पर लघु शोध के साथ साथ एम फिल व पीएचडी स्तर के शोध करवाये जाने चाहिए। परिषद के उपाध्यक्ष अनिल जांदू व सचिव नरेश मेहन ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संयोजन ओम पुरोहित कागद ने किया ।

Friday, November 13, 2015

विश्व शांति के लिए संयुक्त युद्धाभ्यास


 श्रीगंगानगर। भारत एवं रूस, अपने रिश्तों में एक कदम आगे बढ़ते हुए, 14 दिवसीय संयुक्त युद्धाभ्यास इन्द्रा-2015 कर रहे हैं।  जिसमें दोनो देशों के 250-250 सैनिक हिस्सा ले रहे हैं।  यह युद्धाभ्यास 07 नवम्बर 2015 को महाजन फील्ड फायरिंग रेन्ज, राजस्थान में प्रारम्भ हुआ था जो 20 नवम्बर 2015 को समाप्त होगा। प्रवक्ता ले कर्नल मनीष ओझा की विज्ञप्ति के अनुसार संयुक्त युद्धाभ्यासों की यह श्रृंखला 2003 में शुरू हुई थी। इससे पहले भी दोनो देशों की सेनाओं के तीनो अंगों के बीच अनेक संयुक्त युद्धाभ्यास हो चुके हैं।  इस वर्ष दोनो सेनाओं के 500 सैनिक संयुक्त राष्ट्र के दिशानिर्देशों के अन्तर्गत भविष्य में सम्भावित आतंकवादी खतरे का सामना करने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।  यह अभ्यास दोनो देशों के बीच आपसी सम्बंधो में मजबूती और आपसी सहयोग में बढ़ावा देगा। भाषा, प्रशिक्षण वातावरण की बाधाओं को दरकिनार करते हुए दोनो देशों की सेनाओं ने जिस व्यावसायिक समझ का परिचय दिया है, वह प्रशंसनीय है।  इन्द्रा-2015 में दिये जा रहे प्रशिक्षण का सत्यापन (वैलिडेशन) अगले सप्ताह होने वाले अभ्यास के दौरान किया जायेगा।

चबूतरे हटाने से पूर्व सीवरेज बनाया जावे- कपूर



            श्रीगंगानगर 13 नवम्बर : संयुक्त व्यापार के पूर्व अध्यक्ष एवं व्यापारी नेता हरीश कपूर ने जिला प्रशासन एवं राज्य सरकार से हटाये जा रहे अतिक्रमण के मद्देनजर रिहायशी इलाकों से चबूतरे हटाने से पूर्व सीवरेज की व्यवस्था करने की मांग की है। कपूर ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा पूर्व में अनुदान देकर चबूतरों के नीचे सैप्टिक टैंक बनवाये गये थे अब यदि इन चबूतरों को हटाया जाता है तो घरों के बार बने सैप्टिक टैंक में हटेगें।  जिससे वातावरण तो दूषित होगा ही आम नागरिकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा एवं शहरवासी भयंकर बीमारियों की चपेट में आ जाएंगें । जिला प्रशासन को चाहिए कि पहले पूरे शहर में सीवरेज बनाकर चालू करें उसके बाद चूबतरे हटाये जाएं ।कपूर ने कहा कि प्रशासन द्वारा वर्तमान में हटाये गये चूबतरों पर नाली का निर्माण कितनी दूरी पर किया जाएगा इसके संबंध में संबंधित भवन स्वामी को दिशा-निर्देश देवें ताकि वह उसी अनुरूप निर्माण करे । 

