Wednesday, December 30, 2015

जाने वाले लौट के जरूर आना, मेरे लिये!


श्रीगंगानगर। कैलेंडर 2015, आखिर तेरे जाने का समय आ ही गया। कितने धूमधाम से आया था तू। कैसा स्वागत हुआ था। और आज तुझे चले जाना है। कभी लौट के ना आने के लिये। प्राणी भी चले जाते हैं यहाँ से । तुम तो फिर  भी कैलेंडर हो। प्राणी कब जाएगा, कोई नहीं जानता, तुम्हारा सबको पता होता है कि कब जाना है। तुम्हारे पास 365 दिन थे। उनमें वे सब भाव थे, जो इंसान कि जिंदगी मेँ होते हैं। अच्छे-बुरे, दुख के, सुख के, गम के, खुशी के, आनंद के, रोने के, हंसी के, शौक के, मस्ती के। हर रंग थे हर  दिन मेँ । किसके को क्या मिला, यह मुकद्दर की बात है, तुम सभी के लिये सब कुछ लेकर आए। सुहानी सुबह। उजला प्रभात। रंग बिरंगी सुबह और शाम की लालिमा। कभी रिमझिम तो कभी तेज बरसात। ठंड के समय ठंड। गर्मी के दिनों मेँ गर्मी। सब कुछ तय था। समय के अनुसार। सब मौसम थे, एक प्यार के मौसम  को छोड़। उसे तुमने तारीखों मेँ नहीं बांधा। क्योंकि तुम जानते हो कि यह तो हर पल करने और महसूस करने वाले भाव हैं, जो ज़िंदगी के लिये सबसे जरूरी है। दुनिया को क्या क्या दिया, मुझे क्या मालूम। परंतु मुझे तुमने खूब दिया। अच्छे सच्चे दिन। खूब सारी खुशी। पुराने सम्बन्धों की मजबूती। नए सम्बन्धों की गरमाहट। नए रिश्तों की आहट । अपनों की चाहत। ढेर सारा सम्मान। जब मौका मिला, तेरी सुबह शाम को निहारा। दूज का चांद को प्रणाम किया। पुर्णिमा के चांद को देखा तो देखता ही रहा। सुबह उगते सूरज की तरफ नजर गई तो सृष्टि के रचियता को मन स्वतः ही प्रणाम करने लगा। सुनो 2015, तुम्हारी तारीखों मेँ मेरी मीठी मीठी याद बंधी है। कई तारीख मेरे रिश्तों से महक रही होंगी । कुछ मेँ निर्मल, सात्विक, पवित्र प्रेम की चहक कानों मेँ पड़ेगी। उसे सुनना जरूर। तुझे गर्व होगा उस तारीख पर। कई तारीख बच्चों के गौरव से जुड़ी है। कोई तो बहुत बड़े आनंद से गूँथी है। किसी मेँ हल्की फुल्की  तकरार भी है, प्यार वाली। उसे भी संभाल कर रखना। मुझे याद रहेंगी ये सब तारीख। क्योंकि ये हैं ही इतनी लाजवाब कि इनको भूल ही नहीं सकता। इनको भुलाने का मतलब है, खुद को भूल जाना। मुझ अदने से को तूने  इतना दिया है कि यह याद भी नहीं कि क्या क्या मेरी झोली मेँ डाला। मेरी झोली भरी हुई है।  नए 365 दिन काम करने के लिये। 365 रात विश्राम के लिये, ताकि काम के लिये और ऊर्जा मिल सके। इंसान हूँ ना । बहुत तारीखें खराब की होंगी मैंने। उसका परिणाम मुझे भुगतना है। लेकिन ये सच है कि तूने 365 दिनों मेँ मुझे देने मेँ कोई कमी नहीं रखी। बे हिसाब दिया। कल्पना से अधिक दिया। तेरा बार बार शुक्रिया कर तेरे दिये को छोटा नहीं करना चाहता। अब इतना सब अच्छा और आनंद दायक मिला तो कुछ चटपटा भी होना चाहिए। तेरे इस पीरियड मेँ गम, शौक, दुख, दर्द, आह! जो भी मिला वो मेरा प्रारब्ध था। उसमें तेरा कोई कसूर नहीं था 2015। तुम अपने दिल मेँ इस संबंध मेँ कुछ भी महसूस मत करना। तूने इतना कुछ दिया कि बार बार शुक्रिया करूँ तो भी कम है। तेरा हाथ पकड़ उसे प्यार से चूम आभार जताऊँ तो भी काफी नहीं। तेरे दिये के बदले दंडवत करूँ, कदमों मेँ सजदा करूँ, तो गुस्ताखी होगी। जितना तूने दिया उतना काबिल नहीं था मैं।  परंतु तेरी मेहर की बरसात का क्या! होती गई, होती गई। मैं सराबोर होता रहा, तेरी रहमत से। तेरी मेहरबानियों से, तेरे प्यार से।  सच मुच तूने मुझे लाजवाब कर दिया। मालामाल कर दिया। जो नहीं था, वह सब मिला। बस एक ही शिकवा है तुझसे कि तू जाते जाते मेरा अतीत, वर्तमान और भविष्य अपने साथ ही ले चला। ये सब ले जाने की वजह तू ही जाने। हम क्या जाने तेरे मन मेँ क्या है।  संभव है  2016 से इस बाबत तेरी कोई बात हुई हो। फिर भी इतनी ख़्वाहिश बार बार है कि 2015 तू बार-बार, हर बार मेरे घर आए, मेरे आतिथ्य स्वीकार कर मुझे धन्य करे। ताकि मैं तारीखों के संग समय बिता खुश हो सकूँ, उन तारीखों के संग, जिनसे मेरी मधुर स्मृतियाँ जुड़ी हैं । दो लाइन पढ़ो—

कौन कमबख्त रोना चाहता है यहां 
इक दर्द ऐसा भी है, जो हंसने नहीं देता। 

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