Saturday, November 21, 2015

सुखद है हरी सिंह कामरा का जिला अध्यक्ष होना


श्रीगंगानगर। ये हरी सिंह कामरा कौन हुआ? हरी सिंह कामरा कौन है? ऐसे कितने ही प्रश्न इन दिनों राजनीतिक गलियारों के साथ साथ उन लोगों की जुबां पर भी हैं जो राजनीति मेँ रुचि रखते हैं। उसे समझते हैं। इसकी चर्चा करते हैं। सच्ची बात तो ये कि हमें भी अधिक नहीं पता। इतनी ही जानकारी है कि ये बिजयनगर नगरपालिका मेँ अध्यक्ष रहें हैं। बीजेपी के वर्कर हैं। और क्या-क्या  थे, पता नहीं। वैसे भी कुछ होते तो पता भी होता। फिलहाल वे उस बीजेपी के जिलाध्यक्ष हैं, जिसकी केंद्र और प्रदेश मेँ सत्ता है। अब इतनी बड़ी पार्टी ने कामरा  जी को जिला अध्यक्ष बनाया है तो उनको सलामी तो देनी ही पड़ेगी। संगठन और सरकार चलाने वाले राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं ।  वो किसी ऐसे वैसे को तो बनाने से रहे। इसलिए कुछ ना कुछ तो कामरा जी मेँ होगा ही, जो उनको जिलाध्यक्षी दी गई है। और कुछ नहीं तो सोढ़ी जी जितना तो देखा ही होगा कामरा जी मेँ। इससे अधिक करना भी क्या है बीजेपी को। सरकार है ही दोनों स्थानों पर। समय से पहले कोई हिला नहीं सकता। तब तक कामरा जी पड़े रहेंगे, बने रहेंगे  सोढ़ी जी की तरह क्या नुकसान है। कामरा जी का जिला अध्यक्ष होना इस बात का सबूत है कि बीजेपी मेँ कार्यकर्ता की कितनी पूछ है। पैदल की कितनी कदर है। शतरंज मेँ पैदल  ही तो होते हैं कुर्बानी देने के लिए। उनको ही आगे किया जाता है रास्ता बनाने के लिए। पहले सोढ़ी जी थे, अब कामरा जी हैं। आप कुछ भी कहें। कुछ भी समझें । इन शब्दों का कोई अर्थ निकालें। परंतु कामरा जी से उचित कोई और हो ही नहीं सकता था। विधानसभा की 6 सीटों वाले इस जिले मेँ बीजेपी  के चार विधायक हैं। इनके अलावा विशाल नेता भी हैं। अगर कोई धुरंधर बना होता तो वो इन विधायकों और विशाल नेताओं को हजम नहीं होना था। क्योंकि सत्तारूढ़ पार्टी का जिलाध्यक्ष होना कोई ऐसे ही नहीं है। मंत्रियों ने आना है। प्रभारी मंत्री ने बैठक लेनी है। सौ पंगे हैं। सत्ता और संगठन मेँ ताल मेल के। खब्ती हो तो सो टंटे कर दे, बैठे बिठाए। अब कामरा जी के बस मेँ तो कुछ है नहीं। क्योंकि ना तो कोई इनकी सूरत जाने ना कभी कोई बड़ा कद रहा। बिजयनगर के अलावा किसी और स्थान पर कोई जानता नहीं हैं। ना प्रशासन जाने ना पार्टी के लोग। ना उनका  कोई नेटवर्क है। कभी इधर उधर गए हों तो जाने भी। संतोषी जीव थे। जो मिला उसी को मुकद्दर समझ के झोली मेँ लेते रहे। उनको क्या पता था कि कोई दिन ऐसा भी आएगा जब पार्टी, बड़े बड़े विधायक और विशाल नेता उनको जिला अध्यक्ष बना देंगे। बेशक, कुछ ना पता हो। पद मिल रहा हो तो लेने मेँ क्या हर्ज है। काबिलयात, अनुभव की बात छोड़ो  जी । कद तो पद मिलते ही बड़ा हो गया। बड़े कद को बड़ा पद मिले ये कोई जरूरी नहीं राजनीति मेँ। इधर सब चलता है। बड़े कद को पड़ा पद मिला था, क्या हुआ? हाथ-पाँव फैलाने की कोशिश की तो घर बैठा दिया। फिर सिर उठाया तो फिर चित कर दिया। कौन? अपने सीधे सादे अशोक नागपाल जी और कौन। कामरा जी और सोढ़ी जी मेँ कोई फर्क नहीं है। कामरा जी सोढ़ी जी से उन्नीस ही रहने की कोशिश करेंगे। पद का महत्व जान, समझ कर इक्कीस बनने का प्रयास करेंगे तो उनको अशोक नागपाल का स्मरण करवा दिया जाएगा । वर्तमान मेँ जो आनंद सोढ़ी हो जाने मेँ है वह अशोक नागपाल होने मेँ नहीं। यही रिवाज है इस पार्टी का। यही कर्म है जिला अध्यक्षी का। क्योंकि जिलाध्यक्ष बेशक संगठन के रूप मेँ विधायकों से अधिक शक्तिशाली हो, किन्तु विधायक कभी ऐसा नहीं चाहेंगे। बड़े नेता भी बर्दाश्त नहीं करेंगे कि वे जिला अध्यक्ष की हाजिरी भरें । इसलिए सोढ़ी, कामरा जैसों के भाग बदलते हैं। उनकी किस्मत चमकती है। घर बैठे सत्तारूढ़ पार्टी की जिला अध्यक्षी मिल जाती है। जिसके लिए बड़े बड़े नेता इधर उधर भागदौड़ करते हैं। सौ प्रकार के प्रपंच रचते हैं। इसलिए कामरा जैसे व्यक्ति का जिला अध्यक्ष होना सुखद है, सभी के लिए। कामरा जी को बैठे बिठाए पद मिल गया और बाकियों को पैदल। जहां मर्जी हो खड़ा कर दो। दो लाइन पढ़ो—
जिन्दा साबित करेगा
रोज मरेगा,
मुर्दा बन के रहेगा
मौज करेगा।


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