एक भी थड़ा बचना नहीं चाहिए मुरदों के शहर मेँ


श्रीगंगानगर। प्रशासन को इस शहर का कोई थड़ा नहीं छोड़ना चाहिए। सब तोड़ दे। तहस नहस कर दे। थड़े पर सीवरेज, सुवरेज कुछ भी हो, बेशक। फिर नगर मेँ सीवरेज का काम भी क्या है? ये तो मुरदों का शहर है। मुरदों को सीवरेज की जरूरत होती ही नहीं। इसलिए प्रशासन जी, देर मत करो। काम शुरू करो। तोड़ दो थड़े। उसके बाद गली गली, सड़क सड़क पर सीवरेज का सड़ांध मारता पानी और भिष्टा होगी। सूअरों को ले आना। छोड़ देना। उनकी दिवाली शानदार हो जाएगी। गली गली, सड़क सड़क क्या, घर घर होगा ये सब। आपको क्या, आप तो बड़ी बड़ी कोठियों मेँ रहते हैं। जहां ना तो मच्छर पहुँच सकते हैं, ना सड़ांध। आप बेफिक्र होकर अपना काम करो। कोई कुछ नहीं बोलेगा। मुरदे तो बोल ही नहीं सकते। उनके लिए कोई आपके खिलाफ क्यों जाए? उन नागरिकों के लिए बोलना भी नहीं चाहिए, जो मुरदों मेँ सम्मिलित हो चुके हैं। उनके बारे मेँ कोई संघर्ष क्यों करे, जो अपने आप को मुरदा मान चुके हैं। इसलिए लाओ जेसीबी और तोड़ दो थड़े। होने दो अराजकता। बनने को गंगानगर को नर्क। कब्जा करने की सजा तो मिलनी ही चाहिए शहर को। अधिकारियों, कर्मचारी तो बड़ी ईमानदारी से काम करते हैं। उनको सम्मानित करना हमेशा की तरह। आपको इस बात से कोई लेना देना नहीं कि नालियाँ बना कर सड़क और मकान की हद आपने तय की। आप तो थड़ों का नाम निशान मिटा देना। सीवरेज नहीं, बना नहीं बना। मुरदों के लिए सड़क, सीवरेज, पानी, चिकित्सा की कोई आवश्यकता नहीं। चिंता मत करना प्रशासन जी, कोई नहीं पूछेगा कि किस कोर्ट के कौनसे आदेश आपकी फाइलों मेँ क्यों पड़ें हैं? मुरदों को इनसे क्या मतलब। कब्जे तो लोग खुद तोड़ देंगे, आप तो बस थड़े तोड़ने के काम मेँ लगाओ अपने आप को । ऐसा मौका क्या पता फिर मिले ना मिले। ना जी ना! किसी नेता ने भी जनता के साथ नहीं आना। राधेश्याम गंगानगर की रणनीति बिलकुल ठीक है। खामोश! पूरी तरह खामोश! जिसको ज़िम्मेदारी दी, उससे बात करो। मुझे तो सरकार ज़िम्मेदारी देगी, तब विचार करूंगा। विधायक कामिनी जिंदल की पॉलिसी भी गलत नहीं कह सकते। हो गया खेल, एक बार। दूसरी बार ना बनना है और ना किसी ने बनाना है। इसलिए क्यों टंटा करें बोलने का। फिर, बोल के हिसाब से पूरा पूरा तोलने का टंटा । अच्छा है, चुप रहें। सभापति अजय चान्डक को पता ही नहीं कि सभापति होने का अर्थ क्या है? जब उनको पता ही नहीं तो फिर उनकी काहे की नीति और क्या रणनीति। ऐसे मेँ बोले भी तो क्या! एक चुप सौ को हरावे। सांसद निहाल चंद जी को मोदी जी ने बड़ी ज़िम्मेदारी दे रखी है। उस ज़िम्मेदारी के सामने गंगानगर क्या है! कुछ नहीं। कांग्रेस नेता विपक्ष मेँ हैं। उनका तो काम ही हल्ला मचाना होना चाहिए, वे भी शांत हैं। उनको क्या पड़ी, बीच मेँ आने की। नगर की  जनता! कौनसी जनता! वह जो मुरदों मेँ शुमार है या फिर वह जो केवल बात करना जानती है, इधर उधर बैठ कर। करना कुछ नहीं। जनता सोचती है हमने  ज़िम्मेदारी सौंप दी, पार्षद, विधायक और सांसद को। वे  करें शहर की चिंता। पार्षद कहते हैं कि हमने सड़क के लिए धरना दिया जनता नहीं आई, अब हम क्यों आवें। तो प्रशासन जी, आपको फिक्र की कोई जरूरत नहीं। आप तो बस काम शुरू कर दो। एक भी थड़ा बचा तो ये सरकार का अपमान होगा। आपको इधर लगाने के सरकारी निर्णय पर सवालिया निशान लग जाएगा। मेरी सुनो तो, लग जाओ। थड़े तोड़ने मेँ। कब्जे तो हम तोड़ देंगे। दो लाइन पढ़ो—

सफर अपने को तू जारी रख 
किसी से मिलने की तैयारी रख,
इबादत कर ना कर, तेरी मर्जी 
बस खुदा से थोड़ी सी यारी रख। 

थड़े तोड़े जाएंगे, सीवरेज घरों मेँ बनाएं लोग-पुनिया



श्रीगंगानगर। नगर परिषद आयुक्त करतार सिंह पुनिया ने कहा है कि थड़े तोड़े जाएंगे। किसी के पास स्टेट टाइम का कुछ इस बाबत लिखा है तो दिखा दे। बस उसके बाद उन्होने फोन काट दिया। इससे पहले इस रिपोर्टर ने कहा कि लेकिन लोग सीवरेज का क्या करेंगे? इसके जवाब मेँ उनका कहना था कि ये लोग खुद देखें। अपने घरों के अंदर बनाएं। जिस साइज का उनका प्लाट है, उसमें निर्माण करे सीवरेज का। सीवरेज सुविधा देना तो सरकार का काम है। इसके जवाब मेँ श्री पुनिया ने कहा कि अप्रेल मेँ तीसरे फेज का काम शुरू होगा। आज कब्जा हटाने के बारे मेँ श्री पूनिया ने बताया कि चार पाँच दिन का समय दिया गया है। लोग खुद हटा लें कब्जे। ये बात आज सुबह 11 बजकर 7 मिनट पर की गई।

उधम सिंह चौक से भाटिया पेट्रोल पंप वाली सड़क, खुद हटा रहे हैं कब्जे

श्रीगंगानगर। उधम सिंह चौक से लेकर भाटिया पेट्रोल पंप तक की सड़क पर कब्जे हटाने का काम अभी शुरू नहीं हुआ है। लोगों मेँ असमंजस, डर, बेफिक्री के भाव हैं। कहीं लोग दुविधा मेँ हैं कि कब्जे हटाएँ या ना। कुछ लग डर के कारण खुद कब्जे हटाने लगे हैं। बड़ी संख्या मेँ लोग अभी भी बेफिक्र हैं। उनकी दिनचर्या अप्रभावित है। स्वामी दयानन्द स्कूल के आस पास लोग थड़े पर किए कब्जे को हटाने मेँ लगे थे। छप्पर तो हटाये जा चुके थे। नालियों को ढक कर बनाए गए रैम्प और सीढ़ी तोड़ने का काम हो रहा था। राधेश्याम गंगानगर के आस पास लोग बेफिक्र भी थे और फिक्र मंद भी। कई परिवार कब्जे हटा रहे थे। अनेक स्थानों पर लोग आपस मेँ चर्चा करते नजर आए। कुछ का कहना था कि कब्जे नवंबर के बात हटेंगे। एक ने बताया कि कलक्टर ने ये कहा है कि आप कब्जे खुद ही हटा लो। नगर परिषद के उपाध्यक्ष लक्की दावड़ा भी इसी सड़क पर लोगों से चर्चा करते मिले। उनको शिकायत थी कि पार्षद कई दिनों तक सड़क निर्माण के लिए धरने पर बैठे, उनके पास कोई नहीं आया। अब पार्षद भी कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं। इन सबके बीच राधेश्याम गंगानगर का मकान मेँ सब कुछ वैसा का वैसा था। कब्जे तोड़ने के लिए प्रशासन आया नहीं था। यूं आज सरकारी अवकाश है।


Thursday, November 12, 2015

रूस और भारत की सेना ने एक साथ मनाई दिवाली




श्रीगंगानगर। महाजन फील्ड फाइरिंग रेंज मेँ रूस और भारतीय सेना की टुकड़ियों ने मिल के दिवाली मनाई। जो पूरा दिन बड़े बड़े घटक बमों के साथ रहते हों। उनसे खेलते हैं। उनको चलाते हैं, वे बहादुर अधिकारी और जवान दिवाली वाले पटाखे बजा रहे थे। जिनके सामने दूर तक मार करने वाली मिजाइल चलती हैं। चलाते हैं, वे बच्चों की तरह अनार और फुलझड़ी चला रहे थे। दोनों देशों की सेना इस क्षेत्र मेँ युद्धाभ्यास कर रहीं हैं। युद्धाभ्यास के दौरान आई दिवाली को दोनों देशों की सेना ने बड़े ही उल्लास, उमंग और खुशी से मनाया। रूसी सेना के लिए यह नया अनुभव था। उन्होने दिवाली के बारे मेँ सुना तो जरूर था, लेकिन उससे रूबरू होने का अवसर पहला था। इस मौक  पर पटाखे तो छोड़े ही गए साथ साथ गीत संगीत का कार्यक्रम भी हुआ। यह जानकारी सेना के प्रवक्ता ले कर्नल मनीष ओझा ने दी। ज्ञात रहे कि ये सैनिक टुकड़ियाँ महाजन फील्ड फाइरिंग रेंज मेँ इन्दिरा-15 युद्धाभ्यास कर रहीं हैं। 

घरों मेँ गोवर्धन पूजा, मंदिरों मेँ अन्नकूट लेने वालों की भीड़



श्रीगंगानगर। पाँच दिवसीय दिवाली पर्व के आज चौथे दिन घरों मेँ गोवर्धन पूजा हुई तो मंदिरों मेँ अन्नकूट का वितरण किया गया। सभी मंदिरों मेँ भारी भीड़ रही। गोवर्धन पूजा के लिए महिलाओं ने घरों मेँ गोबर से गोवर्धन बनाया। जिसकी विधिवत पूजा अर्चना के बाद भोजन का भोग लगाया गया। परिक्रमा कर सुख समृद्धि की कामना की गई। हर मंदिर मेँ अन्नकूट तैयार करने का काम सुबह ही शुरू हो गया था। दोपहर तक मंदिरों मेँ महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की भीड़ उमड़ पड़ी अन्नकूट लेने के लिए। अन्नकूट के प्रसाद मेँ बाजरे की खिचड़ी प्रमुख रूप से शामिल होती है। छप्पन प्रकार के व्यंजन कई मंदिरों मेँ बना ठाकुर जी को भोग लगा, प्रसाद के रूप मेँ वितरित किया गया। सैकड़ों घरों मेँ दोपहर को केवल अन्नकूट का प्रसाद ही लिया गया। अन्नकूट की परंपरा सदियों पुरानी है। 

दशकों पुरानी स्नेह मिलन की परंपरा हुई समाप्त



श्रीगंगानगर। जाने माने श्रीकृष्ण लीला जब से महावीर दल मंदिर के सर्वे सर्वा बने हैं, तब से उसका विकास तो बहुत अधिक हुआ है, लेकिन दशकों पुरानी परंपरा समाप्त हो गई। यह परंपरा थी दिवाली के बाद स्नेह मिलन की। जिस प्रोग्राम मेँ जिले के बड़े बड़े अफसर, जन प्रतिनिधि सहित अनेकानेक नागरिक, मीडिया कर्मी आ कर शहर के दुख सुख की चर्चा किया करते थे, वह समाप्त हो गया। बस, थोड़ा बहुत नाम मात्र के लोग आकर मिल लेते थे। इस बार तो संयुक्त व्यापार मण्डल के साथ लेने से वह भी जाता रहा। स्नेह मिलन के नाम पर दंभ का प्रदर्शन भर था। दोनों संस्थाओं के पदाधिकारी गेट के सामने कुर्सियों पर विराजमान हो गए। बाकी लोग आते जाओ, पीछे लगी कुर्सियों पर बैठते जाओ। कुछ कुर्सियाँ साइड मेँ थी। भीड़ के नाम पर पदाधिकारी और कुछ नागरिक थे। उनकी संख्या भी इतनी थी कि अधिकांश कुर्सियाँ खाली थीं। समाचार लिखने के समय तक महावीर दल मंदिर के अध्यक्ष नहीं आए थे। होना तो ये चाहिए था कि कुर्सियाँ आमने सामने लगी होती। आमने सामने होते सब नागरिक। आज तो एक दूसरे के पीछे बैठने का सिस्टम था। वह भी स्नेह मिलन कम दिखावा अधिक लग रहा था। बड़े लोगों का इंतजार हो रहा था। वैसे राम गोपाल पांडुसरिया, सीताराम शेरेवाला, निर्मल बंसल, तरसेम गुप्ता, नरेश सेतिया, जय किशन सिंगल, अशोक मुंजराल, निर्मल जैन आदि व्यक्ति पहुंचे हुए थे। 

Tuesday, November 10, 2015

नारी चेतना शाखा द्वारा ‘आनंद सबके लिए’ का आयोजन


श्रीगंगानगर। मारवाड़ी युवा मंच नारी चेतना शाखा द्वारा राष्ट्रीय प्रकल्प आनंद सबके लिएके तहत  झुग्गी-झोपडिय़ों के बच्चों को अच्छे पुराने कपड़े, खाने-पीने का सामान, मोमबत्तियां व घरेलू उपयोगी सामान बांटे गये। शहर की पुरानी आबादी, रिद्धी-सिद्धी, गणेश कॉलोनी के पास स्थित झुग्गी-झोपडिय़ा में उक्त सामग्री वितरित की गई। शाखा पदाधिकारियों व सदस्यों द्वारा एक साथ मिलकर संकल्प लिया गया कि इस दीपावली सब घरों में रोशनी हो, इसके लिए हम मिल-जुलकर सामूहिक प्रयास करेंगे। अध्यक्ष उर्मिला चितलांगिया व सचिव सरोज घोड़ेला ने झुग्गी-झोपडिय़ों के बच्चों को साफ-सफाई के बारे में बताया एवं वहां के निवासियों से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलायें, ताकि उनके जीवन का हर दिन दीपावली हो। शाखा सदस्य एवं राष्ट्रीय सह संयोजिका सविता जैन ने कहा कि त्यौहार में अपनी खुशी के साथ इन लोगों की खुशी का भी ध्यान रखें, ताकि सही मायनों में त्यौहार की खुशियां मनाई जा सके। इस अवसर पर शाखा पदाधिकारी व सदस्यगण ममता बांगडिय़ा, करूणा गुप्ता, संजु गुप्ता, मंजु सैनी, प्रिया बिड़ला, नेहा बिड़ला, अंजु बोरड़, पाठशाला स्कूल की संचालिका रूपीना एस. अरोड़ा तथा सुमन जिंदल आदि का इस कार्यक्रम में विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। सचिव सरोज घोड़ेला ने सभी का धन्यवाद प्रकट किया। 

प्रशासन जनता मेँ भय पैदा करने मेँ सफल हुआ



श्रीगंगानगर। नेताओं की खामोशी और जनता की चुप्पी के बीच प्रशासन लोगों मेँ भय का शासन बनाने मेँ कामयाब हो चुका है। उसका उदाहरण है राधेश्याम गंगानगर वाली रोड। इस रोड पर रहने वाले और कारोबार करने वाले दिवाली को भूल इस बात का प्रबंध करने मेँ लगे हैं कि कब्जा, थड़ा टूटने के बाद की व्यवस्था क्या करें, जिससे को परेशानी ना हो। कारोबारियों ने अपनी दुकानों के आगे लगे छज्जे को हटाने का काम शुरू कर दिया है। बोर्ड, लोहे की एंगल सब हटाई जा रही हैं। अस्थाई निर्माण को भी हटाया जा रहा है। लोग आपस मेँ चर्चा कर रहे हैं। कोई कहता है कि राधेश्याम का कब्जा टूटेगा तो अपना भी टूट जाएगा, इसलिए अभी चिंता किस बात की। किसी का विचार है कि पहले ही इंतजाम कर लें तो ठीक रहेगा। स्थिति ये है कि लोग दिवाली की खुशी, उमंग, उलास को भूल चुके हैं। उसके बदले अपने अपने मकान बचाने के जुगाड़ मेँ लगे हैं। हैरानी इस बात की कि अधिकांश लोग राधेश्याम गंगानगर के पास जाने की बात से इधर उधर झाँकने लगते हैं। 

पहले पीटा, फिर नमक छिड़कने आ गए, नेता खामोश



श्रीगंगानगर। दिवाली के मौके पर पहले तो प्रशासन ने लोगों को पीटा, उसके बाद उनके जख्मों पर दवा लगाने की बजाए नमक छिड़कने का काम शुरू किया। पब्लिक ने रोका। गौशाला रोड के निवासी ने बताया कि कब्जे टूटने के बाद बीरबल चौक से लेकर सुखाडिया सर्किल तक बिजली की लड़ियाँ लगाने का काम शुरू हुआ। लोगों ने देखा। चर्चा शुरू हुई। लड़ी लगाने वाले से पूछा। उसको ऊपर नीचे किया तो पता चला कि ये रोशनी प्रशासन की ओर से करवाई जा रही है। लोगों मेँ आक्रोश फैल गया। उन्होने मिल कर बिजली वाले को रोका और लड़ियाँ नहीं लगाने दी। इतना ही नहीं लोगों ने कार्यवाहक आयुक्त से चर्चा कर पानी निकासी के लिए खुद की रकम लगा नाला बनवाया। यह निर्माण आयुक्त की सहमति से, उनके बताए स्थान से शुरू किया गया था। लेकिन एक दिन बाद प्रशासन ने उसे भी तुड़वा दिया। अब कोई उनसे पूछने वाला हो कि तुम लोगों के कहने से बनवाया, फिर तुड़वा क्यों दिया। कोई नेता, कोई मीडिया कर्मी भी इन लोगों की समस्या नहीं समझ रहा और ना उनकी आवाज को आगे ले जा रहा है। 

गौशाला रोड के निवासियों का बुरा हाल, सुध लेने वाला कोई नहीं


श्रीगंगानगर। गौशाला रोड पर चबूतरों के टूटने की बाद उन परिवारों की परेशानी को लिखना मुश्किल है, जो सालों से उधर निवास कर रहे हैं। दशकों से बने चबूतरे टूट गए। साथ मेँ टूट गए सेफ़्टी टैंक। गंदा पानी घर के बाहर सड़क पर। घरों के परिवारों को पेशाब, पाखाना करने के लिए कितनी परेशानी होगी, कोई इसकी कल्पना कर सकता है। सड़ांध के कारण उधर रहना मुश्किल। इधर दिवाली, कोई जाए तो जाए किधर। फिर इधर उधर जाना भी तो समस्या का समाधान नहीं। लोगों को पानी की पाइप जुड़वाने के लिए पाँच सौ रुपए से लेकर एक एक हजार रुपए देने पड़े। किसी के एक दिन बाद पानी आया, किसी के दो दिन बाद। इन लोगों की स्थिति जानने के लिए ना तो कोई नेता आया ना प्रशासन। इस सड़क के दोनों ओर रहने वालों की स्थिति इतनी खराब है कि उसे शब्दों मेँ लिखना मुश्किल। ये लोग बेबस हो चुके हैं। इनको कब्जे टूटने का कोई गम नहीं, अफसोस इस बात का है कि दिवाली पर सेफ़्टी टैंक टूटे। जब राधेश्याम वाली सड़क का नंबर आया तो अभियान रुक गया। इन लोगों की दिवाली तो काली हो गई।

खेत्रपाल के मंदिरों मेँ उमड़ी भीड़


श्रीगंगानगर। दिवाली से पहले की चौदस पर आज सुबह से ही खेत्रपाल मंदिरों मेँ नर नारियों की भीड़ उमड़ पड़ी। सबसे अधिक भीड़ पुरानी आबादी मेँ उदाराम चौक पर स्थित खेत्रपाल के मंदिर मेँ थी। इस मंदिर मेँ तो सूरज उगने से बहुत समय पहले से ही लोगों का पहुँचना शुरू हो गया था। मंदिर के अंदर जाने के लिए लंबी लाइन लगी हुई थी। सरसों का तेल, मीठे चावल, सिंदूर सहित अनेक प्रकार की सामग्री लोगों ने खेत्रपाल को अर्पित कर घर मेँ सुख, शांति की कामना की, मन्नत मांगी। मंदिर आने वालों मेँ महिलाओं की संख्या अधिक थी। अग्रसेन नगर और सेतिया कालोनी के खेत्रपाल मंदिरों मेँ भी लोगों की आवा जाही रही। दिवाली की चौदस पर खेत्रपाल को तेल अर्पित करने का अधिक महत्व बताया गया है। लेकिन गत कई सालों से खेत्रपाल के मंदिरों मेँ आने वालों की संख्या बहुत अधिक बढ़ी है। 

Monday, November 9, 2015

महाजन मेँ भारत-रूस का युद्धाभ्यास इन्द्रा-15 शुरू


श्रीगंगानगर। सातवें भारत-रूसी संयुक्त युद्धाभ्यास इन्द्रा-2015 का शुभारंभ 09 नवम्बर 2015 को महाजन में दोनों देशों के राष्ट्रगान के साथ हुआ।  यह समारोह सादा किन्तु मनमोहक था।  इस उपलक्ष में एक परेड का आयोजन किया गया, जिसकी सलामी संयुक्त रूप से भारत के मेजर जनरल पी सी थिमैया, जनरल अफसर कमान्डिंग, रेड ईगल डिविजन तथा मेजर जनरल सारजे लेगेटोंग, कमांडर स्वतंत्र मोटराइज्ड ब्रिगेड ने ली। इससे पहले, रूस के स्वतंत्र मोटराइज्ड ब्रिगेड के 250 सैनिकों का दल 07 नवम्बर को सीधे बीकानेर हवाई अड्डे पर उतरा।  14 दिनों का यह युद्धाभ्यास संयुक्त राष्ट्र के निर्देशानुसार अर्ध-शहरी इलाकों में आतंकवाद विरोधी अभियानों पर केन्द्रित होगा। महाजन फील्ड फायरिंग रेंज पर आयोजित उद्घाटन समारोह में मेजर जनरल पी सी थिमैया, जनरल अफसर कमान्डिंग, रेड ईगल डिविजन ने रूसी सैन्य दलों का राजस्थान की ऐतिहासिक सरज़मीं पर स्वागत किया।  इस अवसर पर जनरल थिमैया ने दोनों देशों की सेनाओं  से आह्वान किया कि वे एक दूसरे की सैनिक तरतीब और तरीकों को समझने की यथासम्भव कोशिश करें, जिससे दोनों सेनाओं में एकजुटता और इन्टर ऑपरेबिलिटी के विकास का लक्ष्य प्राप्त हो सके। दोनों देशों के बीच हो रहे इस संयुक्त युद्धाभ्यास को विश्व स्तरीय शांति, समृद्धि  और स्थिरता की दिशा में उठाये गये एक प्रमुख कदम के रूप में देखा जा रहा है।  उद्घाटन समारोह में दोनो देशों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये गये।  आगामी 14 दिनों में ये सैन्य दल कडे़ प्रशिक्षण के दौर से गुजरेंगे, जिसके उपरान्त यह युद्धाभ्यास 20 नवम्बर 2015 को समाप्त हो जाएगा। यह जानकारी सेना के प्रवक्ता ले मनीष ओझा ने दी।